शिमला । हिमालय की चोटियों पर फैली
हिमाचल प्रदेश की स्पीति घाटी में बसे आदिवासियों, मुख्य रूप से बौद्धों ने
देश में दूसरों के लिए एक उदाहरण पेश किया है कि टीकाकरण ही इस महामारी से
बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता है।
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अधिकारियों ने आईएएनएस को बताया कि तिब्बत से सटे एक ठंडे
रेगिस्तान काजा उपखंड की 13 पंचायतों में 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्गों
की पूरी आबादी अब पूरी तरह से टीकाकरण कर चुकी है। 45 साल से ऊपर के लोगों
को वैक्सीन की पहली खुराक दी गई है।
दुनिया का सबसे ऊंचा डाकघर,
हिक्कम, समुद्र तल से 15,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है । इसके नजदीकी गांव
कोमिक और लैंगचे पिछले साल महामारी की पहली लहर में सबसे बुरी तरह प्रभावित
हुए थे।
ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर तेनजिन नोरबू ने फोन पर आईएएनएस को
बताया, ''हिक्कम, कोमिक और लैंगचे में 60 साल से अधिक उम्र के लोग 100 फीसद
वैक्सीनेटिड हो चुके है।''
उन्होंने कहा कि वहां के लोग वैक्सीन लेने से नहीं हिचकिचाते।
उन्होंने कहा, '' बहुत जल्द हम 18 से 45 वर्ष की आयु के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू करने जा रहे हैं।''
अधिकारियों
में उच्च विश्वास के बारे में बताते हुए, मान्यता प्राप्त सामाजिक
स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) पद्मा, जिन्होंने हिक्कम में टीकाकरण किया,
उनका कहना है, '' स्थानीय लोगों को शिक्षित करने के अभियान ने उन्हें
टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयासों का समर्थन करने के लिए
प्रोत्साहित किया।''
उन्होंने कहा कि यह समझ कि देरी से महत्वपूर्ण मृत्यु दर बढ़ सकती है, टीके की झिझक को दूर करने में मदद करती है।
लगभग
12,000 की आबादी का समर्थन करने वाला स्पीति का मुख्यालय काजा, पिछले साल
कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए पूरे ब्लॉक को सेनेटाइज करने वाला
राज्य का पहला था।
स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि 60 साल से
ऊपर के 762 लोगों को काजा उपखंड में दोनों खुराकें मिल चुकी हैं, जबकि 45
से 60 साल के बीच के 1,590 लोगों को पहली खुराक दी गई है।
अतिरिक्त
जिला मजिस्ट्रेट ज्ञान सागर नेगी ने आईएएनएस को बताया कि चूंकि कई
प्राप्तकतार्ओं के पास स्मार्टफोन नहीं है या इंटरनेट तक उनकी पहुंच नहीं
है, इसलिए लगभग 80 प्रतिशत पंजीकरण ऑफलाइन किया जा रहा है।
उन्होंने कहा, '' स्वास्थ्य विभाग को फोन करके स्लॉट बुक किया जा सकता है। हमें 20 प्रतिशत पंजीकरण ऑनलाइन मिल रहा है।''
3000
मीटर और 4000 मीटर के बीच की ऊंचाई पर रहने वाले बड़े पैमाने पर बौद्ध
,स्थानीय लोग हरी मटर, आलू, जौ और गेहूं की खेती उस मिट्टी पर करते हैं जो
सूखी और कार्बनिक पदार्थों की कमी होती है। ये पारंपरिक नकदी फसलें
गर्मियों में उगाई जाती हैं और अगस्त सितंबर में खेती की जाती हैं।
सुरम्य
स्पीति घाटी, स्वर्ग जो भारत और तिब्बत दोनों में फैली हुई है, जिसमें दो
दर्जन से अधिक छोटे, बिखरे हुए गाँव शामिल हैं, वर्ष में कम से कम छह महीने
भारी बर्फ जमा होने के कारण कट जाता है। अप्रैल के मध्य के बाद बर्फ
पिघलना शुरू होने के बाद यह फिर से खुल जाता है।
--आईएएनएस
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