हिसार। राजस्थान की राजधानी जयपुर से निकले बलवानसिंह ने वर्ष 1914 में जिस बीहड़ और जंगल के बीच कदम रखा था, आज वही स्थान हरियाणा के नक्शे पर रायपुर ढाणी के नाम से जाना जाता है—एक ऐसा गांव जो न केवल अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है, बल्कि आज शिक्षा, विज्ञान, समाजसेवा और राष्ट्रीय योगदान के लिए भी सम्मानित है।
जयपुर से आकर बलवानसिंह ने जिस गांव की नींव रखी, वह आज 8500 से अधिक लोगों की बसाहट बन चुका है। पहले यह स्थान चारों तरफ से घने जंगलों और एक बहती बांगली नदी से घिरा था। एक अकेली झोंपड़ी, राहगीरों के लिए विश्राम स्थल बनी और उसी राह के किनारे बसे इस स्थान को शुरुआत में ‘राहपुरिया’ कहा गया, जो बाद में रायपुर बन गया। बलवानसिंह का यह कदम अब सौ वर्षों से अधिक पुरानी एक जीवंत परंपरा बन चुका है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इस गांव की मिट्टी से उठकर कई नाम देश और दुनिया में चमके हैं। विशेष रूप से जयपुर से संबंध रखने वाला यह गांव तब चर्चा में आया जब यहां के निवासी डॉ. वीरेन्द्र सैनी ने मनीला (फिलिपींस) स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट में रिसर्च डायरेक्टर बनकर भारत को वैश्विक स्तर पर गौरवान्वित किया। दो बार भारत में टॉप करने और विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर आने वाले डॉ. सैनी के कार्यों की सराहना स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं।
लेकिन यह गांव सिर्फ विज्ञान या कृषि अनुसंधान तक सीमित नहीं है। यहां की शिक्षा व्यवस्था भी प्रेरणादायक है। राजकीय स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं—काजल, खुशी और रचना—ने हाल ही में हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में 94, 91 और 91 प्रतिशत अंक प्राप्त करके गांव और स्कूल का नाम ऊंचा किया है। गांव के विद्यालय में 100 वर्ष पुराना कुआं आज भी अपनी ऐतिहासिकता की गवाही देता है।
रायपुर ढाणी का गौरव केवल आधुनिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। आज़ादी की लड़ाई में योगदान देने वाले स्व. खेतूराम आज़ाद हिंद फौज के वीर सिपाही रहे हैं, जबकि स्व. पतराम बिजारनिया ने एशियाई खेलों में हैमर थ्रो में देश के लिए रजत पदक जीता था।
गांव की जनसंख्या 8500 के करीब है और यह 1449 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। जातीय विविधता के बावजूद यहां का सामाजिक समरसता का वातावरण मिसाल पेश करता है—ब्राह्मण, सैनी, जाट, गुर्जर, वाल्मीकि, जांगड़ा, सैन, प्रजापति, यादव समेत कई समुदाय यहां मिलजुल कर रहते हैं।
यहां के युवाओं में देशभक्ति और समाजसेवा का जज़्बा भी दिखता है। दिल्ली पुलिस में उपाधीक्षक धर्मवीर, बैंक मैनेजर वजीर, रोडवेज निरीक्षक ओमप्रकाश, मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञ डॉ. ईशा, डॉ. सपना और डॉ. संदीप बराला सहित अनेक लोग राष्ट्रीय सेवाओं में कार्यरत हैं। सेना और वायुसेना में भी इस गांव के विनय सिंह और विक्रम सिंह मिठारवाल पायलट के रूप में कार्य कर रहे हैं।
गांव में शिक्षा के चार केंद्र, पशु अस्पताल, जलघर, सहकारी बैंक, ग्रामीण बैंक और पांच आंगनवाड़ियां कार्यरत हैं। धार्मिक आस्था के केंद्र—हनुमान मंदिर, रामदेव मंदिर, शनि मंदिर, शान्तिगिरी धाम और शिव मंदिर (ढाणी)—गांव की सांस्कृतिक आत्मा को जीवित रखते हैं।
रायपुर और ढाणी अब दो अलग पंचायतें हैं—रायपुर में 10 वार्ड और ढाणी में 9 वार्ड हैं। यहां के वर्तमान कार्यवाहक सरपंच क्रमशः अमित (रायपुर) और विक्रम सैनी (ढाणी) हैं, जबकि अतीत में कृपाराम सैनी पहले सरपंच के रूप में जाने जाते हैं।
इस गांव को अपनी जड़ों से जोड़े रखने वाला सबसे बड़ा तथ्य यह है कि इसकी शुरुआत जयपुर की धरती से हुई थी। बलवानसिंह का वह फैसला, जो एक सदी पहले जंगलों के बीच लिया गया था, आज हरियाणा की धरती पर एक स्वर्णिम गाथा बन चुका है।
रायपुर ढाणी सिर्फ एक गांव नहीं, वह प्रतीक है—जयपुर की दूरदर्शिता, हरियाणा की मेहनत, और भारत के गौरव का।
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