चंडीगढ़। राष्ट्रीय स्तर पर, भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) अक्सर यह कहती नजर आती है कि कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियां उसपर राजनीतिक रूप से निशाना साधती हैं। पंजाब में, स्थिति इसके उलट है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पंजाब में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी पर मुख्य विपक्षी पार्टी-शिरोमणी अकाली दल(शिअद)-भाजपा गठबंधन, आम आदमी पार्टी(आप) और पिछले कुछ महीने में अस्तित्व में आई कुछ छोटी राजनीतिक पार्टियां हमले कर रही हैं।
पंजाब में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस सरकार मई 2017 से सत्ता में है। पार्टी ने फरवरी 2017 विधानसभा चुनाव में विधानसभा की कुल 117 सीटों में से 77 सीटों पर चुनाव जीता था। बाद में हुए उपचुनाव में भी कांग्रेस ने एक सीट जीती थी, जिससे यह आंकड़ा बढ़कर 78 हो गया।
2014 आम चुनाव में, पंजाब ने भाजपा के समर्थन में मतदान करने के राष्ट्रीय ट्रेंड के विरुद्ध दो स्तरों पर मतदान किया।
पहला, अकाली-भाजपा गठबंधन यहां की 13 लोकसभा सीटों में से केवल छह पर ही जीत दर्ज कर पाई। इसमें से अकाली दल को चार और भाजपा को दो सीटें प्राप्त हुई थीं।
दूसरा, दूसरे राज्यों से खारिज कर दी गई आप पंजाब से चार लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही और लोकसभा में इसे पहली बार प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्राप्त हुआ। यह अलग बात है कि आप के दो सांसद धर्मवीर गांधी और हरिंदर सिंह खालसा मार्च 2015 से पार्टी से निलंबित चल रहे हैं।
कांग्रेस ने 2014 लोकसभा चुनाव में तीन सीटें प्राप्त की थी। 2017 में गुरुदासपुर सीट के लिए हुए उपचुनाव में पार्टी ने जीत हासिल की थी, जिससे लोकसभा में इसकी चार सीटें हो गई थीं। यहां भाजपा के सांसद विनोद खन्ना के निधन के बाद उपचुनाव कराया गया था।
यहां की 13 लोकसभा सीटों पर 19 मई को होने वाले मतदान के लिए सभी पार्टियां तैयारी कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस का स्पष्ट तौर पर मानना है कि इस दौड़ में वह आगे हैं, क्योंकि विपक्ष खंडित और अलग-थलग हैं।
शिअद में कुछ वरिष्ठ नेताओं को पार्टी से हटाया गया है या फिर गत वर्ष नवंबर में इन्होंने नया दल शिरोमणी अकाली दल(टकसाली) बनाने के लिए पार्टी छोड़ दी थी। शिअद के अध्यक्ष सुखबीर सिह बादल भले ही यह दावा कर सकते हैं कि इस दल का कोई अस्तित्व नहीं है, लेकिन टकसाली शिअद के मतों में जरूर कुछ सेंध लगाएंगे।
भाजपा तथ्य और स्थिति को भांपकर पंजाब के राजनीतिक मामले में अकाली दल के पीछे अपनी पारी खेल रही है।
कांग्रेस सिखों के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर अकाली दल पर हावी है।
पंजाब विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी आप में पिछले 3-4 वर्षो में कई वरिष्ठ नेताओं को या तो पार्टी से निलंबित कर दिया गया है या फिर उन्होंने पार्टी छोड़ दी है। जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ता असंतुष्ट हैं।
2014 के अपने प्रदर्शन को दोहराना आप के लिए काफी मुश्किल काम होगा, क्योंकि पार्टी अपने समर्थन को तेजी से खोती जा रही है। आप शिअद(टकसाली) के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रही है।
छह छोटी पार्टियों के नेताओं ने हाल ही में पंजाब डेमोक्रेटिक गठबंधन(पीडीए) बनाया है।
इनसब के बीच, कांग्रेस आराम से विपक्ष की इस स्थिति का आनंद उठा रही है।
--आईएएनएस
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