इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी भी इस चुनाव में अकेले
चुनाव मैदान में उतरी है। विधानसभा की सभी 81 सीटों में अपने उम्मीदवार
उतारी है। पार्टी को उम्मीद है कि वे अपने उन नाराज वोटरों को फिर अपने
पाले में ले आएंगे, जो लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में चले गए थे।
मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री थे, लेकिन भाजपा से नाराजगी के बाद
उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली।
ईमानदार छवि के माने जाने वाले मरांडी इस
चुनाव में पिछले चुनाव की तरह सफलता हासिल कर लेते हैं तो माना जाता है कि
झाविमो के पास सरकार बनाने की कुंजी होगी। झारखंड के लोकसभा और विधानसभा
चुनावों में मतदाता के रुझान बदलते रहे हैं। मतदाता विधानसभा चुनावों में
हमेशा खंडित या त्रिशंकु जनादेश देते रहे हैं, जबकि 2004, 2009 और 2014 के
लोकसभा चुनावों में उन्होंने हर बार स्पष्ट जनादेश दिया है।
झारखंड मुक्ति
मोर्चा (झामुमो) इस चुनाव में राजद और कांग्रेस के साथ चुनावी मैदान में
उतरी है। इस गठबंधन ने झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को अपना
मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है। भाजपा के टिकट बंटवारे से कई
क्षेत्रों में असंतोष उभरने के बाद इस गठबंधन के नेता उत्साहित हैं।
पिछले
विधानसभा चुनाव में आजसू भाजपा के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी। उस चुनाव
में आजसू ने आठ प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से पांच विजयी हुए थे, जबकि
झाविमो 73 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और आठ सीटें जीती थी। बाद में, हालांकि
इनके अधिकांश विधायक भाजपा के हो गए थे।
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