भ्रष्टाचारियों को जेल भेजने की बातें केवल चुनावी जुमला साबित हो रही
अजमेर। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा तमाम चुनावी सभाओं और अन्य कार्यक्रमों में चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे हैं कि भ्रष्टाचार के प्रति उनकी सरकार जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंंत्री भजन लाल लगातार दावा कर रहे हैं कि भ्रष्टाचारियों को जेल भेजा जाएगा। लेकिन, ये बातें केवल चुनावी जुमला ही नजर आ रही हैं। क्योंकि अजमेर विकास प्राधिकरण की ओर से कराए गए विकास कार्यों में भ्रष्टाचार की जांच अब तक नहीं हुई है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
विकास के नाम पर करवाए गए कार्यों में अफसरों में खूब बंदरबाट हुई, परंतु न अफसरों की जिम्मेदारी तय हुई और न ही जांच हो सकी। एनजीटी द्वारा अजमेर स्मार्ट सिटी के कार्यों को तोड़ने के आदेश से हुए नुकसान की जवाबदेही किसकी है...इस सवाल का जवाब अब तक किसी के पास नहीं है।
दरअसल, अजमेर के तत्कालीन अधिकारी आईएएस अक्षय गोदारा और बीआर बेनीवाल पर यह सब कुछ आरोप लगभग तय हैं। लेकिन, कहते हैं कि शासन में जब मुखिया जी मेहरबान होते हैं तो अफसर पहलवान हो जाते हैं। ऊपर वालों की कृपा बरसती है तो नीचे के स्तर के अधिकारियों की पौ-बारह हो जाती है। नियम, कायदे-कानून का डर खत्म हो जाता है।
अजमेर विकास प्राधिकरण के आयुक्त पद पर रहते हुए गोदारा अपने अधीनस्थ बेनीवाल को मालामाल कर गए।
करोड़ों रुपए का व्यय होने के बाद अब संकट खड़ा हो गया है। यहां हुए विकास कार्यों में हाईकोर्ट व राज्य सरकार के आदेशों की अवमानना कर अधिकारियों की खूब बंदरबाट की है। खास खबर डॉट कॉम द्वारा इससे जुड़े साक्ष्य पहले भी प्रकाशित किए जा चुके हैं। इसके बाद सरकार ने कार्रवाई करते हुए अधिकारी बेनीवाल को एपीओ कर दिया गया।
सोचने का विषय यह है कि 18 दिन में तीन बार स्थानांतरित हुए अक्षय गोदारा जो कि तत्कालीन सरकार में प्राधिकरण अध्यक्ष के मुंह से निकली हर बात को बिना सोचे क्रियान्वयन करने में माहिर थे। सवाल यह है कि क्या वे किसी भी रूप में दोषी नहीं है। अजमेर स्मार्ट सिटी के निर्माण को तोड़ने के एनजीटी के आदेशों से हुए नुकसान की भरपाई कैसे होगी? इसकी जवाबदेही किसकी है? गहन जांच की जानी चाहिए।
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