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दिल को बहलाले, इजाजत है, मगर इतना न उड़। रोज सपने देख, लेकिन इस कदर प्यारे न देख।।
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-रमेश अग्रवाल-
अजमेर। कर्नाटक विधानसभा के ताजा चुनावों से कांग्रेसी कारोबार को कितना फायदा हुआ यह तो वक्त की तराजू पर तुल कर ही तय होगा। अलबत्ता बजरंगबली की ब्रैन्ड वैल्यू का सेन्सेक्स चुनाव परिणामों के साथ ही आसमान छू गया है। भक्तों का मानना है कि जो हुआ है बजरंगबली का ही चमत्कार है। भक्तजनों का यह भी दावा हैं कि उन्हें बजरंगबली का नाम लेकर ई.वी.एम. का बटन दबाने की जो सलाह दी गई थी, इसे मानने में उन्होंने कोई कोताही नहीं बरती है।ऐसी ही गर्मागरम कनकौएबाजी के बीच हमारे मित्र ने एक पुराना किस्सा याद दिला दिया। दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर चल रहे क्रिकेट मैच की कमेंटरी अपरिहार्य कारणों से कुछ देर के लिए एक मदारी को सौंप दी गई। कमेंटरी शुरू हुई वसीम अकरम की बॉल सचिन तेंदुलकर को और ये छक्का। देखिये मेरे ताबीज का कमाल। और ये अगली बॉल वसीम से सचिन को और सचिन आउट। ये भी मेरे ताबीज का कमाल। कल ही वसीम भी मेरा ताबीज लेकर गया था।लब्बोलुबाब यह कि बजरंगबली न तो कभी हारते हैं और न किसी राजनीतिक पार्टी का स्थायी ब्रैन्ड एम्बेसेडर बनने का कान्ट्रैक्ट साइन करते हैं। कर्नाटक में 224 में से 135 सीटें हथिया कर कांग्रेसी, भले मन के लड्डू फोड़ लें कि यह मोदी-शाह की व्यक्तिगत हार के साथ-साथ साम्प्रदायिकता की राजनीति का अन्त है। मगर सच्चाई यह है कि कर्नाटक की जीत, दम तोड़ती कांग्रेस के लिए संजीवनी भर है। अच्छे दिनों की गारन्टी नहीं है।वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले अभी चार राज्यों के विधानसभा चुनाव सीधे सर पर हैं। हर चौखट पर गीला गुड़ मिले यह जरूरी नहीं। अच्छी टीम के कप्तान की तरह कांग्रेस के आकाओं को शैम्पैन समारोह के बजाय ऐसे तथ्यों पर चिंतन शुरू कर देना चाहिए। जैसे इन चुनावों में भी भाजपा से दुगनी सीटें हासिल करने के बावजूद कांग्रेस कर्नाटक में भाजपा का कुल वोट शेयर नीचे क्यों नहीं ला पाई। जेडीएस के कटे हुए केक में से छिटका 5 प्रतिशत वोट शेयर कांग्रेस की रसोई तक पहुंचने के बजाय यही अगर भाजपा की पेटी में जा पहुंचता तो क्या होता? खुद भाजपा ने अगर बजरंगदल के मुद्दे को तूल देकर जेडीएस पाले के मुस्लिम वोटों को एकजुट न किया होता तो क्या होता?
जो भी हो फिलहाल इस जीत ने डूबती कांग्रेस की कश्ती को सहारा दिया है।भावी चुनावों के लिए बन रही विपक्षी दलों की साझा जाजम पर अब कांग्रेस को बेशक आगे की पंक्ति में बिठाया जा सकता है। जीत के श्रेय का बड़ा हिस्सा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिलने से कांग्रेस में करिश्माई नेतृत्व की कमी कुछ हद तक दूर भी हो सकती है। येदियुरप्पा के पतन में भ्रष्टाचार की बड़ी भूमिका से सबक लेकर कांग्रेस अपने राज्यों में इसका फायदा उठा सकती है। भाजपा के कन्ठी-माला फार्मूले के विरुद्ध मुफ्त रेवड़ियों के कार्ड की सफलता भी कांग्रेस के लिए कर्नाटक का हासिल ही कहा जा सकता है।उपरोक्त सभी ताश के पत्तों से बढ़ कर इस चुनाव में कांग्रेस की तुरुप यह भी रही कि चुनाव सम्पन्न होने तक सिद्धारमैया व डी.के. शिवकुमार जैसे तीरंदाजों के मुंह का सैलाइवा मुंह के भीतर और जहरीले तीर तरकश के अन्दर रहे। फलस्वरूप कांग्रेस अपने आपको एकजुट दिखा पाने में सफल रही। यह बात अलग है कि जीत का कुप्पा लुढ़कते ही तमाम बगुला भक्तों के मुंह का सैलाब जहर का दरिया बन कर उफन पड़ा।अभी लोकसभा चुनाव बहुत दूर है। इससे पहले इसी वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनसे भी पहले खुद कर्नाटक में कांग्रेसी एकजुटता की हांडी मुख्यमंत्री पद की हवस में सरे चौराहे फूट चुकी है।राजस्थान में सचिन पायलट को खुद कांग्रेस हाईकमान नें पार्टी की अंगिया तार-तार करने की छूट दी हुई लगती है। देखना यह है बांझ के घर बमुश्किल जाया बच्चा आंगन की खुशी कितने दिन बरकरार रख पाता है। दुआ कीजिये इस बच्चे की उम्र लम्बी हो। लोकतंत्र की बगिया में हर रंग के फूल खिले रहें, यह लोक और लोकतंत्र दोनों की सेहत के लिए जरूरी है।
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