इधर, झामुमो भी इस सीट को फिर हथियाकर अपनी साख फिर बहाल करने के लिए हर
कोशिश कर रही है। यही कारण है कि दुमका सीट पर मुकाबला दिलचस्प और कांटे का
नजर आ रहा है। वर्ष 2014 में हुए चुनाव में हेमंत सोरेन को लुइस मरांडी ने
4914 मतों से पराजित कर राज्य की सियासत में बड़ा उलटफेर कर सबको चौंका
दिया था। उस चुनाव में लुइस को 69,760 मत मिले थे, जबकि हेमंत को 64,846 मत
से ही संतोष करना पड़ा था। झामुमो का गढ़ माने जाने वाले दुमका विधानसभा
सीट पर झामुमो का 1980 से कब्जा रहा है।
इस बीच, हालांकि 2005 और 2014 में
यहां झामुमो को हार का भी सामना करना पड़ा। इस चुनाव में भाजपा जहां 2014
में हुई पहली जीत को फिर से दोहराना चाहती है, जिसके लिए दिन-रात केंद्र से
लेकर राज्य के भाजपा नेता इस ठंड में भी पसीना बहा रहे हैं, वहीं झामुमो
इस सीट को प्रतिष्ठा का विषय बनाकर भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही है। एक तरफ
भाजपा जहां पांच वर्षो के विकास कार्य के आधार पर जनता के बीच जाकर वोट
मांग रही है, वहीं झामुमो जल, जंगल और जमीन के मुद्दे पर जनता का आशीर्वाद
मांग रही है।
इस सबके बीच झाविमो प्रत्याशी भी विपक्ष में रहकर पार्टी
अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के कामकाज के आधार पर जनता के बीच पैठ बनाने की
कोशिश में हैं। झामुमो के सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि इस चुनाव में
भाजपा को विकास के नाम पर बरगलाने की सजा देने के लिए मतदाता तैयार बैठे
हैं। भाजपा के पांच सालों की तानाशाही और महंगाई को भी मतदाता नहीं भूले
हैं।
भाजपा प्रत्याशी लुइस मरांडी कहती हैं कि मतदाता प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी और रघुवर दास के विकास कार्यक्रमों को आत्मसात कर चुके हैं। मोदी की
जनसभा में उमड़ी भीड़ ने यह साबित भी कर दिया है कि इस चुनाव में संथाल
परगना में झामुमो को खाता भी खोलना मुश्किल होगा। बहरहाल, प्रधानमंत्री की
चुनावी रैली में उमड़े लोग वोट में तब्दील हुए या नहीं यह तो 23 दिसंबर को
चुनाव परिणाम आने पर ही पता चलेगा।
(IANS)
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