शिमला। हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक अखाड़े में इस बार बिना दिग्गजों के ही मुकाबला हो रहा है। लगभग दो दशकों से, चुनावी लड़ाई कांग्रेस नेता और छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह और भाजपा से दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे प्रेम कुमार धूमल के बीच वर्चस्व को लेकर थी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
लेकिन इस संसदीय चुनाव में, ऐसा पहली बार है जब दोनों ही धुरंधर चुनावी मैदान से बाहर हैं।
इसे पीढ़ीगत बदलाव कहें या कहें कि उन्हें सक्रिय राजनीति से जबरदस्ती बाहर कर दिया गया है, वीरभद्र सिंह(83) और धूमल (73) वैकल्पिक रूप से 20 वर्षो तक राज्य के खेवनहार रहे हैं।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस दौरान राज्य की राजनीति दोनों नेताओं के निजी मुद्दों के आस-पास घूमती रही।
इन चुनावों में, दोनों की न ही टिकट बंटवारे में कोई भूमिका है और न ही चुनाव अभियान उनके नेतृत्व में चलाए जा रहे हैं।
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