देहरा। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने आज कांगड़ा जिला के देहरा में केएफडब्ल्यू परियोजना के अंतर्गत उत्कृष्ट कार्य करने वाली जिला कांगड़ा और चंबा की ग्राम वन प्रबंधन समितियों (विलेज फॉरेस्ट मैनेजमेंट सोसायटी) को सम्मानित किया। इस अवसर पर उन्होंने युवाओं से प्रकृति और वनों के संरक्षण अभियान में सक्रिय रूप से जुड़ने का आह्वान किया। मुख्यमंत्री ने वर्ष 2021-22, 2022-23 और 2023-24 के लिए राज्य और देहरा वन मंडल स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली ग्राम वन प्रबंधन समितियों को नकद पुरस्कार प्रदान किए।
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प्रथम पुरस्कार (₹1 लाख): ग्राम वन प्रबंधन समिति लगड़ू, देहरा वन मंडल।
द्वितीय पुरस्कार (₹60 हजार): ग्राम वन प्रबंधन समिति छम्बर, डलहौजी वन मंडल।
तृतीय पुरस्कार (₹40 हजार): ग्राम वन प्रबंधन समिति भटेड़, देहरा वन मंडल।
वर्ष 2022-23 के राज्य स्तरीय पुरस्कार:
प्रथम पुरस्कार (₹1 लाख): ग्राम वन प्रबंधन समिति भटेड़, देहरा वन मंडल।
द्वितीय पुरस्कार (₹60 हजार): ग्राम वन प्रबंधन समिति जैनी मसरूर-2, देहरा वन मंडल।
तृतीय पुरस्कार (₹40 हजार): ग्राम वन प्रबंधन समिति लगड़ू, देहरा वन मंडल।
वर्ष 2023-24 के राज्य स्तरीय पुरस्कार:
प्रथम पुरस्कार (₹1 लाख): ग्राम वन प्रबंधन समिति जैनी मसरूर-2, देहरा वन मंडल।
द्वितीय पुरस्कार (₹60 हजार): ग्राम वन प्रबंधन समिति भटेड़, देहरा वन मंडल।
तृतीय पुरस्कार (₹40 हजार): ग्राम वन प्रबंधन समिति लगड़ू, देहरा वन मंडल। इसके अतिरिक्त, मुख्यमंत्री ने देहरा वन मंडल स्तर पर भी विभिन्न समितियों को सम्मानित किया।
मुख्यमंत्री ने बताया कि कांगड़ा और चंबा जिलों में 307 वन विकास समितियों ने इस परियोजना के तहत योजना बनाने, उसे क्रियान्वित करने और निगरानी का काम किया है। उन्होंने वनों के संरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह जलवायु संतुलन, नदियों के उद्गम, मिट्टी के कटाव की रोकथाम, जैव विविधता की सुरक्षा और लाखों लोगों की आजीविका से सीधा जुड़ा है। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश का वन क्षेत्र लगभग 15,443 वर्ग किलोमीटर है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 28 प्रतिशत है, और वर्गीकृत वन क्षेत्र 37,948 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जो भौगोलिक क्षेत्रफल का 68.16 प्रतिशत है।
मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि बढ़ती आबादी, विकास कार्यों और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के कारण वन संसाधनों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए राज्य सरकार ने वन विभाग के माध्यम से सतत और वैज्ञानिक पद्धति से वन प्रबंधन की रणनीतियां अपनाई हैं।
उन्होंने घोषणा की कि जिन समितियों ने अच्छा कार्य किया है, उन्हें प्रोत्साहन राशि के रूप में कुल 22.5 करोड़ रुपये सीधे उनके खातों में दिए जाएंगे। इसमें से 2.5 करोड़ रुपये पहले ही वितरित किए जा चुके हैं, और शेष राशि इसी वर्ष उनके खातों में हस्तांतरित कर दी जाएगी।
मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से युवाओं से प्रकृति और वनों के संरक्षण के इस अभियान में सक्रिय रूप से भाग लेने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन स्थापित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक सुरक्षित, समृद्ध और हरा-भरा हिमाचल मिल सके। उन्होंने बताया कि परियोजना के तहत दोनों जिलों में 13,300 हेक्टेयर भूमि पर पौधारोपण और भूमि बचाव का कार्य किया गया है।
कांगड़ा व चंबा जिलों में 8300 हेक्टेयर भूमि पर 61 हजार पौधे लगाए गए हैं, जबकि शेष भूमि से लैंटाना (एक आक्रामक खरपतवार) हटाई गई है। यह परियोजना 30 मार्च, 2026 तक पूर्ण कर ली जाएगी।
मुख्यमंत्री ने विश्वास व्यक्त किया कि इस परियोजना ने साबित कर दिया है कि जब नीति, प्रौद्योगिकी और जनता का सहयोग एक साथ आता है, तो असंभव भी संभव हो जाता है। इससे पहले, मुख्यमंत्री ने वन विभाग द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी का अवलोकन भी किया, जिसमें वन संरक्षण संबंधी कार्यों को प्रदर्शित किया गया था।
इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष भवानी सिंह पठानिया, विधायक संजय रतन, कमलेश ठाकुर एवं विवेक शर्मा, एचआरटीसी के उपाध्यक्ष अजय वर्मा, कांगड़ा केन्द्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया, हिमाचल प्रदेश पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम के अध्यक्ष मोहन लाल, एपीएमसी कांगड़ा के अध्यक्ष निशु मोंगरा, वूल फेडरेशन के अध्यक्ष मनोज कुमार, कांग्रेस नेता सुरेंद्र मनकोटिया, पुष्पिंदर ठाकुर, पीसीसीएफ़ (हॉफ) समीर रस्तोगी, उपायुक्त हेमराज बैरवा, पुलिस अधीक्षक मयंक चौधरी और अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
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