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धधकती धरती और सूखते तालाब : धुलकोट में पानी की जंग, मछलियां बचाने जुटे सैकड़ों ग्रामीण

Burning earth and drying ponds: Water war in Dhulkot, hundreds of villagers gathered to save fish - Burhanpur News in Hindi

बुरहानपुर। धरती तप रही है, आसमान से आग बरस रही है और धुलकोट की मिट्टी प्यास से कराह रही है। अप्रैल के अंतिम सप्ताह ने मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के धुलकोट क्षेत्र में जल संकट की भयावहता को खुलकर सामने ला दिया है। कभी लहरों से अठखेलियाँ करते तालाब अब प्यासे आकाश की ओर टकटकी लगाए दम तोड़ते नज़र आ रहे हैं। कुम्हार नाला तालाब: अब सिर्फ एक याद कुम्हार नाला तालाब, जो कभी ग्रामीणों की जीवनरेखा हुआ करता था, आज चुल्लू भर पानी में सिमट गया है। उसका कलेजा फट रहा है और उसके सीने पर दरारें बन गई हैं। पानी की कमी ने न सिर्फ इंसानों की प्यास बढ़ाई है, बल्कि जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर भी संकट खड़ा कर दिया है। तालाब का shrinking water level मछलियों के लिए मौत का फंदा बन चुका है।
तालाब में जीवन बचाने का महासंग्राम
तीन दिन से सूरज की पहली किरण के साथ ही सैकड़ों ग्रामीण तालाब की तरफ दौड़ पड़ते हैं। मच्छरदानियाँ, जाल और खाली हाथ — जो जो भी जिसके पास है, लेकर वे पानी में उतर जाते हैं। कोई बच्चा अपनी छोटी-सी हथेली से तड़पती मछली थामने की कोशिश करता है, तो कोई बुजुर्ग मच्छरदानी में फंसी मछलियों को बचाने का प्रयास करता है। महिलाओं की साड़ी भी जाल बन जाती है, और बच्चों के खिलखिलाते चेहरे भी कभी-कभी इस संघर्ष में मुस्कान ले आते हैं।
दूर से देखिए तो यह दृश्य किसी विशाल मेले जैसा लगता है — पर यह कोई त्योहार नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच जारी एक मौन संग्राम है।
भूख और जरूरत की तस्वीर
तालाब से निकलती मछलियां इन ग्रामीणों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी हैं और जीवन की उम्मीद भी। कोई मछलियों को थैलियों में भर रहा है, कोई छोटी बाल्टियों में। कई बच्चे मछली पकड़ने की इस दौड़ को खेल समझ रहे हैं, जबकि बड़ों के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें साफ दिखाई देती हैं — आज जो मछलियां बचा ली जाएंगी, वही कल उनकी भूख मिटाएंगी।
धुलकोट ही नहीं, संकट पूरे इलाके पर
धुलकोट की कहानी अकेली नहीं है। पास के ईटारिया, भगवानिया और झिरपांजरिया गांवों के तालाब भी इसी हाहाकार की चपेट में हैं। भूमिगत जल तेजी से नीचे जा रहा है और आने वाले मई-जून में इस क्षेत्र में जल संकट के और भयावह होने की आशंका गहरा रही है।
पानी के लिए भविष्य की लड़ाई
ग्रामीण अब खुलेआम कहने लगे हैं कि पानी के लिए लड़ाई अभी शुरू हुई है। खेत सूख रहे हैं, जानवर प्यास से बेहाल हैं और अब तो इंसानों के होंठ भी फटने लगे हैं। अगर समय रहते पानी के वैकल्पिक इंतजाम नहीं किए गए तो धुलकोट और आसपास के इलाके एक बड़ी त्रासदी का सामना कर सकते हैं।
सरकारी उदासीनता पर सवाल
स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने कई बार प्रशासन से गुहार लगाई थी कि तालाबों की सफाई कराई जाए, जलस्रोतों का संरक्षण हो, लेकिन अफसरशाही के ढीले रवैये के कारण हालात बेकाबू हो गए हैं। आज जब संकट सामने खड़ा है, तब सरकारी महकमा भी हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहा।
धरती की चीख और उम्मीद की लौ
धुलकोट की यह कहानी महज एक गांव की नहीं है, बल्कि यह पूरे देश को चेतावनी देती है — अगर हमने जलस्रोतों का सम्मान नहीं किया, तो कल को हर गली-मोहल्ले में ऐसा ही संघर्ष होगा। लेकिन इस संघर्ष के बीच भी उम्मीद की लौ जली है — जब बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं एकजुट होकर मछलियों को बचाने के लिए तालाब में उतर सकते हैं, तो क्या हम सभी मिलकर जल संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा सकते?

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Web Title-Burning earth and drying ponds: Water war in Dhulkot, hundreds of villagers gathered to save fish
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