इसके अलावा जावेद, मुखर्जी दंपति (पीटर और उस समय उनकी पूर्व पत्नी
इंद्राणी) को सामाजिक रूप से जानते थे और उनकी ईद पार्टी में आमंत्रित भी
थे। मारिया तब आश्चर्यचकित रह गए कि क्या नए सीओपी (जावेद) के पदभार
संभालने से पहले मुख्यमंत्री और तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) के.पी.
बख्शी को इस बारे में पता था? इसके साथ ही मारिया ने रायगढ़ जिला पुलिस की
भूमिका की जांच का उल्लेख किया, क्योंकि शीना बोरा के अवशेषों को गागोड के
जंगलों में पाया गया था।
उन्होंने सवाल उठाए कि क्या सबूत नष्ट करने का
कोई प्रयास किया गया था और साथ ही एक प्रश्न पूछा, उस जांच का क्या हुआ? एक
टीवी साक्षात्कार का जिक्र करते हुए जिसमें फड़णवीस ने सुझाव दिया कि
(मारिया) पीटर मुखर्जी को क्लीन चिट देकर गुमराह कर रहे हैं, इस पर मारिया
ने यह कहते हुए खुद का बचाव किया कि उन्होंने कभी उन्हें (पूर्व
मुख्यमंत्री) नहीं कहा कि पीटर मुखर्जी उनकी जांच के दायरे में नहीं हैं।
तमाम खुलासों से पता चलता है कि उन्होंने आखिरकार यह सुनिश्चित करने के लिए
अपना संस्मरण लिखने का फैसला किया कि उनका नाम पुलिस आयुक्त के रूप में
काले अक्षरों में न लिखा जाए, जिन्होंने पीटर मुखर्जी को ढाल देने के लिए
कथित तौर पर मुख्यमंत्री तक को गुमराह किया।
मारिया से उनकी सेवानिवृत्ति
के बाद मीडिया ने सवाल किया कि क्या उन्हें शीना बोरा मामले से निपटने में
कोई खेद है, इस पर मारिया ने कहा कि पुलिस आयुक्त का पद एक शोपीस नहीं है,
वह रिबन काटने, उद्घाटन और पेज-थ्री घटनाओं के लिए नहीं है, बल्कि यह नौकरी
कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने व गंभीर अपराधों की जांच करने के लिए है।
(IANS)
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