झारखंड की राजनीति को नजदीक से समझने वाले रांची के वरिष्ठ पत्रकार
संपूर्णानंद भारती भी कहते हैं कि झारखंड की सियासत में आदिवासी चेहरे को
नहीं नकारा जा सकता है। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि झारखंड
में आदिवासियों की सुरक्षित विधानसभा सीट भले ही 28 है, लेकिन 27 फीसदी
आबादी के साथ आदिवासी समुदाय राज्य की आधे से अधिक विधानसभा सीटों पर
उम्मीदवारों की जीत हार में निर्णायक भूमिका निभाता है।
उन्होंने दावा करते
हुए कहा कि कई शहरी इलाकों में भारी आदिवासी मतदाता चुनाव परिणाम को
प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता है कि
आदिवासी मतदाता केवल ग्रामीण क्षेत्रों में ही प्रभावी हैं। इधर, गौर से
देखा जाए तो सत्ता पाने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी से अपनी पहली मुलाकात में ही झारखंड में ट्राइबल यूनिवर्सिटी
खोलने की मांगकर आदिवासियों के युवा वर्ग को आकर्षित करने की कोशिश की।
यह
दीगर बात है कि सरकार ने भी आम बजट में यूनिवर्सिटी नहीं देकर ट्राइबल
म्यूजियम झारखंड को देकर यहां के आदिवासियों को खुश करने की कोशिश की।
बहरहाल, झारखंड में एक बार फिर आदिवासी केंद्रित सियासत की रूपरेखा तैयार
हो गई है अब देखना होगा कि इस सियासत से झारखंड के विकास को कितनी गति
मिलती है, या फिर केवल यह सियासत भी सत्ता तक पहुंचने का माध्यम ही साबित
होता है।
(IANS)
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