तरनतारन। पंजाब राज्य पेंशन राज महासंघ की ओर से हाल ही में आयोजित एक महत्वपूर्ण बैठक में पेंशनभोगियों के अधिकारों को लेकर एक नया अध्याय जुड़ा। बैठक का आयोजन नहर कार्यालय में हुआ, जिसमें अमृतसर से आए दविंदर सिंह प्रधान के नेतृत्व में 75 वर्ष से अधिक उम्र के विनोद कुमार को सम्मानित किया गया। विनोद कुमार उन कर्मचारियों में से हैं, जो 31 मार्च के बाद सेवानिवृत्त होने वाले हैं और उन्हें पेंशन लाभ मिलना सुनिश्चित किया गया है। इस मौके पर 1974 में छीन लिए गए पेंशन लाभों का भी उल्लेख किया गया, जो अब तक कई पेंशनभोगियों के लिए एक संघर्ष का कारण बने हुए थे।
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यहां, 1974 के उस निर्णय की चर्चा की गई, जिसने सेवानिवृत्त सुरक्षा अधिकारी श्री डी.एस. नकारा को भी प्रभावित किया। श्री नकारा ने केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एचडी शौरी के माध्यम से माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 1983 में एक ऐतिहासिक निर्णय दिया, जिसमें पेंशन को कोई भिक्षा या इनाम नहीं बल्कि कर्मचारी का अधिकार बताया गया। जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़, डीई डिजाइन, ओ चिनपा रेड्डी, बीडी तुलसापुर और बहुरल इस्लाम की पांच सदस्यीय बेंच ने यह फैसला सुनाया कि पेंशन सामाजिक सुरक्षा के तहत कर्मचारियों को दी जानी चाहिए और यह किसी सरकार की इच्छा से नहीं, बल्कि उनके अधिकार के रूप में दी जाती है।
इस ऐतिहासिक निर्णय के बाद, पेंशनभोगियों ने इसे हर साल 17 दिसंबर को पेंशन दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की और इसके समाधान के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया को शुरू किया। पेंशनभोगियों ने निचले स्तर पर इकाइयाँ बनाकर अपनी संगठनात्मक गतिविधियाँ भी शुरू कीं। 1992 में, पंजाब अधीनस्थ सेवा महासंघ के प्रसिद्ध नेता अजीत सिंह बागड़ी ने पंजाब स्तर पर 'पंजाब राज पेंशनर्स महासंघ' का गठन किया, जिससे पेंशनभोगियों के मुद्दों को एक साझा मंच पर लाने में मदद मिली।
इसके साथ ही, पेंशनभोगियों के वेतन आयोग और पेंशन के बकाए का मुद्दा भी उठाया गया। 2016 से लेकर 2021 तक पेंशनभोगियों का 66 महीने का वेतन आयोग बकाया था और 252 महीने की पेंशन की किस्त भी लंबित थी। इस पर सरकार से समाधान की उम्मीद जताई गई, लेकिन अगर सरकार ने वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने में विफलता दिखाई, तो पेंशनभोगियों ने संघर्ष की चेतावनी दी। इस संघर्ष में पेंशन को 2.59 के गुणांक के साथ संशोधित करने की सिफारिश की गई थी, जिसे लागू करने के लिए सरकार को आगे बढ़ना होगा।
पेंशनभोगियों का यह संघर्ष केवल एक वित्तीय मांग नहीं है, बल्कि यह उनके अधिकारों के लिए एक लंबी और कठिन यात्रा का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पेंशन अधिकार को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन पेंशनभोगियों को अभी भी अपने अधिकारों के लिए सरकार से न्याय की उम्मीद है। अगर सरकार पेंशन की संशोधित सिफारिशों को लागू नहीं करती है, तो पेंशनभोगियों के संघर्ष की राह और भी कठिन हो सकती है, लेकिन उनका दृढ़ संकल्प निश्चित रूप से उन्हें सफलता दिलाएगा।
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