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हनी ट्रैप में फंसा जासूस : अलवर से ISI के जाल तक, मंगत सिंह की जासूसी कहानी

Spy Trapped in Honey Trap: From Alwar to the ISI Web, Mangat Singh Spy Story - Alwar News in Hindi

सैयद हबीब, अलवर।

राजस्थान की सीआईडी इंटेलिजेंस ने हाल ही में अलवर जिले के गोविंदगढ़ निवासी 42 वर्षीय मंगत सिंह को गिरफ्तार किया है। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि वह पिछले दो वर्षों से पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के लिए जासूसी कर रहा था। सुरक्षा एजेंसियों के सूत्र बताते हैं कि यह गिरफ्तारी केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक पूरे नेटवर्क की कड़ी पकड़ने की शुरुआत है। एजेंसियों की नज़र अब उन सभी लोगों पर है जो मंगत सिंह के संपर्क में थे या उसकी गतिविधियों से लाभान्वित हो सकते थे। मंगत सिंह का पाकिस्तान से जुड़ाव किसी पारंपरिक जासूसी रूट से नहीं, बल्कि सोशल मीडिया के जरिए हुआ। जांच में सामने आया है कि वह एक महिला हैंडलर ईशा (बदला हुआ नाम) से चैटिंग करता था। ईशा ने खुद को एक “सोशल एक्टिविस्ट” और “डिफेंस रिसर्चर” बताकर उससे संपर्क साधा। कुछ महीनों में ही यह रिश्ता भावनात्मक मोड़ ले लिया — और यहीं से शुरू हुई जासूसी की कहानी।
सूत्रों के अनुसार, महिला हैंडलर ने पहले तो उससे फोटो और लोकेशन की छोटी जानकारियाँ मांगीं — जैसे कि किसी मिलिट्री एरिया के पास की तस्वीरें या मूवमेंट की खबरें। इसके बाद जब विश्वास बढ़ा, तो उसने उसे ऑपरेशन सिंदूर के दौरान और भी संवेदनशील जानकारियाँ भेजने के लिए कहा — और बदले में डॉलर में पेमेंट की पेशकश की।
ऑपरेशन सिंदूर भारत का एक ऐसा संवेदनशील सैन्य अभियान था, जिसमें उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर भारत की सक्रियता बढ़ाई गई थी। मंगत सिंह ने इसी दौरान अलवर मिलिट्री एरिया की कुछ मूवमेंट्स की जानकारी ईशा को भेजी।जांच एजेंसियों को उसके मोबाइल फोन से वॉट्सऐप चैट्स, ऑडियो नोट्स और लोकेशन फाइलें मिली हैं। इनमें से कई संदेशों में “सिंदूर” शब्द का भी उल्लेख था, जो अब एजेंसियों के लिए एक महत्वपूर्ण साक्ष्य बन गया है।
मंगत सिंह का जासूसी नेटवर्क केवल वॉट्सऐप तक सीमित नहीं था।वह टेलीग्राम, सिग्नल और X (पूर्व में ट्विटर) जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी सक्रिय था। उसके मोबाइल से ऐसे कई स्क्रीनशॉट्स और चैट रिकॉर्ड्स बरामद किए गए हैं जिनमें पाकिस्तानी नंबर और नकली आईडीज़ से बातचीत के प्रमाण मिले हैं।कई संदेशों में मंगत ने स्पष्ट रूप से “भेज दिया है, अब पेमेंट कब मिलेगी” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है।
गिरफ्तारी के बाद मंगत सिंह को जयपुर स्थित सेंट्रल एजेंसी ऑफिस में लाया गया, जहाँ उससे लगातार पूछताछ की जा रही है।सूत्र बताते हैं कि उसने स्वीकार किया है कि वह हर महीने ₹10,000 से ₹15,000 तक प्राप्त करता था, जो क्रिप्टो वॉलेट्स या ऑनलाइन गिफ्ट कार्ड्स के माध्यम से उसे भेजे जाते थे।उसके मोबाइल में जासूसी से जुड़े कई डॉक्यूमेंट्स, मिलिट्री लोकेशन के स्केच और फोटोग्राफ्स मिले हैं।
इस केस ने भारतीय एजेंसियों के लिए एक नई चुनौती उजागर की है — “डिजिटल जासूसी नेटवर्क”।अब ISI अपने पारंपरिक एजेंटों की बजाय सोशल मीडिया और साइबर स्पेस के जरिए भारतीय युवाओं को टारगेट कर रही है।हनी ट्रैप, पैसे का लालच, और वैचारिक भ्रम — यही तीन हथियार हैं जिनसे पाकिस्तान अपने एजेंट तैयार कर रहा है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद से अलवर और भरतपुर जिले लगातार एजेंसियों की निगरानी में हैं। चार महीने पहले भी डीग जिले के नगर कस्बे से दो सगे भाइयों को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। अब मंगत सिंह की गिरफ्तारी ने यह साफ कर दिया है कि सीमा से सटे ये इलाके पाकिस्तान के नेटवर्क की निगरानी रेंज में हैं।
सीआईडी इंटेलिजेंस ने मंगत सिंह से जुड़े तीन अन्य संदिग्धों की पहचान भी की है।इनमें से दो व्यक्ति राजस्थान के ही हैं जबकि एक का संपर्क हरियाणा बॉर्डर के पास पाया गया है। एजेंसियां अब फोन टॉवर लोकेशन, डिजिटल ट्रांजेक्शन और सोशल मीडिया लॉग्स की जांच कर रही हैं।
भारत में पिछले कुछ वर्षों में जासूसी के ज्यादातर मामलों में एक समान पैटर्न सामने आया है। सोशल मीडिया पर किसी महिला की फर्जी प्रोफाइल से संपर्क। भावनात्मक रिश्ता बनाना। गुप्त या सीमित जानकारी मांगना। फिर धीरे-धीरे उसे पैसे के बदले जानकारी भेजने का आदी बनाना। मंगत सिंह का केस भी इस पैटर्न की एक क्लासिक मिसाल है।
“ऑपरेशन सिंदूर” भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठानों द्वारा चलाया गया एक रणनीतिक अभियान था जिसका उद्देश्य सीमावर्ती इलाकों में सैन्य और कूटनीतिक तैयारी को मजबूत करना था। यह अभियान भारत की सीमाओं पर सक्रियता बढ़ाने और पाकिस्तान द्वारा की जा रही ड्रोन और मिसाइल गतिविधियों पर नजर रखने के लिए चलाया गया था।इसी दौरान जब मंगत सिंह जैसे लोग सूचनाएँ लीक करने लगे, तो एजेंसियों ने काउंटर-इंटेलिजेंस यूनिट को सक्रिय किया, जिसके परिणामस्वरूप यह गिरफ्तारी संभव हुई।
अलवर के गोविंदगढ़ इलाके में इस खबर ने सनसनी मचा दी है। स्थानीय लोग कहते हैं कि मंगत सिंह को उन्होंने हमेशा एक “साधारण व्यक्ति” के रूप में देखा था — कोई यह सोच भी नहीं सकता था कि वह देशविरोधी गतिविधियों में शामिल हो सकता है।कई लोग अब सोशल मीडिया पर “देशद्रोहियों को सख्त सज़ा दो” की मांग कर रहे हैं।
मंगत सिंह की गिरफ्तारी सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतावनी है। डिजिटल युग में जासूसी अब बंद कमरों या सीमा पार बैठकों में नहीं होती — वह हमारे मोबाइल, चैट और सोशल नेटवर्क के ज़रिए होती है। भारत की एजेंसियों ने भले ही इस केस में सफलता पाई हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि ISI जैसे संगठन अब साइबर स्पेस में भी सक्रिय युद्ध छेड़ चुके हैं।
अलवर से गिरफ्तार यह जासूस दिखने में एक आम नागरिक था, लेकिन उसकी हर क्लिक, हर चैट, और हर शेयर की गई फ़ाइल देश की सुरक्षा के खिलाफ एक वार थी। यह घटना याद दिलाती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि हमारे मोबाइल स्क्रीन पर भी खतरे में है। सीआईडी और सेंट्रल एजेंसियों की यह कार्रवाई न केवल एक सफलता है बल्कि एक चेतावनी भी — कि देश की गोपनीय जानकारी का कोई भी लीक, चाहे वो एक फोटो ही क्यों न हो, युद्ध से पहले की हार साबित हो सकता है।

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