चंडीगढ़। कभी युवाओं को सपने दिखाने वाले आज खुद अपने भविष्य को लेकर असमंजस में हैं। हरियाणा के सरकारी स्कूलों में अनुबंध पर तैनात टीजीटी, पीटीआई और कला अध्यापकों को हाल ही में राहत की उम्मीद थी, लेकिन अब उन्हें फिर निराशा का घूंट पीना पड़ रहा है।
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उम्मीद बंधी थी… अगले आदेश ने तोड़ दी!
एक अप्रैल को जब 679 टीजीटी अध्यापकों को नौकरी से निकाल कर सरप्लस करार दिया गया तो पूरे प्रदेश में निराशा और निराशा का माहौल था। 28 अप्रैल को सरकार ने आदेश पलटते हुए सभी को फिर से समायोजित करने और अनुबंध एक साल बढ़ाने के निर्देश दिए। हालात सुधरते नजर आए। लेकिन, अब शिक्षा विभाग ने उस समर्थन को ठुकरा दिया है।
30 जून – नौकरी खत्म, उम्मीदें भी ख़त्म!
मौलिक शिक्षा महानिदेशालय ने साफ निर्देश दिए हैं। 30 जून के बाद अतिरिक्त अध्यापकों की सेवाएं समाप्त मानी जाएंगी। इसका मतलब यह है कि स्कूलों के दरवाजे तो खुले रहेंगे... लेकिन ये अध्यापक नहीं होंगे।
रोज़गार टूटा, भरोसा भी बिखर गया!
इनमें से कई शिक्षक एक ही स्कूल में 4-5 साल तक रहने के बाद समुदाय की उम्मीद बन गए थे और छात्रों के साथ उनका जुड़ाव हो गया था। अब अचानक उन्हें कहना पड़ रहा है: "मैं अब आपका शिक्षक नहीं हूँ।" एक ऐसे युवा के बारे में सोचें जो अपने सबसे अच्छे कला शिक्षक से प्यार करता है। एक माँ के बारे में सोचें जो घर के खर्चों को पूरा करने के लिए इस नौकरी पर निर्भर थी।
सरकार: फंड की मजबूरी। शिक्षक: हम भी इंसान!"
शिक्षा विभाग का कहना है कि अनावश्यक शिक्षकों से स्कूल व्यवस्था का बजट खराब होता है. फिर भी, क्या कला शिक्षक या पीटीआई भी बोझ है? सरकार की नीति है "हर संस्थान में हर विषय का शिक्षक" फिर ये तकनीकी औचित्य क्यों? ?
आगे क्या हो सकता ?
क्या ये शिक्षक न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे? क्या सरकार एक बार फिर अपना तरीका बदलेगी? क्या बीच सत्र में बच्चों को अतिथि शिक्षकों की दया पर छोड़ दिया जाएगा? ये सभी मुद्दे अब व्यवस्था के गले की हड्डी बन गए हैं.
शिक्षा: बंधन या प्रबंधन?
शिक्षा केवल कार्यक्रमों, पाठ्यक्रमों या संरचनाओं पर निर्भर नहीं करती. यह शिक्षक और छात्र के बीच एक बंधन, विश्वास पर आधारित है. अगर एक ही शिक्षक लगातार "अतिरिक्त" होते रहेंगे, तो शिक्षा "सेवा" के बजाय केवल "प्रबंधन" बन जाएगी. और जैसे-जैसे स्कूली शिक्षा प्रबंधन में बदलती जाएगी, वैसे-वैसे समाज का भविष्य एक स्लाइड शो में बदल जाएगा; कोई नहीं जानता कि अगली स्लाइड में क्या होगा.
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