भाजपा के अर्जुन मुंडा भी राज्य की बागडोर संभाली, लेकिन उन्हें भी
मतदाताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी। राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके
अर्जुन मुंडा 2014 में खरसावां से चुनाव हार गए। उन्हें झामुमो के दशरथ
गगराई ने करीब 12 हजार मतों से हराया। दशरथ गगराई को 72002 मत मिले, जबकि
अर्जुन मुंडा को 60036 मत ही प्राप्त हो सके।
झारखंड मुक्ति मोर्चा
(झामुमो) से मुख्यमंत्री बने नेताओं को भी देर-सबेर हार का मुंह देखना पड़ा
है। झारखंड के दिग्गज नेता शिबू सोरेन राज्य की तीन बार बागडोर संभाल चुके
हैं, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री रहते तमाड़ विधानसभा उपचुनाव में हार का
मुंह देखना पड़ा और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक गंवानी पड़ी।
मधु
कोड़ा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद वर्ष 2008 में शिबू सोरेन
मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन वह उस समय विधानसभा के सदस्य नहीं थे। वर्ष 2009
में उन्होंने तमाड़ विधानसभा सीट से किस्मत आजमाई, लेकिन जीत नहीं सके।
उन्हें झारखंड पार्टी के प्रत्याशी राजा पीटर ने आठ हजार से अधिक मतों से
पराजित कर दिया।
शिबू सोरेन के पुत्र और झामुमो के नेता हेमंत सोरेन
भी झारखंड के मुख्यमंत्री जरूर रहे, लेकिन उन्हें भी हार का स्वाद चखना
पड़ा है। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में हेमंत दो विधानसभा सीटों बरहेट
और दुमका से चुनावी मैदान में उतरे, मगर उन्हें दुमका में हार का सामना
करना पड़ा। बरहेट से जीतकर हालांकि उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा बचा ली।
निर्दलीय चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने वाले मधु कोड़ा को भी 2014 में मंझगांव विधानसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा है।
इस
चुनाव में झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास एक बार फिर जमशेदपुर (पूर्वी)
से चुनावी मैदान में हैं। उनके सामने उनके ही मंत्रिमंडल में रहे सरयू राय
बतौर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे हैं। ऐसे में इस सीट पर मुकाबला
दिलचस्प हो गया है। अब सबकी दिलचस्पी इस बात को लेकर है कि 'झारखंड में
मुख्यमंत्री हार जाते हैं' के मिथक को दास तोड़ पाएंगे? हार-जीत का फैसला
23 दिसंबर को होना है।
--आईएएनएस
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