अमृतसर। गुरुनानक देव अस्पताल के डॉक्टरों व स्टाफ का विवादों से पुराना नाता रहा है। कभी प्राइवेट प्रैक्टिस करते हुए पकड़े जाना तो कभी रिश्वत लेते पकड़े जाना। इस बार दो वर्ष पुराना मामला अस्पताल प्रशासन व डॉक्टरों के गले की हड्डी बन गया है।
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दरअसल, वर्ष 2015 में अस्पताल के डॉक्टरों ने एक जिंदा मरीज को मृत घोषित कर पोस्टमार्टम हाउस में भेज दिया था। अस्पताल के दर्जा चार कर्मचारियों ने उसे पोस्टमार्टम की दीवार के पास फेंका और चलते बने। इसके बाद यह मरीज तड़प-तड़प कर मर गया। इस मामले की जांच के लिए आरटीआई कार्यकर्ता राजिंदर शर्मा राजू ने मेडिकल शिक्षा एवं खोज विभाग से आग्रह किया था। विभाग द्वारा चंडीगढ़ से कई मर्तबा जांच टीम को भेजा गया, पर परिणाम शून्य रहा। ऐसे में राजिंदर शर्मा ने ह्यूमन राइट्स कमीशन को मामले में हस्तक्षेप करने का निवेदन किया।
सोमवार की सुबह क्राइम ब्रांच की अधिकारी आईपीएस अमृत बराड़ गुरुनानक देव अस्पताल पहुंची। उन्होंने इस सारे घटनाक्रम की बारीकी से जानकारी हासिल की। इस दौरान राजिंदर शर्मा व अन्य आरटीआई कार्यकर्ता रविंदर सुल्तानविंड ने बताया कि यह मरीज लावारिस अवस्था में सड़क पर पड़ा था। डायल 108 एंबुलेंस उसे लेकर गुरुनानक देव अस्पताल पहुंची। यहां डॉक्टरों ने उसकी जांच तक नहीं की। कुछ देर बाद उसे मृत घोषित करके दर्जा चार कर्मचारियों के माध्यम से पोस्टमार्टम हाउस में भेज दिया गया। लेकिन तब तक मरीज की सांसें चल रही थीं। दर्जा चार कर्मचारी उसे स्ट्रेचर पर लादकर पोस्टमार्टम हाउस की दीवार के सहारे बिठाकर लौट गए।
इस बात की जानकारी उन्हें मिली तो पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे और मरीज को पानी पिलाया। मरीज की हालत इतनी नाजुक थी कि वह अपना नाम तक नहीं बता पाया। इस संबंध में उन्होंने अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर को फोन करके मरीज के विषय में बताया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। कुछ ही देर बाद मरीज ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। इस मामले में मानवीय संवेदनाओं का हनन हुआ है।
आईपीएस अधिकारी अमृत बराड़ ने गुरुनानक देव अस्पताल के स्टाफ से इस विषय में पूछताछ की। पत्रकारों से बातचीत करते हुए अमृत बराड़ ने कहा कि ह्यूमन राइट्स द्वारा मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंपी गई है। जांच के दौरान उन्होंने शिकायतकर्ता, थाना मजीठा रोड के पुलिस कर्मियों तथा डॉक्टरों के बयान लिए हैं। इस मामले की बारीकी से जांच की जा रही है। यदि कोई डॉक्टर दोषी पाया गया तो उस पर एफआईआर दर्ज करने से भी गुरेज नहीं किया जाएगा। ऐसे डॉक्टरों के लाइसेंस भी रद्द किए जा सकते हैं।
मरीजों से होता है दुर्व्यवहार : लाली
दूसरी तरफ अमृतसर यूथ एसोसिएशन के अध्यक्ष जयगोपाल लाली ने आईपीएस अधिकारी अमृत बराड़ को बताया कि गुरुनानक देव अस्पताल में मरीजों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं आम हैं। लावारिस मरीजों को तो अंदर नहीं घुसने दिया जाता। इस संबंध में कई बार अस्पताल प्रशासन को लिखित व मौखिक शिकायतें दी गई गईं, पर जांच कमेटी बिठाकर अस्पताल प्रशासन खामोश हो जाता है। सच तो यह है कि डॉक्टरों के खिलाफ की गई शिकायत की जांच डॉक्टरों पर आधारित कमेटी करती है। इसलिए इसकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाना तय है।
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