चतुर्वेदी से जब पूछा गया कि बेटा सपा से चुनाव लड़ रहा है, पार्टी आप पर
कार्रवाई कर सकती है, तो उनका जवाब था, "मैं कांग्रेस में जन्मा हूं,
कांग्रेसी रक्त मेरी नसों में प्रवाहित होता है, दिल में कांग्रेस है,
पार्टी को फैसले लेने का अधिकार है, मगर मेरे दिल से कोई कांग्रेस को नहीं
निकाल सकता। अंतिम सांस भी कांग्रेस के लिए होगी। सत्यव्रत चतुर्वेदी के
पिता बाबूराम चतुर्वेदी और मां विद्यावती चतुर्वेदी कांग्रेस की प्रमुख
नेताओं में रही हैं। दोनों ने आजादी की लड़ाई लड़ी, इंदिरा गांधी के काफी
नजदीक रहे। बाबूराम चतुर्वेदी राज्य सरकार में मंत्री रहे और विद्यावती कई
बार सांसद का चुनाव जीतीं। बुंदेलखंड में उनकी हैसियत दूसरी इंदिरा गांधी
के तौर पर रही है। ये भी पढ़ें - यहां कब्र से आती है आवाज, ‘जिंदा हूं बाहर निकालो’
चतुर्वेदी के समकालीन नेताओं में शामिल दिग्विजय
सिंह, कांतिलाल भूरिया, सुभाष यादव आदि ऐसे नेता हैं, जिनके परिवार में एक
और एक से ज्यादा सदस्यों को कांग्रेस ने उम्मीदवार बनाया है, मगर
चतुर्वेदी के बेटे को पार्टी ने टिकट देना उचित नहीं समझा। इसी के चलते
उनके बेटे बंटी ने बगावत कर दी।
अन्य नेताओं के परिजनों को टिकट दिए जाने के सवाल पर चतुर्वेदी का कहना है,
"इस सवाल का जवाब तो मैं नहीं दे सकता, यह जवाब तो पार्टी के बड़े नेता और
टिकटों का वितरण करने वाले ही दे सकते हैं, जहां तक बात मेरी है, मन में
तो मेरे भी सवाल आता है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों।
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