चण्डीगढ़। 33वें सूरजकुंड शिल्प मेले में हरियाणवी संस्कृति की पहचान बनी हरियाणा धरोहर की स्टॉल सैलानियों को लगातार अपनी तरफ आकर्षित कर रही है। जिम्बाब्वे से आए मंजे हुए कलाकार चार्ल्स , लुईस, मबंडे, महंडे, चिनयॉमबेरा व चोकोटोजो बुधवार को हरियाणा दर्शन के स्टॉल के सामने से गुजरते हुए एक कुम्हार की कारीगरी देखकर वहीं रूक गए। कुम्हार चाक के द्वारा मिट्टी को तराशकर मूर्त रूप दे रहा था। जिम्बाब्वे के कलाकारों ने मिट्टी के बर्तन बना रहे कुम्हार के साथ बैठकर स्वयं बर्तन बनाने का अनुभव प्राप्त किया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
उन्होंने कहा कि यहां की संस्कृति बहुत महान है। दुनिया के इतने आगे बढ़ने पर भी यहां के लोग यहां की प्राचीन संस्कृति को बचाए रखने के लिए पीढियों से यह काम कर रहे हैं। ऐसा बहुत कम देशों में देखने को मिलता हैै। उन्होंने इस मौके पर बर्तन बनाने वाले कुम्हार के साथ सेल्फी भी ली। हरियाणवी धरोहर के कर्मचारियों ने सैलानियों को चॉक से बर्तन बनाने का इतिहास विस्तारपूर्वक समझाया।
मिट्टी के बर्तन बनाने वाले गांव डींग जिला कैथल निवासी बलबीर सिंह ने बताया कि वे पीढ़ी दर पीढ़ी इस काम को करते आ रहे हैं और वे स्वयं 25 साल से इस विधि द्वारा बर्तन बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि भले ही उनकी आमदनी कम है परंतु उन्हें संतुष्टि है कि वह प्लास्टिक की संस्कृति से परे मिट्टी के बर्तन बनाकर पर्यावरण को संरक्षित रखने में अपना योगदान कर पा रहे हैं। मेले में स्कूलों के नन्हें विद्यार्थी भी पर्यावरण बचाने व जल संरक्षण का सार्थक सन्देश लिखी हुई तख्तियां हाथों में लेकर जागरूकता रैली निकाल रहे हैं।
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