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एक समय ऐसा आया कि रावण को भी कर देना पड़ा - स्वामी कमलदास बापू

There came a time when even Ravana had to pay taxes - Swami Kamaldas Bapu - Alwar News in Hindi

अलवर। लक्ष्मण गढ रोड मालाखेड़ा के गांव बडेर के सीतारामजी महाराज के मंदिर में चल रही 7 दिवसीय संगीतमय श्रीशिवमहापुराण कथा में श्रीचित्रकूट धाम उत्तर प्रदेश से पधारे श्रीशिवमहापुराण कथा के राष्ट्रीय कथा वाचक राष्ट्रीय संत स्वामी कमलदास बापू ने आज पांचवें दिन श्रीशिव सती विवाह की कथा सुनाई।
उन्होंने कहा कि जो स्त्री अपने पति का कहना नहीं मानती है उसका सती जैसा हश्य होता है। उन्होंने कहा कि एक बार भगवान शिव ने कहा कि एक राजा थे, उनका नाम था चक्रवेणु। वह बड़े ही धर्मात्मा थे। राजा जनता से जो भी कर लेते थे सब जनहित में ही खर्च करते थे उस धन से अपना कोई कार्य नहीं करते थे।

अपने जीविकोपार्जन हेतु राजा और रानी दोनों खेती किया करते थे। उसी से जो पैदावार हो जाता उसी से अपनी गृहस्थी चलाते, अपना जीवन निर्वाह करते थे। राजा-रानी होकर भी साधारण से वस्त्र और साधारण सात्विक भोजन करते थे। एक दिन नगर में कोई उत्सव था तो राज्य की तमाम महिलाएं बहुत अच्छे-अच्छे वस्त्र और बेशकीमती गहने धारण किये हुए आई और जब रानी को साधारण वस्त्रों में देखा तो कहने लगी कि आप तो हमारी मालकिन हो और इतने साधरण वस्त्रों में बिना गहनों के जबकि आपको तो हम लोगों से अच्छे वस्त्रों और गहनों में होना चाहिए। यह बात रानी के कोमल हृदय को छू गई और रात में जब राजा रनिवास में आये तो रानी ने सारी बात बताते हुए कहा कि आज तो हमारी बहुत फजीहत बेइज्जती हुई।

सारी बात सुनने के बाद राजा ने कहा क्या करूँ मैं खेती करता हूँ जितना कमाई होती है घर गृहस्थी में ही खर्च हो जाता है। क्या करूँ? प्रजा से आया धन मैं उन्हीं पर खर्च कर देता हूँ, फिर भी आप परेशान न हों, मैं आपके लिए गहनों की व्यवस्था कर दूंगा। तुम धैर्य रखो।

दूसरे दिन राजा ने अपने एक आदमी को बुलाया और कहा कि तुम लंकापति रावण के पास जाओ और कहो कि राजा चक्रवेणु ने आपसे कर मांगा है और उससे सोना ले आओ। वह व्यक्ति रावण के दरबार मे गया और अपना मन्तव्य बताया इस पर रावण अट्टहास करते हुए बोला - अब भी कितने मूर्ख लोग भरे पड़े है। मेरे घर देवता पानी भरते हैं और मैं, कर दूंगा। उस व्यक्ति ने कहा कि कर तो आप को अब देना ही पड़ेगा। अगर स्वयं दे दो तो ठीक है। इस पर रावण क्रोधित होकर बोला कि ऐसा कहने की तेरी हिम्मत कैसे हुई। जा चला जा यहां से, रात में रावण मन्दोदरी से मिला तो यह कहानी बताई मन्दोदरी पूर्णरूपेण एक पतिव्रता स्त्री थीं।

यह सुनकर उनको चिन्ता हुई और पूँछी कि फिर आपने कर दिया या नहीं ? तो रावण ने कहा तुम पागल हो मैं रावण हूँ,क्या तुम मेरी महिमा को जानती नहीं। क्या रावण कर देगा। इस पर मन्दोदरी ने कहा कि महाराज आप कर दे दो वरना इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। मन्दोदरी राजा चक्रवेणु के प्रभाव को जानती थी क्योंकि वह एक पतिव्रता स्त्री थी। रावण नहीं माना। जब सुबह उठकर रावण जाने लगा तो मन्दोदरी ने कहा कि महाराज आप थोड़ी देर ठहरो मैं आपको एक तमाशा दिखाती हूँ। रावण ठहर गया। मन्दोदरी प्रतिदिन छत पर कबूतरों को दाना डाला क़रतीं थी।उस दिन भी डाली और जब कबूतर दाना चुगने लगे तो बोलीं कि अगर तुम सब एक भी दाना चुगे तो तुम्हें महाराजाधिराज रावण की दुहाई है, कसम है। रानी की इस बात का कबूतरों पर कोई असर नहीं हुआ और वह दाना चुगते रहे।

मन्दोदरी ने रावण से कहा कि देख लिया न आपका प्रभाव। रावण ने कहा तू कैसी पागल है पक्षी क्या समझें कि क्या है रावण का प्रभाव तो मन्दोदरी ने कहा कि ठीक है अब दिखाती हूँ आपको फिर उसने कबूतरों से कहा कि अब एक भी दाना चुना तो राजा चक्रवेणु की दुहाई है। सारे कबूतर तुरन्त दाना चुगना बन्द कर दिया। केवल एक कबूतरी ने दाना चुना तो उसका सिर फट गया,क्योंकि वह बहरी थी, सुन नही पाई थी। रावण ने कहा कि ये तो तेरा कोई जादू है , मैं नही मानता इसे। और ये कहता हुआ वहां से चला गया।

रावण दरबार मे जाकर गद्दी पर बैठ गया। तभी राजा चक्रवेणु का वही व्यक्ति पुनः दरबार मे आकर पूंछा की आपने मेरी बात पर रात में विचार किया या नहीं। आपको कर रूप में सोना देना पड़ेगा। रावण हंसकर बोला कि कैसे आदमी हो तुम देवता हमारे यहां पानी भरते है और हम कर देंगे। तब उस व्यक्ति ने कहा कि ठीक है आप हमारे साथ थोड़ी देर के लिए समुद्र के किनारे चलिये। रावण किसी से डरता ही नही था सो कहा चलो और उसके साथ चला गया। उसने समुद्र के किनारे पहुंचकर लंका की आकृति बना दी और जैसे चार दरवाजे लंका में थे वैसे दरवाजे बना दिये और रावण से पूंछा की लंका ऐसी ही है न ? तो रावण ने कहा हाँ ऐसी ही है तो ? तुम तो बड़े कारीगर हो।

वह आदमी बोला कि अब आप ध्यान से देखें - महाराज चक्रवेणु की दुहाई है ऐसा कहकर उसने अपना हाथ मारा और एक दरवाजे को गिरा दिया। इधर बालू से बनी लंका का एक एक हिस्सा बिखरा उधर असली लंका का भी वही हिस्सा बिखर गया। अब वह आदमी बोला कि कर देते हो या नहीं? नहीं तो मैं अभी हाथ मारकर सारी लंका बिखेरता हूँ। रावण डर गया और बोला हल्ला मत कर ! तेरे को जितना चाहिए चुपचाप लेकर चला जा।

रावण उस व्यक्ति को ले जाकर कर के रूप में बहुत सारा सोना दे दिया। रावण से कर लेकर वह आदमी राजा चक्रवेणु के पास पहुंचा और उनके सामने सारा सोना रख दिया चक्रवेणु ने वह सोना रानी के सामने रख दिया कि जितना चाहिए उतने गहने बनवा लो। रानी ने पूंछा कि इतना सोना कहाँ से लाये ?

राजा चक्रवेणु ने कहा कि यह रावण के यहां से कर रूप में मिला है। रानी को बड़ा भारी आश्चर्य हुआ कि रावण ने कर कैसे दे दिया? रानी ने कर लाने वाले आदमी को बुलाया और पूंछा कि कर कैसे लाये तो उस व्यक्ति ने सारी कथा सुना दी। कथा सुनकर रानी चकरा गई और बोली कि - मेरे असली गहना तो मेरे पतिदेव जी हैं !! दूसरा गहना मुझे नहीं चाहिए। गहनों की शोभा पति के कारण ही है। पति के बिना गहनों की क्या शोभा ? जिनका इतना प्रभाव है कि रावण भी भयभीत होता है। उनसे बढ़कर गहना मेरे लिए और हो ही नहीं सकता। रानी ने उस आदमी से कहा कि जाओ यह सब सोना रावण को लौटा दो और कहो कि महाराज चक्रवेणु तुम्हारा कर स्वीकार नहीं करते।

कथासार मनुष्य को देखादेखी न पाप, न पुण्य करना चाहिए और सात्विक रूप से सत्यता की शास्त्रोक्त विधि से कमाई हुई दौलत में ही सन्तोष करना चाहिए। दूसरे को देखकर मन को बढ़ावा या पश्चाताप नहीं करना चाहिए। धर्म मे बहुत बड़ी शक्ति आज भी है। करके देखिए !! निश्चित शांति मिलेगी। आवश्यकताओं को कम कर दीजिए जोआवश्यक-आवश्यकता है उतना ही खर्च करिये शेष परोपकार में लगाइए। भगवान तो हमारे इन्हीं कार्यो की प्रतीक्षा में बैठे हैं, मुक्ति का द्वार खोले, किन्तु यदि हम स्वयं नरकगामी बनना चाहें तो भगवान का क्या दोष..?

कथा के आज पांचवें दिन भाग लेने वालों में बडेर के महिपाल सिंह पत्नी गुड्डी सिंह नरुका, बब्बू सिंह नरुका, प्रहलाद सिंह नरुका, राजेन्द्र सिंह नरुका तथा सैकड़ों की संख्या में माताएं बहनें उपस्थित रहीं।

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