तुमकुर (कर्नाटक)। कर्नाटक में तुमकुरु जिला प्रशासन देवताओं को खुश करने के लिए भैंस के बजाय बैल की बलि देने को लेकर चिंतित है। पशु बलि से संबंधित नया कानून पिछले साल दिसंबर में पारित किया गया था। इसके तहत गाय, गाय के बछड़ों, सभी उम्र के बैल और 13 साल से कम उम्र की भैंसों के वध पर प्रतिबंध लगाया था। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पशु बलि पर प्रतिबंध का उद्देश्य किसी भी प्राणी के प्रति क्रूरता के बारे में जागरूकता पैदा करना है। हालांकि, सैकड़ों वर्षों से देवताओं को जानवरों की बलि देने वाले ग्रामीण इस प्रथा को जारी रखने पर अड़े हैं।
तुमकुरु जिले के बेलीबाटलू गांव के ग्रामीणों ने भैंसों की जगह बैलों की बलि दी है। पावागड़ा के तहसीलदार, वरदराजू के अनुसार, अधिकारी गांव में बलिदान के संबंध में जानकारी एकत्र करेंगे और आगे की कार्रवाई के लिए जिला आयुक्त को एक रिपोर्ट सौंपेंगे।
इस बीच, देवताओं को बैलों की बलि को लेकर हुए विवाद पर ग्रामीणों ने रोष जताया। उन्होंने दावा किया कि पूरे पावागड़ा तालुक में, शक्ति देवताओं की पूजा के लिए जानवरों की बलि दी जाती है।
उन्होंने कहा कि चूंकि एक महीने से पूरे तालुक में बैल की बलि दी जाती है, इसलिए इस मुद्दे को उजागर करने की कोई आवश्यकता नहीं है, यह रेखांकित करते हुए कि यह सदियों से एक परंपरा रही है।
बेलीबटलू गांव में, चौदेश्वरी देवता के लिए बैलों की बलि दी जाती थी, क्योंकि प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। परंपरा के अनुसार, बकरियों, मेढ़ों और भैंसों की बलि विधिपूर्वक दी जाती है।
2007 में भैंसों की बलि देने की प्रथा पर आपत्ति जताई गई और जिला प्रशासन में शिकायत दर्ज कराई गई।
ग्रामीणों ने कहा कि जिला आयुक्त ने तब भैंस की बलि पर प्रतिबंध लगा दिया था और सुझाव दिया था कि वे किसी अन्य जानवर की बलि दें। तभी से बुजुर्ग बैलों की बलि देने लगे।
हालांकि कुछ ग्रामीणों ने इस संबंध में नौ मई को फिर से जिला आयुक्त व पुलिस अधीक्षक से शिकायत कर बैलों की बलि रोकने की अपील की थी।
--आईएएनएस
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