चंडीगढ़। यूं तो हरियाणा के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। लेकिन, देश की नजरें हरियाणा के चुनाव पर हैं। चर्चा भी सबसे ज्यादा हरियाणा को लेकर है। क्योंकि 10 साल की एंटी इंकमबेंसी और जाट, ब्राह्मण, पंजाबी, एससी-बीसी समेत विभिन्न वर्गों की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। इसलिए उत्तर भारत का प्रमुख प्रांत होने से हरियाणा के ये चुनाव निश्चित रूप से भारतीय राजनीति पर दूरगामी प्रभाव डालने वाले होंगे।
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हरियाणा के चुनावों का असर आने वाले झारखंड, महाराष्ट्र और बिहार के चुनावों में भी दिखाई देगा। लोकसभा चुनावों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के गिरते ग्राफ के कारण बीजेपी ने सियासी तोड़फोड़ की प्लानिंग कर रही है। जैसा कि उनको मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र का अनुभव है। यही वजह है कि हरियाणा में कुछ सीटों से बीजेपी मैदान से पीछे हट गई और उन्होंने अन्य प्रत्याशियों को परदे के पीछे से समर्थन दे दिया है। पीछे हटने के मायने यह है कि एक सीट पर तो बीजेपी प्रत्याशी हट चुका है, कुछ सीटों पर बीजेपी ने प्लानिंग के तहत कमजोर प्रत्याशी उतारे हैं ताकि परिणाम आने के बाद सियासी दांव चला जा सके।
बहरहाल हरियाणा के इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के टूटे जादू और उनकी खड़ाऊ रखकर शासन चलाने वाले लोगों के प्रति वोटरों में जो गुस्सा है वही इस चुनाव का मुख्य बिंदु है। बात करंट और अंडर करंट की चल रही है। सियासी सयानों का मानना है कि इस चुनाव में बीजेपी के साथ-साथ दुष्यंत चौटाला की जेजेपी, हलोपा, बसपा, आजाद समाजपार्टी तिनके की तरह उड़ सकती हैं। हाल ही जेल से बाहर आए अरविंद केजरीवाल कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाएंगे। कुछ सीटों पर कांग्रेस को मार्जिनल वोटों से हरवा जरूर सकते हैं। क्योंकि 5-6 सीटों पर आप उम्मीदवारों की स्थिति ठीकठाक बताई जा रही है।
आश्चर्यजनक यह है कि ताऊ देवीलाल के पोते की पार्टी जजपा के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी से भी ज्यादा बदलाव का माहौल है। उचाना कलां में जहां से स्वयं दुष्यंत चौटाला चुनाव लड़ रहे हैं, उन्हें सबसे ज्यादा पसीने आ रहे हैं। इज्जत दांव पर जो लगी है। हालांकि उन्होंने आजाद समाज पार्टी से गठबंधन करके जाट-एससीबीसी वोटों को साधने की कोशिश की है। यही रणनीति उनके चाचा अभय सिंह चौटाला ने बसपा से गठबंधन करके अपनाई है। लेकिन, ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। क्योंकि 10 साल से सत्ता के बाहर होने की छटपटाहट जाट वोटरों में उभऱ कर आ रही है। इसलिए वे इस बार किसी हालत में अपना वोट बंटने नहीं देना चाहते हैं। एससी-बीसी वोटर भी अपने वोट की कीमत समझ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल ही हुई कुरुक्षेत्र जनसभा जिसमें करीब 23 विधानसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगे गए थे, उस सभा मात्र 5000 लोग जुट पाए है ना आश्चर्यजनक बात। इसीलिए लाइव में भी अधिकांश समय मंच को ही दिखाया गया। पब्लिक में कैमरा सिर्फ मंच के आसपास ही रहा।
अधिकतर सर्वे, सट्टा बाजार और कुछ प्रायोजित ओपिनियन पोल को छोड़कर देश के सारे ओपिनियन पोल कांग्रेस का पक्ष भारी होने की भविष्यवाणी कर रहे है। जो रिपोर्टर हरियाणा में घूम रहे हैं और लोगों से बात कर रहे हैं तो बीजेपी के प्रति लोगों का गुस्सा स्पष्ट सामने आ रहा है। बीजेपी के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग भी यह कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं कि बीजेपी फिर से सरकार बनाएगी वे भी दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं हवा तो कांग्रेस की चल रही है। बीजेपी सरकार से किसान बेहद नाराज हैं। पहलवान बेटियों के शोषण के खिलाफ हरियाणा की महिला शक्ति भी बीजेपी को सबक सिखाने को आतुर दिख रही है। जाट समुदाय ने भी इसे अपनी सामाजिक मान मर्यादा का सवाल बना लिया है।
हालांकि बीजेपी के रणनीतिकारों ने मायावती और चंद्रशेखर का उपयोग करने की कोशिश की है। इसीलिए मायावती का समझौता अभय चौटाला से कराया है। इनेलो को बीजेपी की बी-टीम बताकर कांग्रेस घेरने का प्रयास कर रही है। लेकिन, खेल एक्सपोज होता नजर आ रहा है। जाटों के समर्थन का अभय चौटाला को जो भरोसा था वह अब उनकी सीट पर भी टूटा हुआ नजर आ सकता है। यह बात अलग है कि किसान आंदोलन के चलते इस्तीफा दे देने की वजह से अभी उनका रसूख बचा हुआ है! लेकिन, अभय चौटाला अपनी ऐलनाबाद वाली सीट बचा लें, इतना ही लग रहा है बाकी उनके उम्मीदवार जीतने की स्थिति में नजर नहीं आ रहे हैं।
आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण ने दुष्यंत चौटाला के साथ समझौता किया है। दुष्यंत चौटाला की पार्टी के बारे में हरियाणा में कोई बात भी नहीं करना चाहता। आप समझ सकते हैं कि इस डूबते हुए जहाज पर अनुसूचित जाति के लोग कैसे भरोसा कर लेंगे। खास कर जब संविधान का सवाल उनके सामने खड़ा हो। एसी स्थिति में लोकसभा चुनाव की तरह अनुसूचित जाति का वोट कांग्रेस के साथ इंटेक्ट होता दिख रहा है। दावा किया जा रहा है कि हरियाणा में 22% जाट पॉपुलेशन है और 21% अनुसूचित जाति की। यह दोनों मुख्य जाति वर्ग चुनाव परिणाम को खासा प्रभावित करेंगे। देखना है कि ये सत्ता की चाबी किसे सौंपते हैं।
अग्निवीर योजना का मुद्दा यादव और गुर्जर बेल्ट में बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। इसीलिए बीजेपी भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा समेत कांग्रेस पर इस योजना को लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगा रही है। पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के व्यवहार से परेशान पंजाबी समुदाय तक में उनके खिलाफ नाराजगी साफ़-साफ़ नज़र आ रही है।
बीजेपी से प्रतिबद्ध सवर्ण वर्ग भी इस बार विभाजित लग रहा है। खासकर वैश्य वर्ग में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने और सोनीपत से कविता जैन, पलवल से दीपक मंगला समेत कई टिकट काटे से जाने से नाराजगी है। इसलिए हिसार में सावित्री जिंदल को समाज का एकमुश्त वोट पड़ सकता है। हालांकि वैश्य वर्ग की ओर से समाज के उम्मीदवार घनश्याम सर्ऱाफ, विपुल गोयल, महाबीर गुप्ता, गोपाल कांडा, नवीन गोयल और विजय जैन की स्थिति काफी मजबूत मानी जा रही है।
अगर बात करें ब्राह्मणों की तो समाज के सबसे बड़े नेता पंडित रामविलास शर्मा का टिकट महेंद्रगढ़ से काट दिए जाने के बाद ब्राह्मण समाज में भी बीजेपी के प्रति जबरदस्त गुस्सा दिख रहा है। इसके लिए पूर्व सीएम खट्टर को उत्तरदाई बताया जा रहा है।
चौधरी बंसीलाल परिवार की बहू किरण चौधरी के भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन करने के बाद तोशाम में जहां सशक्त राजपूत प्रतिनिधि टिकट का दावेदार था, टिकट कटने से अब राजपूत समाज में भी नाराजगी है। कहते हैं अरविंद केजरीवाल को बीजेपी ने हरियाणा चुनाव में एंटी बीजेपी वोट में विभाजन के लिए बेल दिलवाई है। लेकिन, अंतत: यह भी बीजेपी के लिए नुकसान का सौदा साबित हो रहा है। अग्रवाल समुदाय केजरीवाल के पीछे गोल बंद होता नजर आ रहा है। क्योंकि केजरीवाल अग्रवाल हैं और स्वयं भी हरियाणा के हैं। उन पर किए गए अत्याचारों की टीस वैश्य समाज को है।
जाटों के बाद किसानों की नाराजगी सबसे महत्वपूर्ण पक्ष बना हुआ है। किसान चाहे किसी भी जाति का है बीजेपी की नीतियों से परेशान है और जो अत्याचार उसने झेला है वह इस विधानसभा चुनाव में अपना वोट के माध्यम से बदला लेने को आतुर दिखाई देता है। यूं तो दोनों ही पार्टियों में विरोध और अंर्तविरोध है। लेकिन, बीजेपी का अंर्तविरोध सतह पर ज्यादा दिख रहा है। हिसार में कुरुक्षेत्र सांसद और पाला बदलकर भाजपा में आए नवीन जिंदल की माताजी सावित्री जिंदल बीजेपी उम्मीदवार के सामने निर्दलीय खड़ी हैं।
बीजेपी की निश्चित जीत वाली सीट उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं। आदमपुर में भव्य विश्नोई, ऐलनाबाद में अभय चौटाला और किसी हद तक लाडवा में नायब सैनी को छोड़कर अन्य किसी सीट पर बीजेपी की निश्चित जीत की भविष्यवाणी करना बेहद मुश्किल है। यहां तक की तोशाम में भी किरण चौधरी की बेटी श्रुति चौधरी के खिलाफ उन्हीं के भाई अनिरुद्ध चौधरी को खड़ा करके कांग्रेस ने चुनाव को रोमांचक बना दिया है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा सापला खुर्द से शायद सबसे बड़ी जीत हासिल करें। लेकिन, उनके मुकाबले की जीत की संभावना जुलाना में विनेश फोगाट की भी हो सकती है। जहां विनेश फोगाट के पक्ष में अच्छा-खासा माहौल नजर आ रहा है।
अगर पिछले 8-10 विधानसभा की बात करें तो गुजरात में जिस तरह बीजेपी के पक्ष में माहौल था। हरियाणा में वैसा माहौल कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहा है। अगर, चुनाव तक यही माहौल बना रहा और मशीनरी से कोई छेड़छाड़ नहीं हुई तो ऐसा लगता है कांग्रेस तीन चौथाई सीटों से सत्ता हासिल कर सकती है। क्योंकि 50- 55 सीट की बात तो सट्टा बाजार और सर्वे कर ही रहे हैं। यानी कांग्रेस जिन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में 28% वोट मिला था। लगभग 45-46 % वोट हासिल कर सकती है। जबकि 38% वोट प्राप्त करने वाली बीजेपी 25% वोटों पर आ सकती है और 12.5% वोट जेजेपी को मिला था वह इस बार मुश्किल से 3% पर आता हुआ नजर आ रहा है।
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