शिमला। ठोस कचरा प्रबन्धन वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के समक्ष विकास के पथ पर अग्रसर होते हुए एक बड़ी चुनौती है। प्रदेश में आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लक्ष्य के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार ने सत्ता विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय पहलुओं को प्राथमिकता प्रदान की है। प्रदेश सरकार राज्य में प्रभावी ठोस कचरा प्रबन्धन तंत्र द्वारा ठोस कचरे की समस्या का निवारण करेगी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
ठोस कचरा प्रबन्धन को प्रभावी व कार्यशील बनाने के लिए ठोस कचरा प्रबन्धन के सभी पहलुओं को समझ कर इस समस्या का समाधान करना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त नए ठोस कचरा प्रबन्धन नियम-2016 के अनुसार सभी नागरिकों को ठोस कचरा प्रबन्धन की सेवाएं उपलब्ध करवाने के लिए एक किफायती तंत्र बनाया जाएगा जो कचरा को एक पर्यावरण अनुकूल तरीके से एकत्रित करने तथा उसकी ढुलाई एवं निष्पादन में सहायता करेगा। एक पसंदीदा पर्यटन गंतव्य होने के कारण प्रदेश में गर्मियों के दौरान भारी संख्या में पर्यटक आते हैं जिस कारण यहां कचरे की मात्रा में भारी वृद्धि दर्ज की जाती है।
इसके अतिरिक्त पर्यटन गतिविधियों के कारण प्रदेश में कचरा प्रबन्धन से सम्बन्धित सुविधाएं उपलब्ध करवाना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों को 28 अक्तूबर, 2016 को बाह्य शौच मुक्त (ओडीएफ) का दर्जा प्राप्त हुआ। इसके फलस्वरूप अब स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (एसबीएम-जी) के तहत ओडीएफ दर्जे को कायम रखने तथा ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन (एसएलडब्ल्यूएम) पर बल दिया जा रहा है। वर्तमान में सभी ग्राम पंचायतों में समन्वय आधार पर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन गतिविधियों को आरम्भ किया गया है।
ग्राम पंचायतों को इस संबंध में निधि जारी की गई है, जिसमें 150 घरों वाली ग्राम पंचायत को 7 लाख रुपये, 300 घरों वाली ग्राम पंचायत को 12 लाख रुपये, 500 घरों वाली ग्राम पंचायत को 15 लाख रुपये तथा 500 से ज्यादा घरों वाली ग्राम पंचायत को 20 लाख रुपये दिए गए है।प्रदेश में कुल 768 ग्राम पंचायतों में 103.68 करोड़ रुपये की राशि को उपयोग में लाया गया है। ग्राम पंचायतों ने एसबीएम-जी के तहत व्यक्तिगत तथा सामुदायिक स्तर पर सोक पिट, मैजिक पिट, लिच पिट तथा नालियों का निर्माण करने जैसी गतिविधियों पर बल दिया है। ग्राम पंचायतों में ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन के लिए सूचक अंकों/मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) का प्रचार किया गया ताकि ग्राम पंचायतें कार्य योजना तैयार कर सके।
ग्राम पंचायतों को इस संबंध में ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन के प्रचलित तंत्र पर चर्चा करने तथा कचरे के सम्भावित स्त्रोत को चिन्हित करने को कहा गया। ग्राम पंचायतों को उनके संबंधित क्षेत्रों में कचरे की किस्मों तथा मात्रा का पता लगाने को कहा गया।इसके अतिरिक्त अनेक ग्राम पंचायतों को कचरे के वैज्ञानिक निष्पादन के लिए कचरे को स्त्रोत पर ही अलग करने तथा कचरा इक्ट्ठा करने और निष्पादन स्थलों तक ढुलाई का तरीका ढूढने को कहा गया। मानक संचालन प्रक्रियाओं द्वारा कचरा प्रबन्धन की ओर संस्थागत ढांचा स्थापित करने पर बल दिया गया।क्षेत्र से प्रतिक्रिया प्राप्त करने के उपरांत क्लस्टर पद्धति को प्रभावी एवं किफायती, ठोस एवं तरल कचरे के निपटारे के लिए अपनाया गया। प्रत्येक जिले को इसके लिए 10 से 12 ग्राम पंचायतों वाले कम से कम एक क्लस्टर की पहचान करने के लिए आग्रह किया गया था।
परिणामस्वरूप 109 ग्राम पंचायतों वाले 12 ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन क्लस्टरों की पहचान की गई।ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन पर हिमाचल प्रदेश लोक प्रशासन संस्थान, फेयरलॉन शिमला में क्लस्टर ग्राम पंचायतों के लिए दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसके उपरांत पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों एवं विभिन्न ग्राम पंचायतों के अधिकारियों के लिए ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन पर अच्छा कार्य कर रही ग्राम पंचायतों के भ्रमण का आयोजन किया गया जिसके द्वारा वह कचरा प्रबंधन की बारिकियों को बेहतर तरीके से समझ सकें।सभी क्लस्टरों ने स्थानीय परिस्थितयों के अनुरूप अपनी ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन परियोजनाएं तैयार की और राज्य सरकार को अपने धनराशि संबंधी आवेदन प्रस्तुत किए। विभिन्न क्लस्टरों को राशि आवंटित की गई जिसमें नारकंडा (शिमला) को 12,20,000 रुपये, गोहर (मंडी) को 30,00,000 रुपये, झंडुता (बिलासपुर) को 8,04,999 रुपये, अजौली (ऊना) 12,71,880 रुपये, खलेट भवरना (कांगड़ा) को 49,78,985 रुपये, सांगला (किन्नौर) को 50,00,000 रुपये, नौणी (सोलन) को 5 लाख रुपये, घूंड (शिमला) को 3,52,000 रुपये, घूघर (कांगड़ा) को 56,11,909 रुपये और बंगाणा (ऊना) को 48,48,000 रुपये की राशि दी गई।
ऊना की ग्राम पंचायत अजौली और सोलन की ग्राम पंचायत नौणी में ठोस कचना प्रबंधन संयंत्र पहले से क्रियाशील हैं तथा अन्य क्लस्टर में इन पर कार्य चल रहा है। इसके अतिरिक्त कांगड़ा जिला के आईमा में ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन संयंत्र पिछले दो वर्षों से कार्य कर रहा है तथा वहां सभी प्रकार के ठोस कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निपटारा किया जा रहा है। प्रत्येक जिले में इसके लिए तीन आर्दश ग्राम पंचायतों की पहचान की गई है। सभी विकास खण्ड़ों ने खण्ड स्तर पर ठोस एवं तरल कचरा प्रबंधन योजना तैयार की है। 2 अक्टूबर, 2019 तक कम से कम 500 ग्राम पंचायतों को ‘जीरो वेस्ट ग्राम पंचायत’ बनाने का प्रस्ताव है। वर्ष 2019-20 के लिए वार्षिक कार्यन्वयन योजना (एआईपी) के अंतर्गत 427.42 करोड़ रुपये के बजट प्रावधान के साथ स्वीकृति दी गई है। स्कूलों में इंन्सिनरेटर स्थापित करने के लिए उच्च शिक्षा विभाग द्वारा 3 करोड़ रुपये उपलब्ध करवाए गए है। स्वयं सहायता समूहों द्वारा विकसित इंन्सिनरेटर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा स्वीकृत किया गया है तथा इसे शीघ्र ही क्रियाशील बनाया जाएगा। जलाशयों में संवेदनशील स्थलों पर ग्रिल, तारों, वायर मैश, बैरियरों के माध्यम से ठोस कचरे को जाने से रोकने के लिए राज्य के बिलासपुर, चम्बा, धर्मशाला और नाहन में वृत अनुसार वन विभाग द्वारा 1.82 करोड़ रुपये जारी किए गए है।
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