आईएएनएस के पास उपलब्ध पत्र में आगे कहा गया है कि परमाणु विद्युत
क्षेत्र में निजी साझेदारी को लेकर डीएई का स्पष्ट दृष्टिकोण है। पत्र में
कहा गया है, "डीएई का रुख है कि परमाणु ऊर्जा अधिनियम किसी भी रूप में
परमाणु विद्युत परियोजनाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी को नहीं रोकता।"
डीएई
के एक अधिकारी ने विभाग के रुख की व्याख्या सरल शब्दों में की है,
"अधिनियम निजी निवेश की अनुमति देता है, लेकिन सरकार की एफडीआई नीति परमाणु
परियोजनाओं में विदेशी निवेश की अनुमति नहीं देती। एफडीआई नीति में संशोधन
के बाद परमाणु विद्युत क्षेत्र में अधिक फंड के दरवाजे खुल जाएंगे।"
सूत्रों
का कहना है कि वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक कंपनी (डब्ल्यूईसी) और जीई-हिताची
(अमेरिका), फ्रांस की इलेक्ट्रिसाइट डे फ्रांस (ईडीएफ) और रूस की रोसएटम ने
भारत की परमाणु विद्युत परियोजनाओं में भागीदारी में रुचि दिखाई है।
सरकारी
सूत्रों के अनुसार, ये बहुराष्ट्रीय कंपनियां प्रौद्योगिकी, आपूर्ति या
ठेकेदार के रूप में और सेवा प्रदाता के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में
निवेश को इच्छुक हैं। लेकिन ये विदेशी कंपनियां देश में बढ़ रहीं परमाणु
विद्युत परियोजनाओं में निवेश नहीं कर सकती, क्योंकि एफडीआई नीति उन्हें
इसकी अनुमति नहीं देती है।
भारत में परमाणु बिजली कोयला, गैस,
जलविद्युत और पवन ऊर्जा के बाद बिजली का पांचवा बड़ा स्रोत है। पिछले साल
तक भारत में कुल सात परमाणु बिजली संयंत्रों में 22 परमाणु रिएक्टर स्थापित
हो चुके थे। परमाणु विद्युत संयंत्रों की कुल स्थापित क्षमता 6780 मेगावाट
की है। सूत्रों ने कहा कि यदि एफडीआई की अनुमति मिल गई तो इस क्षेत्र का बड़े पैमाने पर विस्तार होगा।
--आईएएनएस
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