सेमिनार में वक्ता के रूप में चण्डीगढ़ से पधारे साहित्य अकादमी पुरस्कार से प्राप्त कवि एवं लेखक डॉ. सुरजीत पात्तर ने बोलते हुए कहा कि गुरु नानक देव जी की वाणी बड़ी अद्ïभुत है, जिसमें प्रकृति के साथ गहरा रिश्ता छिपा है। उनके बारह माह वाणी संग्रह में प्रकृति को आधार मानकर उसे रूहानियत से जोड़ा गया है। चण्डीगढ़ से ही पधारे नाटक लेखक आत्मजीत सिंह ने अकहा कि गुरु नानक देव जी किसी एक विशेष जाति या धर्म के नही थे, उनका संदेश समाज के सभी वर्गों के लोगो के लिए था। उन्होंने अपनी वाणी में गुरू शिष्य परम्परा पर जोर देते हुए कहा था कि गुरु बिन ज्ञान नही। जीवन से मुक्त होने के लिए नाम का सहारा लेकर उसका पालन करने की बात कही थी। गुरु जी ने गृहस्थ जीवन को सबसे बड़ा धर्म बताया और कहा कि व्यक्ति गृहस्थी में रहते हुए भी सत्य और परमार्थ के मार्ग पर चल सकता है।
उन्होंने समरसता बनाए रखने को भी जोर दिया था तथा कहा था कि ना कोई हिन्दू है तथा ना मुसलमान, सभी मानव एक है। अहंकार को गुरू नानक देव जी ने दीर्घ रोग करार देते हुए कहा था कि अहंकार व्यक्ति को प्रभु से दूर ले जाता है। उन्होंने कहा था कि सब कुछ प्रभु का दिया हुआ है, फिर अहंकार किस बात का। उन्होंने यह संदेश दिया था कि व्यक्ति प्रभु को पाने से पहले स्वयं को पहचाने। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ० जगबीर सिंह ने बोलते हुए कहा कि गुरु नानक देव जी की वाणी को समझने के लिए भारतीय दर्शन को समझने की जरूरत है। आज हम अलग-अलग तरीके से ईश्वर को सिद्घ करने में लगे हैं, लेकिन गुरु जी ने एक ओंकार से अपनी वाणी की शुरूआत की थी। यानि परमात्मा एक है और वह निराकार है। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी वर्ण व्यवस्था के विरूद्घ थे तथा कहते थे कि व्यक्ति की कोई जात नही, सभी एकेश्वर की संतान हैं।
सेमीनार में दी ट्रिब्यून चण्ड़ीगढ के सीनियर एसोसिएट एडिटर रूपिन्द्र सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि गुरु नानक देव जी जिस समय अवतरित हुए, उस समय समाज अलग-अलग धर्मों में बंटा हुआ था, ऐसे समय में उन्होंने जगह-जगह जाकर भटके हुए लोगो को राह दिखाने का काम किया और लोगो को समझाया कि ईश्वर अलग-अलग नही, बल्कि एक है, उस तक पहुंचने के लिए रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में परमार्थ के साथ-साथ सामाजिक समस्याओं का निराकरण भी किया, जो आज भी हमारे सामने व्यापत हैं। उन्होंने कहा कि आदमी को मेहनत और ईमानदारी से आदर्श जीवन जीना चाहिए। उनकी सोच में मानस की कोई जात नही होती, का संदेश निहित था। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी को किसी एक धर्म या पंथ से नही जोड़ा जा सकता, अपीतु उनकी शिक्षाएं सारी दुनिया के लिए है।
सेमीनार में इंगलैंड से पधारे डॉ. हरजिन्द्र सिंह दिलगीर ने अपने मुख्य भाषण में सारी दुनिया को ज्ञान देने वाले गुरु नानक देव जी को रूहानियत मेगनेट करार देते हुए कहा कि उन्होंने जिसको भी शिक्षा दी, वह उसके मुरीद हो गए। उन्होंने कहा कि गुरु नानक देव जी की नजर में कोई व्यक्ति छोटा या बड़ा नहीं था । गुरु जी ने काम, क्रोध, मोह व अहंकार को त्याग कर नाम से जुडकऱ संसारिक आवागमन से मुक्त होने की बात कही थी।
कार्यक्रम में आयोजको की ओर से आए हुए वक्ताओं को स्मृति चिन्ह व शाल देकर उनका सम्मान किया गया। करनाल के उपायुक्त विनय प्रताप सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए आशा व्यक्त की कि गुरू नानक देव जी का संदेश लोगों को सत्य और ईमानदारी पर चलने के लिए हमेशा मार्गदर्शन करता रहेगा। उन्होंने गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले कार्यक्रमों का आगाज करनाल से करने के लिए सूचना, जन सम्पर्क एवं भाषा विभाग का धन्यवाद किया।
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