तुलसीदास जयंती - रविवार, 11 अगस्त 2024 सप्तमी तिथि प्रारम्भ - 11 अगस्त 2024 को 05:44 बजे सप्तमी तिथि समाप्त - 12 अगस्त 2024 को 07:55 बजे ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
- प्रदीप लक्ष्मीनारायण द्विवेदी-
बांसवाड़ा। रामचरितमानस जन-जन का आदर्श धर्मग्रंथ है। जनसाधारण की भाषा और भावना का आकर्षक संगम है रामचरितमानस। श्रीरामभक्ति ने तुलसीदास को धर्मजगत में जो स्थान और सम्मान दिया है वह किसी के लिए भी संभव नहीं है। कितना सुखद क्षण रहा होगा जब तुलसीदास के गुरु ने बचपन में ही उनका नाम- रामबोला रखा था। सत्य है- भक्त हो तो तुलसीदास जैसा और भक्ति हो तो रामचरितमानस जैसी।
तुलसीदास का जन्म संवत् 1554 श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन वर्तमान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम आत्माराम द्विवेदी तथा माता का नाम तुलसी था। जन्म लेते ही राम नाम का उच्चारण करने वाले तुलसीदास के जन्म के समय मुख में पूरे बत्तीस दांत थे। शायद पूर्व जन्म का अधूरा रहा भक्तिकर्म पूरा करने ही धरती पर आए थे तुलसीदास।
इस बालक की विचित्र प्रतिभा से प्रभावित होकर माता-पिता ने उन्हें अपनी सेविका चुनिया को सौंप दिया। जब चुनिया देवलोक चली गई तो इस बालक पर अनंतानंद के शिष्य नरहरि आनंद की दृष्टि पड़ी और वे तुलसीदास को अपने साथ अयोध्या ले गए। नरहरि आनंद ने ही उनका नाम रामबोला रखा था।
और भक्तिमार्ग पर चल दिए... तुलसीदास का विवाह रत्नावली से हुआ। वे अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करते थे। एक बार उनकी पत्नी उनको बिना बताए अपने पीहर चली गई तो उसी रात छिपकर तुलसीदास भी ससुराल पहुंच गए। इस घटना से उनकी पत्नी को बहुत शर्मिंदगी का अनुभव हुआ और उन्होंने तुलसीदास से कहा कि- मेरा शरीर तो मिट्टी का पुतला है। जितना तुम इस शरीर से प्रेम करते हो यदि उससे आधा भी भगवान श्रीराम से करोगे तो इस संसार के मायाजाल से मुक्त होकर अमर हो जाओगे। उस सुवर्णक्षण के वचन ने तुलसीदास का जीवन ही बदल दिया और वे चल पड़े रामभक्ति की अनंत यात्रा पर।
तीर्थयात्रा के दौरान महावीर हनुमान की कृपा से उन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन हुए और उसके बाद उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन श्रीराम महिमा लेखन को अर्पित कर दिया।
रामचरितमानस तुलसीदास की प्रतिष्ठा है, पहचान है, लेकिन इसके अलावा उन्होंने अनेक जनभक्ति ग्रंथ- कवितावली, दोहावली, गीतावली, विनय पत्रिका आदि की भी रचना की।
तुलसीदास का लेखन अवधी और ब्रज भाषा दोनों में मिलता है। जन-जन को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले ग्रंथ रामचरितमानस की रचना प्रचलित लोकभाषा में दोहा, चौपाई, कविता, पद लेखन आदि जनप्रिय गीति शैली में हुई है। इसी जनप्रिय भाषा शैली ने रामचरितमानस और तुलसी दास को अमर कर दिया है!
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