धर्मशाला | फिल्म 'तुरूप' कई सामाजिक
मुद्दों को उठाती है, लेकिन इसके निर्देशकों 'एकतारा कलेक्टिव' (समूह) का
कहना है कि उन्होंने जानबूझकर फिल्म में हिंसा नहीं डाली है क्योंकि वे
चाहते थे कि कहानी पर दर्शक खुद आत्मविश्लेषण करें।
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महिला निर्देशकों का स्वतंत्र व गैर-व्यवसायिक फिल्म समूह
प्रशिक्षित व अप्रशिक्षित सदस्यों के बीच सहयोग का समूह है, जो वास्तविकता व
अनुभवों पर आधारित कहानियों वाली फिल्में बनाता है।
फिल्म 'तुरूप'
भोपाल के आसपास के क्षेत्र की पृष्ठभूमि पर बनी है, जिसमें पुरुष प्रधान
समाज को दिखाया गया है, जिनका प्रिय शगल शतरंज है। 72 मिनट की यह फिल्म
लैंगिक भदेभाव, सांप्रदायकिता, जातिवाद और उत्पीड़न जैसी चीजें दिखाती है।
छठें धर्मशाला अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में शुक्रवार को इसकी स्क्रीनिंग हुई।
स्क्रीनिंग
के बाद एकतारा कलेक्टिव के सदस्यों ने फिल्म की कुछ विशेषताओं के बारे में
बात की, जिन्हें बेहद चतुराई के साथ दर्शाया गया है।
एकतारा
कलेक्टिव ने कहा, "इसने अन्य महत्वपूर्ण चीजों को ले लिया, जिसे हम कहना
चाहते थे। हिंसा कई फिल्मों के लिए काम कर जाती है, लेकिन हम इस कहानी में
इसे शामिल नहीं करना चाहते थे।"
एकतारा कलेक्टिव ने आगे कहा, "..और
यह ऐसा नहीं है कि जिसके बारे में हम नहीं जानते कि ऐसा होता है। हम लोगों
को आत्मचिंतन करते व चिंतन करते हुए देखना चाहते थे।"
समूह ने कहा कि यह फिल्म हर उस चरित्र के बारे में है, जिसके हाथ में तुरूप का पत्ता है और 'शतरंज एक रूपक है।'
चार
दिवसीय धर्मशाला फिल्म महोत्सव का आगाज गुरुवार को हुआ था। महोत्सव में
'व्हाइट सन', 'डेथ इन द गंज', 'मशीन्स' और 'विलेज रॉकस्टार्स' आदि फिल्में
भी प्रदर्शित हुई, जिन्हें दर्शकों ने सराहा।
आईएएनएस
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