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चंडीगढ़ । हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन की सरकार क्या बनी प्रदेश के लोग लगातार सवाल पूछ रहे हैं कि क्या हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जननायक जनता पार्टी (जजपा) का गठबंधन पूरे पांच साल चल पाएगा ? क्या मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर जजपा के चुनावी घोषणा पत्र को लागू करने में रुचि लेंगे? क्या उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला अपनी पार्टी के विधायकों को अपनी मर्जी के मुताबिक मंत्री पद दिलवा पाएंगे? क्या बीच में भाजपा की तरफ से जजपा के विधायक तो नहीं तोड़ लिए जाएंगे? क्या मुख्यमंत्री खट्टर जजपा के दबाव में सरकार चलाएंगे? जितने मुंह, उतनी बातें हैं.
इसमें कोई शक नहीं है कि जजपा को भाजपा के विरोध में वोट मिले हैं । साथ ही यह जनादेश भाजपा के समर्थन के लिए नहीं मिला है. लेकिन, यहां संयोग से असंध के पूर्व विधायक बख्शीश सिंह विर्क की कही सच साबित हो गई है. विर्क ने जन सम्पर्क अभियान के दौरान लोगों से कहा था कि आप जिसे चाहे वोट दे दो, जाएगा कमल के फूल को ही । यही हुआ भी, भाजपा को 40 सीटें मिलीं और पार्टी बहुमत से पांच कदम दूर रह गई. ऐसी स्थिति में न केवल आज़ाद विधायक मंत्री पद की चाह में भाजपा की तरफ दौड़ लिए, बल्कि जजपा ने भी भाजपा का पक्ष लेने में कोई देर नहीं लगाईं । कांग्रेस को छोड़ कर सभी पार्टियों के विधायक भाजपा के पाले में जा खड़े हुए ।
भाजपा से समझौते के तहत जजपा सुप्रीमो दुष्यंत चौटाला उप मुख्यमंत्री की कुर्सी पा गए । जल्दी ही वे अपनी पार्टी के दो या तीन विधायकों को मंत्री पद दिलवा देंगे । हो सकता है कि भाजपा को समर्थन के बदले आने वाले दिनों में राज्यसभा की भी एक सीट मिल जाए. भाजपा और जजपा के बीच अभी न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी तय होना है, लेकिन जजपा अपने चुनावी घोषणा पत्र को पूरी तरह लागू करवा पाएगी या नहीं, यह अभी देखना होगा. भाजपा ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करते हुए कोई लम्बे-चौड़े वाडे नहीं किये थे, जबकि जजपा ने दिल खोल कर अरबों रुपए के खर्चे वाली लोक लुभावन घोषणाएं की थीं ।
अपने पिछले कार्यकाल के दौरान पूरे पांच साल तक खट्टर निरकुंश तरीके से कार्य करते रहे हैं । भाजपा विधायक जानते थे कि खट्टर के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई सुनवाई नहीं करेंगे, इसलिए उनके विरुद्ध मैदान में उतरे 'सुधारक' विधायकों ने जल्दी ही हथियार डाल दिए । भाजपा विधायकों और मंत्रियों को चुप रह कर अपना कार्यकाल पूरा करना पड़ा, लेकिन लगता नहीं कि जजपा के विधायक किसी दबाव के तहत चुप रहेंगे । भले ही खट्टर कह रहे हैं कि आगे भी उनकी सरकार 'बिना खर्ची, बिना पर्ची' ही चलेगी. आने वाले दो-तीन महीनों में सब साफ़ हो जाएगा.
गठबंधन सरकार के फायदे भी हैं और नुकसान भी । फायदे यह हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के परिवार की चौदह साल बाद सत्ता में वापसी हो गई है । सत्ता में रहते हुए दुष्यंत के लिए अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाना आसान होगा. उनके साथ नए लोग जुड़ सकेंगे, अपने पुराने कार्यकर्ताओं को कांग्रेस या भाजपा की तरफ जाने के रोक पाने में भी उन्हें कामयाबी मिल जाएगी । जजपा के गठबंधन सरकार में शामिल होने से बहुत हद तक कार्यकर्ताओं की निराशा दूर होगी । अगर वे किसानों का कर्ज माफ़ करवा पाए, बुजुर्गों को 5100 रूपये महीना पेंशन दिलवा पाए और हरियाणा के बेरोजगार नौजवानों के लिए उद्योगों में 75 फीसदी नौकरियां आरक्षित करवा पाए तो निश्चित तौर पर उनका राजनीतिक कद बढ़ेगा ।
दूसरी तरफ भाजपा ने इस बार चुनावों में कोई लम्बे-चौड़े वादे नहीं किये थे । लोकसभा चुनावों में राज्य की सभी दस सीटें जब भाजपा के खाते में चली गई तो पार्टी को यकीन हो गया कि मनोहर सरकार आसानी से फिर सत्ता हासिल कर लेगी । राज्य की कुल 90 विधानसभा सीटों में से भाजपा को लोकसभा चुनावों के दौरान 79 सीटों पर बढ़त मिली थी. यही एक ऐसा संकेत था कि भाजपा फिर सत्ता में आ रही है. इसी वजह से भाजपा ने 'इस बार 75 पार' का नारा दिया था । लेकिन कोई नहीं जानता था कि सात महीने बीतते-बीतते भाजपा की यह हालत हो जाएगी कि पार्टी बहुमत के लिए ही टीआरएस जाएगी ।
इस समय भी सोशल मीडिया पर जजपा की तारीफ कम और आलोचना ज्यादा हो रही है । जजपा का भाजपा को समर्थन देने का फैसला लोगों को अभी ज्यादा पसंद नहीं आया है । जजपा सुप्रीमो दुष्यंत के साथ का भाजपा दिल्ली के आने वाले विधानसभा चुनावों में लाभ उठाना चाहेगी । हरियाणा जीटी तरफ से दिल्ली को घेरता है और सीमावर्ती इलाकों में बड़ी तादाद में जाट मतदाता रहते हैं । दिल्ली चुनावों के बाद तय होगा कि भाजपा और जजपा के रिश्ते आगे चल पाएंगे या नहीं?
उधर, इस गठबंधन के प्रति लोगों की भावनाओं को देखते हुए ही कांग्रेस अपनी राय दे रही है. राज्य में सरकार बनाने के लिए भाजपा और जजपा के बीच गठबंधन कांग्रेस को नहीं भा रहा है. कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने इसकी निंदा करते हुए कहा है, 'हरियाणा के मतदाताओं के साथ यह विश्वासघात है.' उन्होने कहा कि प्रदेश में मतदाताओं ने जजपा को जो 10 सीटें दी हैं, वह भाजपा के खिलाफ दी हैं. जजपा के भाजपा को समर्थन देने के फैसले के बाद मतदाता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं ।
कुमारी सैलजा का कहना है कि भाजपा को समर्थन देकर जजपा ने सत्ता लोलुप होने का परिचय दिया है. उन्होंने कहा कि भाजपा ने वोटों की खातिर हरियाणा के भाईचारे को खराब किया और अब जजपा उसी पार्टी के साथ जा खड़ी हुई है, जिसने सत्ता में रहते हरियाणा को तीन बार जलवाने और कारोब 80 लोगों को पुलिस की गोलियों से मरवाने का काम किया ।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि जनता ने साजिश को पहचान कर ही विधानसभा चुनावों में भाजपा को मुंहतोड़ जवाब दिया था, लेकिन प्रदेश की जनता जजपा को पहचान नहीं पाई, जो एक सोची-समझी योजना के तहत भाजपा की 'बी टीम' के तौर पर मैदान में उतरी थी. जजपा ने चुनाव नतीजे आते ही भाजपा को समर्थन देने में जरा भी देर हीं की ।
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