रांची। चर्चित चारा घोटाला मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई है। रांची की सीबीआई कोर्ट ने शनिवार को वर्ष 1996 के चारा घोटाले मामले में लालू प्रसाद यादव को दोषी करार दिया गया है। लालू को कोर्ट से सीधे जेल ले जाया गया। कोर्ट ने इस मामले में 22 में से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा सहित 6 आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में कुल 16 आरोपियों को दोषी करार दिया है। चारा घोटाले मामले में दोषी करार दिए गए लालू को 3 जनवरी को सजा सुनाई जाएगी। आपको बता दें कि इस मामले में लालू को जमानत मिली हुई थी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
यू चला पूरा घटनाक्रम
सरकारी खजाने से अवैध तरीके से करीब 950 करोड़ रुपये की निकासी की कहानी को चारा घाटोला नाम दिया गया। पशुओं के चारे के लिए रखे धन की बंदरबांट कई राजनेता, बड़े नौकरशाह और फर्जी कंपनियों के आपूर्तिकर्ताओं ने मिलकर सुनियोजित तरीके से की थी। चारा घोटाले पर गौर करें तो वर्ष 1993-94 में पश्चिम सिंहभूम जिले के तत्कालीन उपायुक्त अमित खरे ने सबसे पहले चाईबासा कोषागार से 34 करोड़ रुपये से अधिक की निकासी से जुड़े मामले को उजागर किया था और इसकी एक प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश किया था।
इसके बाद बिहार पुलिस (तब झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा था) गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदग्गा के कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये की अवैध निकासी के मामले दर्ज किए गए। कई आपूर्तिकर्ताओं और पशुपालन विभाग के अधिकारियों को हिरासत में लिया गया। राज्यभर में दर्जनों मुकदमे दर्ज किए गए। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई नेताओं द्वारा एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें पूरे मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग की गई। न्यायालय में लोकहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा गया कि तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने संचिका पर मामले की जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा की है, लेकिन राज्य सरकार ऐसा न कर पुलिस को मामला दर्ज करने का निर्देश दिया।
1996 में पूरी तरह सबके सामने आया चारा घोटाला
इस क्रम में याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि जब इस मामले में बड़े-बड़े राजनेता और अधिकारी आरोपी हैं, तो पुलिस जांच का क्या औचित्य है? न्यायालय ने सारे तथ्यों के विश्लेषण के बाद पूरे मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दी थी। इस मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश पर उच्च न्यायालय की निगरानी में जांच शुरू हुई थी। वर्ष 1996 में चारा घोटाला पूरी तरह सबके सामने आ गया और लालू प्रसाद की मुश्किलें बढऩे लगीं। इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को मुख्यमंत्री का पद छोडऩा पड़ा था और जेल जाना पड़ा था।
चारा घोटाले में 500 में से अब कुल 16 आरोपी
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