मुख्य सूचना आयोग के आदेश में कहा गया है कि अपीलकर्ता ने राज्यपाल की
बीमारी और देयकों की जानकारी नहीं मांगी है, बल्कि उनके उपचार पर वर्ष वार
खर्च हुई राशि का ब्योरा मांगा है। लिहाजा यह ब्योरा उन्हें दिया जाए।
आरटीआई कार्यकर्ता खरे ने कहा कि राजनीतिक दल अपने बुजुर्ग नेताओं को
चिकित्सा सहित अन्य सुविधाएं मुहैया कराने के मकसद से राज्यपाल जैसे
संवैधानिक पद पर बैठा देते हैं।
एक तरफ दल 75 साल के बाद अपने नेताओं को
चुनाव लडऩे के योग्य नहीं पाते, दूसरी ओर उन्हें राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण
पद की जिम्मेदारी सौंप देते हैं। खरे से जब राज्यपालों के इलाज पर हुए खर्च
की जानकारी मांगने के बारे में पूछा गया तो, उन्होंने कहा कि मेरे दिमाग
में एक बात बार-बार आती थी कि आखिर बुजुर्ग नेताओं को राज्यपाल क्यों बनाया
जाता है।
कहीं बेहतर चिकित्सा सुविधा देने की मंशा तो नहीं होती। अब यह
बात साफ हो गई है कि वास्तव में राजनीतिक दलों का मकसद बुजुर्ग नेताओं का
जीवन सुखमय बनाना होता है। खरे के अनुसार, जब संविधान में 35 साल से ज्यादा
आयु के व्यक्ति को राज्यपाल बनाने का प्रावधान है तो राजनीतिक दल इसके
मुताबिक राज्यपाल क्यों नहीं बनाते। युवाओं को मंत्री तो बना दिया जाता है,
मगर राज्यपाल नहीं।
(IANS)
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