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इस कहानी में बेटा, मां, पिता और बेटी.पढ़ें शॉर्ट स्टोरी ऑफ इंस्पिरेशन

A story of son, daughter and parents in Kurukshetra - Kurukshetra News in Hindi

कुरुक्षेत्र। आज भी लोग बेटे के पैदा होने पर खुशी मनाते हैं और यदि बिटिया पैदा हो गई तो जैसे मातम सा छा जाता है। मां - बाप अपने बेटे को सीने से लगाकर रखते हैं, और बेटी को पराया धन।

लेकिन उम्र के जिस पड़ाव पर बूढे मां-बाप को बेटे के सहारे की जरूरत होती है, उस उम्र में बेटा उन्हें ठुकरा दे तो ऐसे बेटे का न होना ही अच्छा। वो बिटिया जिसे हम पराया धन समझने की भूल करते हैं, अाखिर वही बनी है सहारा।

यह कहानी 79 वर्षीय उषा सच्चर से कुछ हद तक मिली-जुलती है। उन्होंने बेटा-बेटी में भेद किया या नहीं, लेकिन बेटे ने बूढ़े मां-बाप को जरूर ठुकरा दिया।

उषा सच्चर पिछले 5 साल से प्रेरणा वृद्धाश्रम में रह रही हैं। वे अंबाला कैंट पुराना ट्रब्यून कालोनी में रहती थीं। जहां से उन्हें और उनके पति सतीश सच्चर को उनके बेटे ने निकाल दिया था। उनकी बेटी तो घर से निकाले जाने के वक्त से ही माता-पिता को अपने घर ले जाना चाहती थीं। लेकिन वे झिझक में बेटी के घर जाना नहीं चाहते थे।

गत वर्ष 22 अप्रैल को पिता सतीश सच्चर चल बसे। लेकिन वह बेटा तब भी नहीं आया। अब तो बेटी को मां की चिंता ज्यादा सताने लगी। तब मां भी अकेली पड़ गई और बेटी के साथ आने को राजी हो गई। कल जब बेटी मां को अपने घर ले जा रही थी तो इतने वर्षों से आश्रम में रह रहे अन्य वृद्धजन भी एक परिवार जैसे ही हो गए थे। आज उनके परिवार का एक सदस्य उनसे अलग हो रहा था, सभी की आंखें डबडबा रही थीं, लेकिन उनकी भीगी पलकों में खुशी इस बात की थी कि बेटी को मां मिल गई और मां को बेटी और दामाद के रूप में बेटा।

यहां हमारा सवाल है कि क्यों बेटों के पैदा होने के लिए दंपती मनौतियां मांगते हैं। क्या बुढ़ापे में ठोकर खाने लिए उन्हें बेटे की चाहत होती है। इस कहानी से सीख मिलती है कि बेटा-बेटी में फर्क नहीं कर बेटी को भी खूब पढा़ना लिखाना चाहिए।

यहां हम जिस बेटी से सबक सीखने की बात कह रहे हैं, उस बेटी का नाम है मोनिका। उसका ससुराल लुधियाना में है। वह टीचर है। उनके पति का खुद का बिजनेस है। यहां उनके पति की भी तारीफ करनी होगी, कि उन्होंने अपनी पत्नी के इस निर्णय में उनका साथ दिया।

शाबास मोनिका, आपने इस समाज को एक संदेश दिया है कि बेटों की चाह में बेटियों को कोख में ही न मारें। बेटियां भी माता-पिता का सहारा हो सकती हैं।


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Web Title-A story of son, daughter and parents in Kurukshetra
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