धर्मशाला। जयराम सरकार ने सत्ता में आने के बाद मात्र सात महीने में विभिन्न विभागों में 19248 तबादले किए। यानी औसतन सरकार ने हर महीने 2750 तबादले किए। सरकार ने ये तबादले 27 दिसंबर 2017 से 31 जुलाई 2018 के बीच किए हैं। 19248 में से 1139 कर्मचारियों ने न्यायालय से स्टे ले लिया। रेणुकाजी से विधायक विनय कुमार के प्रश्न के जवाब में सरकार ने तबादलों को लेकर यह जानकारी दी है। सबसे ज्यादा 10422 तबादले शिक्षा विभाग में किए गए हैं। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण विभाग में 1007 तबादले किए गए हैं। पुलिस विभाग में 1987 तबादले किए गए हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
हिमाचल में विभिन्न विभागों में खाली पड़े रिक्त पदों को भरने के लिए सरकार काम करेगी। प्रदेश भर में विभिन्न विभागों में 3,030 पद खाली हैं, जबकि 7,753 भूतपूर्व सैनिकों और उनके आश्रित रोजगार कार्यालय में पंजीकृत हैं।सत्र में भटियात के विधायक बिक्रम सिंह जरियाल के सवाल के जबाव में उद्योग एवं रोजगार मंत्री बिक्रम ठाकुर ने कहा कि सरकार पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को रोजगार उपलब्ध करवाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि एक जनवरी 2015 से 13 दिसंबर 2017 तक प्रदेश भर में विभिन्न रोजगार कार्यालयों में 8422 भूतपूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों ने रोजगार के लिए पंजीकरण करवाया है। इनमें से 689 को रोजगार मिला है, जबकि 7753 मामले अभी लंबित पड़े हैं।प्रदेश भर में खैर की लकड़ी से अब फर्नीचर भी बनेगा। वहीं सरकारी भवनों और वन विभाग के फर्नीचर उद्योग में भी खैर की लकड़ी का प्रयोग किया जाएगा।
इसके अलावा टीडी के तहत भी खैर की लकड़ी को स्वीकृति मिलेगी। सत्र में ज्वालामुखी के विधायक रमेश ध्वाला के प्रश्न के जबाव में वन मंत्री गोबिंद सिंह ठाकुर ने कहा कि हालांकि एकमुश्त खैर की लकड़ी को ईमारती लकड़ी के रूप में प्रयोग करना संभव नहीं है, लेकिन वन विभाग और वन निगम के संयुक्त तत्वावधान में इसका कार्य किया जा रहा है। कोर्ट के आदेशानुसार प्रदेश के पांवटा साहिब वन मंडल के पांवटा साहिब वन परिक्षेत्र, बिलासपुर वन मंडल के भराड़ी वन परिक्षेत्र और नूरपुर वन मंडल के नूरपुर परिक्षेत्र में साल, चीड़ और खैर की लकड़ी का दोहन प्रयोगात्मक तौर पर करने की प्रक्रिया चल रही है।इससे प्राप्त आंकड़ों के आधार पर प्रदेश को इससे होने वाले आर्थिक लाभ का आकलन किया जा सकेगा, वहीं ज्वालामुखी के विधायक रमेश ध्वाला ने कहा कि कांगड़ा, ऊना, हमीरपुर और चंबा में भी खैर के पेड़ों की खासी पैदावार होती है। वन क्षेत्रों में सूखे, टूटे और क्षतिग्रस्त खैर के पेड़ों को रिकॉर्ड समय पर इसकी लकड़ी निकालकर इससे प्रदेश की आर्थिकी को सुदृढ़ करने का सुझाव दिया था।वर्मिन घोषित करने के बाद हिमाचल में 15 नवंबर तक पांच बंदरों को मारा गया है। सिरमौर के रेणुकाजी में 4 और सोलन के कुनिहार में 1 बंदर को मारा गया है।
वन एवं पर्यावण मंत्रालय भारत सरकार की ओर से 14 मार्च 2016 को जारी अधिसूचना के तहत शिमला नगर निगम के सीमा क्षेत्र में वन क्षेत्र को छोड़कर बंदरों को 6 माह के लिए वर्मिन घोषित किया गया था। इसके बाद 24 मई को जारी अधिसूचना के तहत प्रदेश के 10 जिलों चंबा, कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर, शिमला, सिरमौर, कुल्लू, हमीरपुर, सोलन और मंडी की 38 तहसीलों-उप तहसीलों में एक वर्ष के लिए बंदरों को वर्मिन घोषित किया गया था। 20 दिसंबर 2017 को इन अधिसूचनाओं की अवधि को एक वर्ष 20 दिसंबर 2018 तक बढ़ा दिया गया। सरकार ने यह जानकारी किन्नौर से विधायक जगत सिंह नेगी के प्रश्न के जवाब में दी।
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