गुडग़ांव। हरियाणा के लोक निर्माण मंत्री राव नरबीर सिंह ने गुरुग्राम में संत शिरोमणि कबीर दास जी की 640वीं जयंती के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की। कार्यक्रम में उनके साथ गुरुग्राम के उपायुक्त हरदीप सिंह भी उपस्थित थे। इस अवसर पर जिला कल्याण विभाग द्वारा सेमिनार व गोष्ठी का आयोजन किया गया था। मंत्री ने गोष्ठी के प्रतिभागियों को एक-एक हज़ार रूपये की राशि देकर सम्मानित किया। यह जिला स्तरीय कार्यक्रम गुरुग्राम के राजकीय कन्या महाविद्यालय सैक्टर-14 में आयोजित किया गया था। लोक निर्माण मंत्री ने हरियाणा सरकार द्वारा संत शिरोमणि कबीर दास जी की जयंती को प्रदेश के प्रत्येक जिले में मनाए जाने की सराहना की। उन्होंने कहा कि आज से पहले किसी भी सरकार ने महापुरूषों की जयंती को मनाए जाने का फैसला नही लिया है लेकिन भाजपा सरकार ने प्रदेश के प्रत्येक जिले में महापुरूषों की जयंती मनाने का निर्णय लेकर इतिहास रचा है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
संत शिरोमणि कबीर दास जी के जीवन पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि संत कबीर ने हमेशा इंसानियत को सर्वोपरि समझा। कबीरदास ने उस समय सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई जब हमारा समाज ऐसी सैंकड़ो कुरीतियों की बेडिय़ों में जकड़ा हुआ था। उनका मानना था कि इंसान जाति , धर्म, वर्ण या वर्ग से नही बल्कि अपने गुणों से बनता है। राव नरबीर सिंह ने कहा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मै ऐसे परिवार से संबंध रखता हूं जिन्होंने हमेशा संत कबीरदास जी का अनुसरण किया। उन्होंने कहा कि महापुरूषों की जयंती को मनाने का उद्द्ेश्य यह है कि आने वाली युवा पीढ़ी हमारे देश के महापुरूषों के अच्छे विचारों को अपने जीवन में धारण करें और उन द्वारा दी गई सीख पर आगे बढ़े। उन्होंने कहा कि हमारे देश का संविधान डा. भीमराव अम्बेडकर ने बनाया जिसमें सभी धर्म, जाति व समुदायों के लोगों को एक समान रखा गया है, जो सभी पर लागू होता है।
इस अवसर पर गुरुग्राम के उपायुक्त हरदीप सिंह ने कहा कि सभी धर्म, जाति व समुदायों की धारा भले ही अलग-अलग हो लेकिन सभी का रास्ता मानवता की ओर जाता है। उन्होंने कहा कि हमारे देश में जितने भी ऋषि-मुनि व महापुरूष हुए है, उन सभी ने हमें मानवता का पाठ पढ़ाया है। यदि हमारा हृदय निर्मल व कोमल होगा हम स्वयं को परमात्मा के समीप महसूस करेंगे। उन्होंने कहा कि संत कबीर नर व नारी दोनो को समान समझते थे। उनके लिए जड़ व चेतन में कोई फर्क नही था। संत कबीर ने सभी धर्मों को एक सूत्र में बांधने का काम किया। संत कबीरदास ने अपने जीवनकाल में अनेक सामाजिक बुराइयों पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने समाज को हिंदू-मुस्लिम जातिवाद, भेदभाव, आडंबर, झूठे , कर्मकांड, मूर्तिपूजा जैसी दकियानुसी एवं तंगदिली से भारतीय समाज को बाहर निकालकर एक नईराह पर लाने का प्रयास किया।
राजकीय महाविद्यालय सैक्टर-14 की प्राचार्या डा. सुशीला ने इस अवसर पर कहा कि संत कबीर बाहृय आंडबरों के घोर विरोधी थे। उनका मानना था कि ईश्वर हृदय में निवास करते है। संत कबीरदास ने छुआछूत जैसी बुराईयों के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी। उन्होंने कहा कि अपने भीतर की अज्ञानता को दूर करने के लिए जरूरी है कि ज्ञानी पुरूष की संगत की जाए क्योंकि अच्छे लोगों की संगत इत्र के समान होती है जो अपने अच्छे गुणों व आचरण से दूसरों के जीवन को भी सुगंध से भर देते है। उन्होंने कहा कि यदि बाहृय आंडबरों में पडऩे से ज्यादा जरूरी है कि व्यक्ति अपने चरित्र के दागों को साफ करें और सद्गुणों को अपने जीवन में धारण करें। समारोह में राजकीय महाविद्यालय सैक्टर-14 की छात्रा रीया व ईशा ने गोष्ठी में संत कबीरदास के जीवन पर अपने विचार रखें जिसे उपस्थित लोगों ने खूब सराहा। समारोह में वक्ता जय भगवान ने भी संत कबीरदास के जीवन पर आधारित अपने विचार रखे।
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