धर्मशाला। हिन्दी एवं अंग्रेज़ी के वरिष्ठ साहित्यकार तथा जन सम्पर्क विभाग के पूर्व निदेशक पी.सी.के प्रेम ने सृजन को मानव विकास और सभ्यता के लिए आवश्यक और हितकारी बताते हुए कहा कि कला के विभिन्न रूप हमें अपने अस्तित्व से जुड़ने में मदद करते हैं। साहित्य मानव को सृजन संकल्प के माध्यम से कठिनाइयों पर विजय पाने के लिए प्रेरित करता है। संवेदना एवं सहानुभूति के भाव साहित्य की सृष्टि में मदद करते हैं। साहित्य व्यक्ति को तमाम अनुभूतियों से गुजरते हुए सृजन की ओर आकृष्ट करता है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उन्होंने यह विचार कला, संस्कृति एवं भाषा अकादमी, शिमला के सहयोग से रचना साहित्य एवं कला मंच, पालमपुर द्वारा राजपुर स्थित सलेशियल पब्लिक हाई स्कूल में आयोजित ‘‘हिमाचल के दिवंगत हिन्दी सेवी’’ श्रृंखला की दूसरी कड़ी में बतौर मुख्यातिथि अपने सम्बोधन में व्यक्त किए। इस अवसर पर सहित्यकार त्रिलोक मेहरा ने ‘ठाकुर बलदेव सिंह का व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ नामक विषय पर शोध पत्र पढ़ा, जिसके बाद हिमाचल भाषा अकादमी द्वारा पुरस्कृत उनकी रचना ‘हवा दक्खिनी’ के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा हुई। अकादमी द्वारा ये सिलसिलेवार कार्यक्रम हिमाचल के दिवंगत हिन्दी साहित्यकारों के सृजन कर्म को प्रकाश में लाने के लिए आयोजित किये जा रहे हैं।
समारोह में रचना द्वारा बच्चों के लिए विशेष रूप से प्रकाशित एकांकी विशेषांक का विमोचन भी किया गया। यह रचना की साहित्यिक पत्रिका ‘रचना’ का 84वां अंक है। रचना साहित्य एवं कला मंच के अध्यक्ष डॉ. सुशील कुमार फुल्ल ने बताया कि इस बाल एकांकी विशेषांक में गंगाराम राजी, कृष्ण महादेविया, अजय पाराशर, पवन चौहान, अरविंद ठाकुर, कल्याण जग्गी, सुमन शेखर, सरोज परमार, सुशील फुुल्ल, सुदर्शन भटिया आदि द्वारा रचित 11 एकांकी सम्मिलित किये गये हैं।
इस मौके पर आयोजित कवि गोष्ठी में ‘दो युग तेरे बीत गए तीजे में प्रवेश, काल कसाई पूछता कितना जीवन शेष’ जैसे मनुष्य की चेतना को अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति देते दोहों और कविताओं से रचनाकारों ने जबरदस्त समा बांधा। गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार सरोज परमार, अजय पाराशर, अर्जुन कनौजिया, डॉ. आशु फुल्ल, डॉ. सत्येंद्र शर्मा, हीना चनौरिया, पीपी रैणा, सुरेश लता अवस्थी, शक्ति चंद राणा, तिलक राज कटोच, उत्तम ठाकुर सहित अन्य कवियों ने अपनी रचनाएं सुनाईं।
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