रांची। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू झारखंड के दो दिवसीय दौरे पर गुरुवार शाम रांची पहुंचीं। यहां बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर झारखंड के राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनका स्वागत किया। इसके बाद राष्ट्रपति राजभवन पहुंचीं, जहां वह रात्रि विश्राम करेंगी।
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राष्ट्रपति का यह दौरा कई मायनों में खास है। वह 20 सितंबर को रांची के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सेकेंडरी एग्रीकल्चर (एनआईएसए) की 100वीं वर्षगांठ पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगी।
इसके अलावा वह राजभवन के मूर्ति गार्डन का लोकार्पण करेंगी। इस गार्डन में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संघर्ष और स्वतंत्रता आंदोलन में शहीद हुए बाबा तिलका मांझीं, नीलांबर-पीतांबर, तेलंगा खड़िया, गया मुंडा, वीर बुधू भगत, सिदो-कान्हू, टाना भगत और परमवीर अल्बर्ट एक्का के साथ-साथ स्वामी विवेकानंद की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
खास बात यह है कि इस गार्डन का शिलान्यास भी द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के राज्यपाल के तौर पर किया था। राष्ट्रपति के रांची आगमन पर झारखंड के राज्यपाल ने उनके स्वागत की तस्वीर सोशल मीडिया पर साझा करते हुए लिखा, "माननीय राष्ट्रपति महोदया, झारखंड की पावन धरती पर आपका अभिनंदन एवं जोहार! आपके आगमन से समस्त राज्यवासियों में हर्ष एवं उत्साह का वातावरण है।"
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "झारखंड की वीर भूमि में देश की माननीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का हार्दिक अभिनंदन, स्वागत और जोहार।"
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के राज्यपाल के तौर पर रांची स्थित राजभवन में छह वर्ष गुजारे हैं। वह वर्ष 2023 के मई महीने में रांची में थीं तो उन्होंने राजभवन में अपने प्रवास को सुखद बताते हुए विजिटर्स बुक में लिखा था, "राजभवन के सुंदर परिसर में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। यहां पर प्रवेश करते ही इस भवन में बिताए छह वर्षों की मधुर स्मृतियां जीवंत हो उठीं।"
राष्ट्रपति शुक्रवार को रांची के नामकुम स्थित जिस राष्ट्रीय माध्यमिक कृषि संस्थान के शताब्दी समारोह में भाग लेने वाली हैं, उसका इतिहास भी गौरवशाली रहा है। पहले इस संस्थान को भारतीय लाह अनुसंधान केंद्र और भारतीय प्राकृतिक राल एवं गोंद संस्थान के नाम से जाना जाता था। 20 सितंबर, 1924 में ब्रिटिश भारत में स्थापित हुआ यह संस्थान देश में अपनी तरह का इकलौता है।
सितंबर, 2022 में भारत सरकार ने इसका नाम नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सेकेंडरी एग्रीकल्चर कर दिया। इस संस्थान ने अपने 100 वर्षों की यात्रा में लाह और गोंद के रिसर्च के क्षेत्र में उपलब्धियों के अनेक कीर्तिमान कायम किए हैं। इसने राज्य और राज्य के बाहर के लाखों किसानों को लाह की खेती का ना सिर्फ प्रशिक्षण दिया है, बल्कि यहां के वैज्ञानिकों ने लगातार रिसर्च से इसकी गुणवत्ता को विकसित किया है।
--आईएएनएस
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