धर्मशाला। हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद द्वारा आयोजित आईएचजीएफ (इंडियन हैंडीक्राफ्ट एंड गिफ्ट फेयर) दिल्ली मेला-शरद 2018 हिमाचल के हस्तशिल्प कारीगरों को नई ऊर्जा एवं संभावनाओं का बड़ा फलक देने वाला साबित हुआ है। ग्रेटर नोएडा में 14 अक्टूबर से शुरू हुआ यह मेला 18 अक्टूबर को संपन्न हो गया। इस पांच दिवसीय हस्तशिल्प मेले में हिमाचल सरकार एवं हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद् (ईपीसीएच) के सहयोग से हिमाचल के कांगड़ा जिला के 3 हस्तशिल्पियों ने पहली बार भाग लिया। मेले में उनके द्वारा लगाई गई कांगड़ा लघु चित्रकारी की प्रदर्शनी लोगों के आकर्षण का केंद्र रही। यहां उनके कार्य को सराहना और उन्हें चित्रकारी को लेकर नए विचार और खरीदार भी मिले। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
मेले में भाग लेने वाले कांगड़ा जिला के पठियार के रहने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता चित्रकार मुकेश धीमान ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि मेले में लोगों ने कांगड़ा लघु चित्रकला में बड़ी दिलचस्पी ली, उनके काम को भी खूब तारीफ मिली और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खरीदार भी मिले। इसके साथ ही कला के जानकारों से मिलने, उनसे सीखने-समझने का अवसर मिला। मुकेश को चित्रकला के लिए वर्ष 2014 में राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है।
उनके साथ मेले में शामिल हुए दूसरे कलाकार, मध्य प्रदेश सरकार के प्रतिष्ठित कालीदास पुरस्कार से सम्मानित धनीराम, जो कांगड़ा जिला के गग्गल के रहने वाले हैं, ने मुकेश की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मेले में भाग लेने से उनके ज्ञान में वृद्धि हुई है और चित्रकारी को लेकर नए-नए विचार मिले हैं। चित्रकारी की अन्य पद्धतियों की समझ बढ़ी है।
मेले में उनके साथ शामिल रहे धर्मशाला के खनियारा के रहने वाले चित्रकार मोनू कुमार ने कहा कि पहली बार इस प्रकार का मौका मिला है, इससे उनकी कला की समझ और आत्मविश्वास बहुत बढ़ा है। तीनों कलाकारों ने हिमाचल सरकार एवं कांगड़ा जिला प्रशासन और हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद के कार्यकारी निदेशक राकेश कुमार शर्मा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि हिमाचल के कलाकरों को इस प्रकार के बड़े मंच एवं अवसर उपलब्ध करवाने से जहां कलाकारों का हौसला एवं ज्ञान बढ़ेगा, प्रदेश की कला-संस्कृति के बारे में देश-विदेश में जानकारी और रूचि में भी बढ़ोतरी होगी।
गौरतलब है कि मुख्य सचिव बी.के. अग्रवाल जब कांगड़ा में मंडयायुक्त थे, उस दौरान उन्होंने कांगड़ा चित्रकला और इससे जुड़े कलाकारों को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक प्रभावी कदम उठाए थे। इससे हस्तशिल्प एवं अन्य कलाओं को काफी बढ़ावा मिला था। उनके प्रयासों से कांगड़ा आर्ट्स प्रमोशन संस्था का गठन संभव हुआ था, जो तब से लगातार कांगड़ा चित्रकला को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रही है।
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