भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी में 33 साल पहले हुए गैस हादसे में मिली बीमारी ने कई महिलाओं की कोख को आबाद नहीं होने दिया। कई परिवारों के आंगन में हादसे के बाद कभी किलकारी नहीं गूंजी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
गैस हादसे के बाद जन्मी तीसरी पीढ़ी भी बीमार और असक्त पैदा हो रही है। इन बच्चों की जिंदगी को संवारने के काम में लगीं रशीदा बी बताती हैं कि उनके परिवार की एक महिला चार बार गर्भवती हुई, मगर मां नहीं बन पाई, क्योंकि उसका गर्भ हर बार गिर गया।
रशीदा बी के मुताबिक, ‘‘यूनियन कार्बाइड से रिसी गैस का असर आज भी है। कई महिलाएं ऐसी हैं, जो कभी मां ही नहीं बन पाईं। यह बात कई शोधों से भी जाहिर हो चुकी है। एक महिला के जीवन का सबसे बड़ा दर्द मां न बनना होता है।’’
ज्ञात हो कि भोपाल के लिए दो-तीन दिसंबर, 1984 की रात तबाही बनकर आई थी। इस रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी मिथाईल आइसो सायनाइड (मिक) गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था, वहीं लाखों लोगों को जिंदगी और मौत के बीच झूलने को मजबूर कर दिया था।
अशोका गार्डन क्षेत्र में रहने वाली राधा बाई के तीन बच्चों को गैस निगल गई थी। तीनों बच्चों की मौत के बाद वह कभी मां नहीं बन पाईं और फिर कभी उनके आंगन में किलकारी नहीं गूंजी।
वह बताती हैं कि जहारीली गैस ने जहां उनके तीन बच्चों को छीन लिया, वहीं उन्हें बीमारियों का बोझ ऊपर से दे दिया। आखों से साफ दिखाई नहीं देता है, पेट की बीमारी उन्हें सुकून से सोने तक नहीं देती है। पेट फूल जाता है, चलते तक नहीं बनता।
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