चुनाव आदर्श आचार संहिता के मद्देनजर राज्य सरकार संकट से निपटने के लिए
पहल शुरू करने के लिए चुनाव आयोग से अनुमति की मांग कर सकती है। बुंदेलखंड
के गांवों में नवंबर से ही पानी का अभाव पैदा हो गया था। क्षेत्र में पांच
साल में लगातार चौथे साल सूखे की स्थिति है जबकि प्रदेश के बाकी हिस्से
में 2017 में औसत मानसून रहा था।
बुंदेलखंड के टिकमगढ़ जिले के कुछ
ग्रामवासियों को तीन साल से अधिक समय से पानी लाने के लिए पांच किलोमीटर से
ज्यादा दूरी तय करनी पड़ती है। स्वच्छ भारत अभियान भी यहां
प्रभावित हुआ है, क्योंकि महिलाओं को शौचालय के लिए लंबी दूरी तय करनी
पड़ती है। अधिकांश गांवों के सामुदायिक शौचालयों में पानी नहीं है।
सूखा प्रभावित इन 36 जिलों में इस साल कटनी का हाल सबसे खराब है जहां 305 गांवों में पानी का संकट बना हुआ है। मुख्यमंत्री कमलनाथ के क्षेत्र छिंदवाड़ा में जल प्रबंधन विफल है और 145 गांवों में पानी का संकट व्याप्त है।
रीवा, छतरपुर, झाबुआ, रायगढ़, सागर, सिवनी, देवास, मंडला, नीमच, दमोह और शिवपुरी जिलों के 2,000 गांव भी सूखे से प्रभावित हैं। सरकार
ने वन अधिकार सुरक्षा कानून की तर्ज पर जलाशय अधिकार सुरक्षा कानून बनाने
के लिए कमीशनर कमांड एरिया डेवलपमेंट की अध्यक्षता में एक समिति का गठन
किया है।
प्रदेश की राजधानी भोपाल में कहने के लिए बड़ी-बड़ी झीलें
हैं, लेकिन प्रशासन ने औपचारिक रूप से इसे कम पानी की उपलब्धता वाला
क्षेत्र घोषित किया है।
(आईएएनएस)
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