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केंद्रीय कृषि मंत्री ने किया आईसीएआर–आईआईएमआर के नए प्रशासनिक-सह-प्रयोगशाला भवन का उद्घाटन

Union Agriculture Minister inaugurates new administrative-cum-laboratory building of ICAR-IIMR - Ludhiana News in Hindi

लुधियाना। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), नई दिल्ली के भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR), लुधियाना के नवनिर्मित प्रशासनिक-सह-प्रयोगशाला भवन का उद्घाटन आज केंद्रीय कृषि, किसान कल्याण एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया। इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी, केंद्रीय रेल राज्यमंत्री रवनीत सिंह बिट्टू, पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां तथा सचिव (कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग) एवं महानिदेशक (आईसीएआर) डॉ. एम. एल. जाट सहित अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे। कार्यक्रम में देशभर से आए 1000 से अधिक मक्का हितधारकों के साथ राष्ट्रीय परामर्श बैठक आयोजित की गई, जिसमें मक्का की उत्पादकता बढ़ाने और किसानों की आय में वृद्धि के उपायों पर विचार-विमर्श किया गया। यह आधुनिक प्रशासनिक सह प्रयोगशाला भवन कुल ₹37.56 करोड़ की लागत से बना है, जिसमें जीनोमिक्स, जैव-प्रौद्योगिकी, कृषि व्यवसाय प्रवर्तन, फसल विविधीकरण, मशीनीकरण एवं डिजिटल कृषि पर अनुसंधान किया जाएगा।
चौहान ने कहा कि मक्का अब केवल एक फसल नहीं रही, बल्कि यह भारत की खाद्य, पोषण, पशु आहार, औद्योगिक और जैव-ऊर्जा सुरक्षा की आधारशिला बन चुकी है। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि आज देश कृषि उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो चुका है। उन्होंने कहा कि अब देश को चावल और गेहूँ के साथ-साथ मक्का, दलहन और अन्य फसलों में भी रूपांतरणकारी प्रगति करनी चाहिए। पिछले वर्ष मक्का उत्पादन में 10.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई और कुल उत्पादन 42 मिलियन टन तक पहुंचा।
इस वर्ष खरीफ मौसम में लगभग 10 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में मक्का की खेती बढ़ी है और उत्पादन 47 से 50 मिलियन टन तक पहुंचने की उम्मीद है। उन्होंने यह भी बताया कि मक्का अब औद्योगिक फसल के रूप में उभर रही है और एथेनॉल निर्माण में इसका लगभग 50 प्रतिशत योगदान है। एथेनॉल निर्माण से किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे देश ने ₹1.44 लाख करोड़ के कच्चे तेल आयात की बचत की है, जिनमें से ₹1.25 लाख करोड़ सीधे किसानों को भुगतान किए गए हैं। केवल मक्का से किसानों को लगभग ₹45,000 करोड़ का लाभ हुआ है, जो भारत के किसानों को “अन्नदाता से इंधनदाता” बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा जन-कल्याण के लिए अनेक पहलें की जा रही हैं, जिनमें हाल ही में पंजाब में आई बाढ़ से प्रभावित परिवारों को सहायता प्रदान करना भी शामिल है। उन्होंने लगभग 36,000 प्रभावित परिवारों की अतिरिक्त सहायता सूची को स्वीकृति देने की घोषणा की। उन्होंने यह भी बताया कि भारत किसी बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेगा और किसान सदैव सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रहेंगे। साथ ही, उन्होंने जानकारी दी कि अन्य राज्य मक्का उत्पादकता में तेजी से प्रगति कर रहे हैं, इसलिए अब पंजाब को उदाहरण बनकर नेतृत्व करना चाहिए।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में अब बीमा की इकाई को ब्लॉक स्तर से घटाकर व्यक्तिगत किसान स्तर तक कर दिया गया है, जिससे यह योजना और अधिक प्रभावी बन गई है। उन्होंने आग्रह किया कि पंजाब को भी इस योजना का हिस्सा बनना चाहिए। इसके उपरांत एक हितधारक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें पशु आहार उद्योग, हाइड्रोपोनिक हरा चारा, बायोएथेनॉल उद्योग, कृषि यंत्र निर्माण तथा साइलेंज उद्यम से जुड़े प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर विभिन्न प्रतिनिधियों ने अपने-अपने क्षेत्रों से संबंधित अवसरों और चुनौतियों पर कृषि मंत्री के साथ विचार-विमर्श किया। राज्यमंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र को अत्यधिक महत्व दे रही है और विश्वास व्यक्त किया कि कृषि अनुसंधान से प्राप्त प्रौद्योगिकियाँ और नवाचार किसानों की आय बढ़ाने में सहायक सिद्ध होंगे। आज मक्का को हर मौसम और हर क्षेत्र के लिए उपयुक्त फसल के रूप में स्थापित करने की दिशा में देश अग्रसर है। अब समय है कि भारत मक्का को औद्योगिक फसल के रूप में विकसित करे, ताकि कृषि प्रणाली अधिक टिकाऊ बने और किसानों की आय में स्थायी वृद्धि हो।
केंद्रीय रेल राज्यमंत्री रवनीत सिंह बिट्टू, ने कहा कि विकेंद्रीकरण की शक्ति पर बल देते हुए कहा कि भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान जैसी संस्थाओं का पंजाब जैसे रणनीतिक स्थानों पर होना आज भारतीय कृषि की एक बड़ी ताकत है। इस अवसर पर डॉ. एम. एल. जाट ने कहा कि प्रधानमंत्री जी का संकल्प “किसान समृद्धि और आत्मनिर्भर कृषि” मक्का जैसी बहुउद्देश्यीय फसल के माध्यम से साकार हो रहा है। भारत में मक्का अनुसंधान की संगठित शुरुआत 1957 में अखिल भारतीय समन्वित मक्का अनुसंधान परियोजना से हुई थी। वर्ष 2015 में इस परियोजना को सशक्त रूप देकर आईसीएआर–भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के रूप में स्थापित किया गया।
उन्होंने बताया कि इस संस्थान का उद्देश्य केवल अनुसंधान तक सीमित नहीं है, बल्कि फसल विविधीकरण, औद्योगिक उपयोग और किसानों की स्थायी आय सुनिश्चित करना भी है। उन्होंने कहा कि आज मक्का की खेती पूरी तरह यंत्रीकृत हो चुकी है, जिससे किसानों का श्रम, समय और लागत कम हुई है। मक्का को संरक्षण खेती के तहत उगाया जा सकता है, जो मिट्टी की सेहत सुधारने, जल संरक्षण और संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देता है। डॉ. जाट यह भी बताया कि मक्का से निर्मित पॉलीलैक्टिक एसिड बायोपॉलिमर अब बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के निर्माण में एक क्रांतिकारी विकल्प के रूप में उभर रहा है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए वरदान सिद्ध होगा और “ग्रीन इंडिया–क्लीन इंडिया” के विज़न को सशक्त बनाएगा।
कार्यक्रम में डॉ. देवेन्द्र कुमार यादव (उप महानिदेशक, फसल विज्ञान) ने ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा जमीनी स्तर तक हितधारकों से जुड़ने के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी। संस्थान के निदेशक डॉ. हनुमान सहाय जाट ने बताया कि संस्थान द्वारा विकसित 45 से अधिक उच्च उत्पादक हाइब्रिड किस्में पिछले कुछ वर्षों में 30 से अधिक निजी कंपनियों द्वारा अपनाई गई हैं। संस्थान ने 24 जैव-संवर्धित किस्में विकसित कर पोषण सुरक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। पिछले पाँच वर्षों में 40,000 क्विंटल से अधिक बीज उत्पादन किया गया है, जिससे गुणवत्तायुक्त बीज उपलब्धता और स्थानीय रोजगार को बढ़ावा मिला है।
उन्होंने बताया कि संस्थान कृषि उत्पादक संगठनों, स्व-सहायता समूहों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले मक्का बीज उत्पादन को प्रोत्साहित कर रहा है। वर्तमान में आईआईएमआर द्वारा 15 राज्यों के 78 जिलों में मक्का आधारित कैचमेंट क्षेत्र विकसित किए गए हैं, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा प्रदान कर रहे हैं। कार्यक्रम के बाद नूरपुर बेट गांव (लुधियाना) में फसल अवशेष प्रबंधन पर एक लाइव प्रदर्शन आयोजित किया गया, जिसमें हैप्पी सीडर, स्मार्ट सीडर, सुपर सीडर और सुपर–एसएमएस जैसी तकनीकों का प्रदर्शन किया गया। साथ ही, दोराहा गांव (लुधियाना) में मधुमक्खी उद्यम एवं व्यवसाय मॉडल का दौरा किया गया। इसके अलावा, “फार्मर्स चौपाल” के माध्यम से किसानों, वैज्ञानिकों और निर्माताओं के बीच संवाद स्थापित किया गया।

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