हिसार पुलिस ने हाल ही में ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया है जो विवाह के नाम पर लोगों को ठगने का सुनियोजित कारोबार चला रहा था। आरोपी पहले से कई फर्जी शादियाँ कर चुका था। इस बार, न केवल दुल्हन नकली थी, बल्कि उसके 'माता-पिता' भी फर्जी निकले। एक भोला-भाला युवक, जो जीवनसाथी की तलाश में था, शादी के सपने लिए इस जाल में फँस गया और लौटे तो खाली जेब, टूटी उम्मीदें और गहरी मानसिक चोट के साथ। सोचिए, जब किसी के जीवन की सबसे बड़ी खुशी को शातिर गिरोह पैसे कमाने का साधन बना लें, तब कानून और समाज की जिम्मेदारी क्या बनती है?
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, हर साल भारत में हजारों लोग विवाह के नाम पर ठगी का शिकार होते हैं। 2023 में ही देशभर में लगभग 3200 से अधिक फर्जी विवाह और उनसे जुड़ी ठगी की शिकायतें दर्ज हुईं। इनमें से अधिकांश में महिला और उसके तथाकथित परिजनों ने विवाह के बाद धन, जेवर और नकद लेकर फरार होने की योजना पहले से बनाई होती है। इस बढ़ती प्रवृत्ति का सबसे दुखद पहलू यह है कि ऐसे अपराधों में शामिल महिलाएं न केवल कानून का मजाक उड़ाती हैं, बल्कि असल में शोषित और ज़रूरतमंद महिलाओं की आवाज को भी कमजोर करती हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
ऐसे मामलों में सबसे बड़ा सवाल उठता है: क्या हमारा कानूनी सिस्टम इतना सुस्त है कि शादी जैसे गंभीर और सामाजिक तौर पर महत्वपूर्ण विषय में भी फर्जीवाड़ा बेरोकटोक जारी रह सके? विवाह पंजीकरण प्रणाली को यदि सख्त और डिजिटल तरीके से लागू किया जाए, तो ऐसे 90 प्रतिशत मामलों को शुरुआती स्तर पर ही रोका जा सकता है। इसके लिए जरूरी हैः-
आधार वेरिफिकेशन से जुड़ा विवाह पंजीकरण: हर शादी का डिजिटल दस्तावेजीकरण और पहचान सत्यापन अनिवार्य किया जाए।
शादी ब्यूरो और मैरिज एजेंटों की निगरानी: जिन संस्थानों के माध्यम से रिश्ता तय हो, उनकी पृष्ठभूमि की जांच और पंजीकरण जरूरी बनाया जाए।
फर्जीवाड़ा रोकने के लिए विशेष अदालतें: ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएँ ताकि पीड़ितों को न्याय जल्दी मिले।
कई बार ऐसे मामलों में लोग यह सोचकर धोखा खा जाते हैं कि रिश्ता तय करने वाले लोग ‘परिचित’ हैं या ‘समाज के जानकार’। रिश्तों के नाम पर 'प्रस्ताव' भेजना, फिर थोड़ा दिखावा, एक-दो मुलाकातें, और शादी का दबाव- यही ट्रेंड बन चुका है। फिर आती है समाज की सबसे बड़ी विडंबना: लड़की के परिवार को कम सवाल पूछे जाते हैं, जबकि लड़के के घरवालों से लाख शर्तें मानी जाती हैं। यह असंतुलन भी ठगों के लिए रास्ता आसान करता है।
फर्जी दुल्हन गिरोह की खबरें समाज में महिलाओं को शक की निगाह से देखने की प्रवृत्ति को और बढ़ावा देती हैं।
यह न केवल महिलाओं के अधिकारों के लिए खतरनाक है, बल्कि असल पीड़ितों को भी न्याय से वंचित करता है। जब कोई महिला सही नियत से रिश्ता बनाना चाहती है, तब समाज का यह अविश्वास उसे शर्मिंदगी और मानसिक पीड़ा देता है। ऐसे में ज़रूरी है कि कानून ऐसे फर्जीवाड़ों को जड़ से खत्म करे, ताकि महिलाओं के प्रति समाज का विश्वास भी सुरक्षित रह सके।
आजकल मीडिया भी ऐसे मामलों को सनसनीखेज बनाकर परोसता है। ‘दुल्हन फरार’, ‘फर्जी सास-ससुर’, ‘लुटेरा परिवार’ जैसे शीर्षक बिकते हैं, लेकिन इससे आगे की पड़ताल जैसे कि ठगों के नेटवर्क, एजेंटों की भूमिका, और पुलिस की निष्क्रियता अक्सर छूट जाती है। मीडिया को चाहिए कि वह समाज को जागरूक करे, न कि सिर्फ मज़ाक उड़ाए या TRP के लिए खबरों को मसालेदार बनाए। यह पत्रकारिता की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह लोगों को जानकारी दे, चेतावनी दे और सही कदम उठाने की दिशा दिखाए।
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तब पैदा होती है जब ठगी के शिकार हुए लोग समाज में मज़ाक बन जाते हैं। पीड़ित लड़का या उसका परिवार जब पुलिस के पास जाता है, तो अक्सर ‘तू ही बेवकूफ है’, ‘थोड़ा देख-परख लिया होता’, ‘लड़की की फोटो में ही शक था’ जैसे ताने सुनने को मिलते हैं। ऐसी सोच को बदलना होगा। पीड़ितों को मदद, काउंसलिंग और कानूनी समर्थन चाहिए, न कि समाज से दुत्कार। अगर समाज पीड़ित के साथ खड़ा हो, तो अपराधियों की हिम्मत नहीं होगी दोबारा किसी के साथ ऐसा छल करने की।
आजकल ठग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं — फर्जी दस्तावेज, फर्जी पहचान, और यहां तक कि Deepfake वीडियो और नकली सोशल मीडिया प्रोफाइल्स भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं। लेकिन पुलिस अब भी पुराने तरीके अपनाकर जांच करती है थाने बुलाना, पूछताछ करना, ‘कुछ दिन बाद आना’। जब तक पुलिस साइबर अपराध की आधुनिक तकनीकों से लैस नहीं होगी, तब तक ये अपराधी आगे निकलते रहेंगे। हर जिले में साइबर सेल को विवाह संबंधित ठगी मामलों में विशेष प्रशिक्षण देना समय की मांग है।
सरकार और समाज को मिलकर एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। स्कूलों-कॉलेजों में युवाओं को रिश्तों में सतर्कता के बारे में जानकारी देना। पंचायत और ग्राम सभाओं में शादी से पहले पहचान सत्यापन और कानूनी समझ को बढ़ाना। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर विवाह तय करने वालों के लिए एक गाइडलाइन और चेकलिस्ट जारी करना। क्योंकि जब तक लोग खुद सतर्क नहीं होंगे, तब तक कोई भी कानून या एजेंसी उन्हें ठगी से नहीं बचा सकती।
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