ज्ञात हो कि जुलाई 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
न्यायामूर्ति ए.के. पटनायक और न्यायमूर्ति एस. जे. मुखोपाध्याय की युगलपीठ
ने फैसला दिया था, जिसके अनुसार, सांसद और विधायक किसी निचली अदालत द्वारा
दोषी करार दिए जाने के साथ ही अयोग्य हो जाएंगे। इसी फैसले के आधार पर
विधानसभाध्यक्ष एन.पी. प्रजापति ने विधानसभा क्षेत्र को शून्य घोषित करने
की अधिसूचना जारी कर दी।
इस तरह वर्तमान में विधानसभा में कांग्रेस
की स्थिति पहले से कहीं बेहतर हो गई है। 230 सदस्यीय विधानसभा में वर्तमान
में 229 विधायक हैं। इसमें कांग्रेस के 115 यानी उसे वर्तमान में सदन में
पूर्ण बहुमत हासिल है। वहीं भाजपा के विधायकों की संख्या घटकर 107 हो गई
है। इसके अलावा निर्दलीय चार, बसपा के दो और सपा का एक विधायक है।
झाबुआ
उपचुनाव और पवई विधानसभा के शून्य घोषित किए जाने के बाद कांग्रेस और
सरकार ने राहत की सांस ली है। बीते 11 माह के कार्यकाल में हुए दो विधानसभा
क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। छिंदवाड़ा से
कांग्रेस के तत्कालीन विधायक दीपक सक्सेना के इस्तीफा देने पर वहां से
कमलनाथ निर्वाचित हुए और अब झाबुआ से भूरिया जीते हैं। आगामी छह माह में
पवई में भी उपचुनाव होने के आसार हैं।
भाजपा ने विशेष अदालत के
फैसले के बाद विधानसभाध्यक्ष द्वारा अधिसूचना जारी करने पर सवाल उठाए हैं
और राज्यपाल लालजी टंडन को ज्ञापन सौंपा है। भाजपा के वरिष्ठ विधायक और
पूर्व विधानसभाध्यक्ष का कहना है कि विधानसभाध्यक्ष ने संविधान के खिलाफ
जाकर विधायक की सदस्यता रद्द की है, लिहाजा इस फैसले को रद्द किया जाना
चाहिए, क्योंकि यह अधिकार तो राज्यपाल का है।
वहीं, मुख्यमंत्री
कमलनाथ को भरोसा है कि आने वाले दिनों में और भी विधायक उनके करीब आ सकते
हैं। उनका कहना है कि "दो-तीन विधायक कभी भी बढ़ सकते हैं, इंतजार की
कीजिए।"
राजनीतिक विश्लेषक शिवअनुराग पटेरिया का मानना है कि झाबुआ
उपचुनाव और पवई विधायक को लेकर हुए फैसले के बाद राज्य सरकार राजनीतिक और
प्रशासनिक स्वतंत्रता की ओर बढ़ रही है, क्योंकि बहुमत न होने के कारण उसे
दबाव में आकर कई राजनीतिक और प्रशासनिक फैसले बदलना होते थे, मगर अब ऐसी
स्थिति से सरकार अपने को उबार लेगी।
राज्य में कांग्रेस अगर संभावित
पवई विधानसभा के उपचुनाव में जीत हासिल कर लेती है तो वह पूर्ण बहुमत की
सरकार तो हो ही जाएगी, साथ में बाहरी समर्थन का दबाव भी उस पर से खत्म हो
जाएगा। वहीं समर्थन देने वाले विधायकों का सियासी रुतबा भी कम होना तय है।
इसके ठीक उलट अगर भाजपा ने पवई पर अपना कब्जा बरकरार रखा तो समर्थन करने
वालों की सियासत चमकी रहेगी। यह सब भविष्य पर निर्भर है।
--आईएएनएस
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