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कल्याणकारी राज्य को बकाये की मांग के लिए मजबूर किए बिना अनुबंध कार्य के लिए भुगतान करना चाहिए : केरल एचसी

Welfare state should pay for contract work without forcing it to demand dues: Kerala HC - Thiruvananthapuram News in Hindi

तिरुवनंतपुरम। केरल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि एक कल्याणकारी राज्य अपने द्वारा अनुबंध के आधार पर लगे नागरिकों को अनुबंध के तहत शर्तों के अनुरूप भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, बिना ऐसी स्थिति पैदा किए जहां नागरिकों को ऐसे भुगतानों की मांग करनी पड़े। अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें एक ठेकेदार को राज्य सरकार द्वारा इस आधार पर भुगतान करने से मना कर दिया गया था कि लिमिटेशन एक्ट के तहत निर्धारित भुगतान करने की समय अवधि समाप्त हो गई है।
अदालत ने कहा कि इन सबसे ऊपर, एक कल्याणकारी राज्य में राज्य का कर्तव्य और दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के हितों और आजीविका के साधनों को हराने के तरीकों और साधनों को खोजने के बजाय उनके हितों की रक्षा करे।

याचिका एक पंजीकृत लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) ठेकेदार के दो बेटों द्वारा दायर की गई थी, क्योंकि ठेकेदार का निधन हो गया था। सिंचाई विभाग ने पीडब्ल्यूडी के ठेकेदार के. मुरलीधरन को कुछ निर्माण कार्य सौंपे थे, लेकिन वह काम को अंजाम देने में असमर्थ थे और इसलिए, याचिकाकर्ता के पिता के नाम पर काम सौंपने के लिए पावर ऑफ अटॉर्नी में प्रवेश किया।

तद्नुसार सुपरिटेंडिंग इंजीनियर की अनुमति से याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा एक करार निष्पादित किया गया। परेशानी तब शुरू हुई जब मुरलीधरन को सिंचाई विभाग द्वारा किसी अन्य अनुबंध में देनदारी दी गई, और सरकार ने इसे याचिकाकर्ताओं के पिता की बिल राशि से वसूलने का प्रयास किया।

इसके बाद, याचिकाकर्ताओं के पिता ने मुंसिफ की अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सरकार को मुरलीधरन की देनदारी के लिए याचिकाकर्ता के पिता को देय किसी भी राशि को रोकने या समायोजित करने से रोकने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की गई थी।

हालांकि मुंसिफ अदालत ने मामले को खारिज कर दिया, लेकिन अतिरिक्त जिला अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पिता की अपील पर उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

हालांकि, सरकार ने याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा उनके द्वारा प्रस्तुत बिलों में दावा किए गए हिस्से का ही भुगतान किया और कहा कि बाकी को मुरलीधरन के बकाये के खिलाफ समायोजित करने की जरूरत है।

इस बीच, सरकार ने हाईकोर्ट के समक्ष एक अपील दायर की और उसे बाद में खारिज कर दिया गया, याचिकाकर्ताओं के पिता द्वारा प्रस्तुत बिल की राशि से मुरलीधरन की देनदारियों को वसूलने से सरकार को रोकने वाली हिदायत (निषेधाज्ञा) के निचली अदालत के आदेश को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।

याचिकाकर्ताओं के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने वर्तमान याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें सिंचाई विभाग को उनके पिता द्वारा किए गए अनुबंध कार्य के संबंध में उन्हें 7,50,758 रुपये की राशि देने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

उन्होंने इस राशि पर 12 फीसदी सालाना ब्याज की भी मांग की। सिंचाई विभाग ने अपने जवाबी हलफनामे में तथ्यों और आंकड़ों को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाया गया दावा परिसीमा कानून द्वारा वर्जित था।

हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पिता, जिन्होंने सरकार की संतुष्टि के लिए अनुबंध कार्य को अंजाम दिया था, के पैसे से मुरलीधरन के बकाये को किसी अन्य काम के लिए समायोजित करने की सरकार की कार्रवाई अवैध और मनमानी थी।

इसने सिंचाई विभाग को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकतार्ओं को बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसमें विफल रहने पर उन्हें नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ भुगतान करना होगा।
--आईएएनएस

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Web Title-Welfare state should pay for contract work without forcing it to demand dues: Kerala HC
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