मुंबई के अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली जेल से छूटते ही राजनीति में उतरने का ऐलान करता है। उसने अखिल भारतीय सेना नाम से पार्टी बनाई, और उसकी पहली रैली फ्लोरा फाउंटेन पर हुई, जहाँ डेढ़ लाख लोग जुटे। शिवसेना के दशकों से स्थापित वर्चस्व को चुनौती देते हुए, यह किसी गैंगस्टर द्वारा किया गया पहला सियासी शक्ति प्रदर्शन था, और इसमें भीड़ बालासाहेब ठाकरे की दशहरा रैली को मात दे रही थी।
1966 में शुरू हुई दशहरा रैली में ठाकरे का भाषण शिवसैनिकों के लिए एक संदेश जैसा होता था। 1994 में बाल ठाकरे की दशहरा रैली में एक लाख लोग पहुंचे थे, लेकिन गवली की रैली ने मुंबई की सियासत में भूचाल ला दिया। इस तरह शिवसेना के गढ़ में गवली की मौजूदगी एक नई चुनौती लेकर आई। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
बाल ठाकरे ने गवली के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए तत्कालीन पुलिस कमिश्नर से "इलाज करने" की बात कही थी। ठाकरे का यह बयान अंडरवर्ल्ड में शिवसेना की सांठगांठ को संकेत करता था, लेकिन इस ताकतवर गठबंधन की नींव हाजी मस्तान ने पहले ही रख दी थी।
हाजी मस्तान से गवली तक : अंडरवर्ल्ड की सियासी यात्रा
मुंबई में अंडरवर्ल्ड की शुरुआत 1960-70 के दशक में हुई थी। करीम लाला, वरदराजन मुदलियार और हाजी मस्तान के नेतृत्व में तीन हिस्सों में बंटे मुंबई पर इनका राज चलता था। हाजी मस्तान ने सियासी ज़मीन पर पैर जमाने के लिए दलित-पिछड़ा माइनॉरिटी महासंघ बनाया, लेकिन चुनाव में हार ने मस्तान के इस सपने को टूटने पर मजबूर कर दिया।
गवली ने हाजी मस्तान के नक्शे-कदम पर चलते हुए राजनीति में कदम रखा, और जल्दी ही उसकी पार्टी का प्रभाव मुंबई के 31 जिलों में फैल गया। गवली ने चिंचपोकली सीट से 2004 में चुनाव जीतकर विधायक बनकर अंडरवर्ल्ड और राजनीति की सीमा मिटा दी।
जब डॉन बोले भाई, तो जीत तय
अंडरवर्ल्ड और सियासत में समझने वाले एक्सपर्ट का मानना है कि मुंबई में चुनावों में अंडरवर्ल्ड का असर हल्का-फुल्का जरूर रहा, पर यहाँ उत्तर प्रदेश या बिहार जैसी बाहुबली राजनीति नहीं थी। "यहाँ अंडरवर्ल्ड कैंडिडेट के प्रचार में भीड़ जुटाने के लिए पैसे लेता था। गवली ने शिवसेना की पकड़ को कमजोर कर दिया था, जिससे बाल ठाकरे को घबराहट हुई। फिर एक रात अचानक पुलिस ने गवली को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन कोर्ट ने गिरफ्तारी को असंवैधानिक बताया," विवेक कहते हैं।
1993 के बम ब्लास्ट से अंडरवर्ल्ड का दबदबा कम होना शुरू हुआ
1993 के मुंबई बम ब्लास्ट के बाद अंडरवर्ल्ड के खिलाफ बड़ी कार्रवाई शुरू हुई। पुलिस ने कई गैंगस्टरों का एनकाउंटर किया और गैंग्स को बिखेरने के लिए बड़े ऑपरेशंस चलाए। बम ब्लास्ट के बाद दाऊद इब्राहिम और अबू सलेम जैसे नाम दुबई और विदेश भाग गए। पुलिस ने एनकाउंटर पॉलिसी अपनाकर मुंबई को धीरे-धीरे अंडरवर्ल्ड के असर से बाहर निकाला।
राजनीति में बचे हुए 'भूत' और सियासी गठजोड़
समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी पर अंडरवर्ल्ड के कनेक्शन का आरोप लगा था। हालांकि उन्होंने अपनी बेगुनाही का दावा किया और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें निर्दोष ठहराया। अबू आजमी ने अंडरवर्ल्ड के माहौल का फायदा उठाकर 2009 में मानखुर्द-शिवाजी नगर सीट से विधायक बन गए।
अब अंडरवर्ल्ड का असर कम, लेकिन छवि बरकरार
रिटायर्ड पुलिस अफसरों के मुताबिक बाबरी मस्जिद विवाद और 1993 के बम ब्लास्ट के बाद गैंग के लोगों के एनकाउंटर और ऑपरेशंस ने मुंबई के चुनावी परिदृश्य को बदल दिया। पहले ताकत के इस्तेमाल की खबरें आती थीं, लेकिन अब लोग जागरूक हो गए हैं और अंडरवर्ल्ड का चुनावों पर असर लगभग खत्म हो गया है।
चुनाव में बदलता परिदृश्य
अबू आजमी जैसे नेता अंडरवर्ल्ड के कनेक्शन से चुनाव जीतने का मौका ढूंढ़ते हैं। उधर, BJP ने NCP नेता नवाब मलिक पर दाऊद का करीबी होने का आरोप लगाया, लेकिन अजित पवार ने उन्हें टिकट देकर सियासी घमासान में नया मोड़ ला दिया।
अंडरवर्ल्ड का प्रभाव भले ही कम हो गया हो, लेकिन सियासत में उसकी परछाई अब भी दिखाई देती है। मस्तान से लेकर गवली और आजमी तक, इन डॉनों की सियासी महत्वाकांक्षाओं ने मुंबई की राजनीति को एक खौफनाक पटल दिया है, जो अभी भी सियासत और सत्ता में गहरे उतर चुका है।
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