• Aapki Saheli
  • Astro Sathi
  • Business Khaskhabar
  • ifairer
  • iautoindia
1 of 1

क्या किसी की भूख की तस्वीर लेना जरूरी है?

Is it necessary to take a picture of someones hunger? - Hisar News in Hindi

ज का युग 'डिजिटल करुणा' का युग बन चुका है, जहाँ इंसानियत, परोपकार, और सहानुभूति जैसे मूल्य अब मौन संवेदनाओं की बजाय कैमरे की फ्लैश में दर्ज होते हैं। पहले जहाँ "नेकी कर दरिया में डाल" की परंपरा जीवित थी, अब वह बदलकर "नेकी कर, सोशल मीडिया पर डाल" हो चुकी है। इस लेख के माध्यम से हम इसी प्रवृत्ति की साहित्यिक और सामाजिक समीक्षा करेंगे। भलाई की भावना मनुष्य की सबसे पवित्र प्रवृत्तियों में से एक है। यह वह स्वाभाविक मानवीय गुण है जो हमें संवेदना, दया, और परस्पर सहयोग की ओर प्रेरित करता है। किन्तु आज के समय में यह गुण मंच पर आ चुका है—एक ऐसा मंच जहाँ तालियाँ हैं, टिप्पणियाँ हैं, और सबसे ज़रूरी, एक कैमरा है जो हर क्षण को "दृश्य" बनाता है। एक समय था जब कोई वृद्ध भूखा दिखता, तो राह चलते लोग बिना कुछ कहे, बिना देखे, उसे कुछ खाने को दे जाते थे। आज वही द्रश्य होता है, लेकिन कैमरा पहले निकाला जाता है। भूखे की थाली से ज़्यादा अहमियत उस एंगल की होती है, जिसमें वह थाली दिखाई दे। सेवा अब सीधी नहीं रही, वह एक स्क्रिप्टेड ऐक्ट में बदल गई है।
आधुनिक मानव की आत्मा अब लाइक्स, शेयर, कमेंट्स की भूखी हो चली है। किसी की मदद करने के बाद हमें तसल्ली तब मिलती है, जब कोई कहे, “वाह, आप तो बड़े नेकदिल हैं।” पहले मदद करने के बाद मन को जो संतोष मिलता था, अब वह 'फॉलोवर्स बढ़ने' के संतोष से बदला जा चुका है। यह न केवल इंसानियत की आत्मा को खरोंचता है, बल्कि मदद पाने वाले की गरिमा को भी आहत करता है। वह व्यक्ति जिसे मदद मिली है, उसकी ज़रूरतें तो पूरी होती हैं, लेकिन उसकी निजता, उसकी आत्मसम्मान की परतें एक-एक कर सोशल मीडिया के सामने उतार दी जाती हैं।
सोचिए, अगर कोई कैमरा न हो, कोई दर्शक न हो, कोई ताली बजाने वाला न हो—क्या तब भी आप वही मदद करेंगे? यह प्रश्न हमारे भीतर झाँकने की ज़रूरत को इंगित करता है। करुणा यदि सच्ची है, तो वह गुमनाम रहेगी। यदि उसमें प्रदर्शन है, तो वह करुणा नहीं—डिजिटल ब्रांडिंग है। आज कई बार लगता है कि सहायता करना एक स्क्रिप्टेड इवेंट बन चुका है। वीडियो में सबसे पहले मदद मिलने वाले व्यक्ति की दयनीय स्थिति को दिखाया जाता है, फिर सहायता प्रदान की जाती है, और अंत में किसी नायक की तरह मददकर्ता का चेहरा। यह सब इतनी सफाई से किया जाता है कि वीडियो फिल्म जैसी लगती है—संगीत के साथ, टाइटल के साथ, और अंत में एक गूढ़-सा संदेश।
इस सारी प्रवृत्ति में सबसे अधिक पीड़ित होती है नैतिकता। किसी की ज़रूरत को दिखावा बना देना उस व्यक्ति के अस्तित्व पर हमला है। एक भूखे की भूख अगर कैमरे में रिकॉर्ड न हो तो क्या उसका दुख कम है? क्या दया केवल तभी योग्य है जब वह पब्लिक डोमेन में हो? यह नई नैतिकता सिर्फ दूसरों के सामने दिखने के लिए जीती है। अब 'कृपा' भी एक मुद्रा बन गई है—जिसे दिखाना पड़ता है, गिनाना पड़ता है। स्वार्थरहित सेवा का स्थान स्वार्थयुक्त प्रदर्शन ने ले लिया है। यह सब सुनकर अब साहित्यकार की लेखनी व्यंग्य से भर जाती है।
कल्पना कीजिए एक दृश्य—एक व्यक्ति सड़क किनारे बेहोश पड़ा है। एक 'सोशल वॉरियर' आता है, और उसके साथ उसका कैमरामैन। सबसे पहले कुछ तस्वीरें, फिर एक वीडियो: "हमने इनको उठाया, पानी पिलाया, एंबुलेंस बुलाई" और फिर कैप्शन: "हम सब मिलकर बदलाव ला सकते हैं"। कमेंट्स आते हैं—"वाह भाई साहब, आप तो फरिश्ता हैं।" किसी को यह नहीं सूझता कि क्या वह व्यक्ति कैमरे में आना चाहता था? क्या उसे अपने जीवन की सबसे कमजोर अवस्था में पब्लिकली दिखाया जाना चाहिए था?
आज नेकी भी एक पूंजी बन गई है। इसका बाजार भाव बन गया है। जो जितनी ज्यादा भलाई करता है (या कहें, दिखाता है), उसका सामाजिक रेटिंग उतना ही ऊँचा हो जाता है। कई बार यह भलाई राजनीतिक होती है, कभी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत होती है, और कभी व्यक्तिगत ब्रांड निर्माण के लिए। ऐसे में वास्तविक करुणा कहाँ छिप जाती है? क्या वह अब केवल कविता में जीवित रह गई है? क्या वह अब सिर्फ कबीर और तुलसी के दोहों में ही साँस लेती है? सोचने का समय आ गया है। मदद करने वाला बड़ा है या मदद पाने वाला?
यदि कोई भूखा है, तो क्या उसकी भूख की तस्वीर लेना जरूरी है? क्या उसकी सहमति जरूरी नहीं? यदि हम उसे मदद देते समय उसकी पीड़ा को 'कंटेंट' बना दें, तो क्या हम वास्तव में सहायता कर रहे हैं या उसका उपभोग कर रहे हैं? आज जब भलाई की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तैरती हैं, तो कहीं-न-कहीं वे समाज को एक नई दिशा दे रही हैं—एक ऐसी दिशा जहाँ सेवा भी दिखावे का अंग बन चुकी है।
यह आवश्यक है कि हम पुनः आत्मपरीक्षण करें। भलाई मौन होती है, और उसका असर चुपचाप दिलों में उतरता है। यदि हमें सच में इस समाज को बेहतर बनाना है, तो जरूरत है कि हम बिना कैमरे, बिना मंच, और बिना स्वार्थ के किसी की मदद करें। नेकी कोई तस्वीर नहीं, वह तो संवेदना की वह रेखा है जो दिल से दिल तक जाती है—बिना कोई सबूत माँगे।

ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

यह भी पढ़े

Web Title-Is it necessary to take a picture of someones hunger?
खास खबर Hindi News के अपडेट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक और ट्विटर पर फॉलो करे!
(News in Hindi खास खबर पर)
Tags: social media, kindness captured on camera, compassion, likes, followers, humanity, content, dignity of needy sacrificed, introspection, haryana, hissar, hindi news, news in hindi, breaking news in hindi, real time news, hisar news, hisar news in hindi, real time hisar city news, real time news, hisar news khas khabar, hisar news in hindi
Khaskhabar.com Facebook Page:
स्थानीय ख़बरें

हरियाणा से

प्रमुख खबरे

आपका राज्य

Traffic

जीवन मंत्र

Daily Horoscope

वेबसाइट पर प्रकाशित सामग्री एवं सभी तरह के विवादों का न्याय क्षेत्र जयपुर ही रहेगा।
Copyright © 2025 Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved