चंडीगढ़। दुनिया में बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो हठी होते हैं। वे किसी बात कही जिद कपड़ लें तो फिर भलेंही कुछ भी हो, लेकिन जिद पूरी करके ही दम लेते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं हरमन सिद्धू। जिन्होंने भी एक ऐसी जिद पकड़ी जो खुद के लिए कुछ हासिल करने की नहीं थी बल्कि दूसरे लोगों की जिंदगी बचाने की थी। इस जिद को पूरी करने में सिद्धू को धमकियां भी मिली, लम्बी कानूनी लड़ाई भी चली, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आखिर सिद्धू की जीत उस समय हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट व नेशनल हाईवे पर 500 मीटर के दायरे में शराब बिक्री पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश देशभर के लिए प्रभावी है।
चंडीगढ़ के रहने वाले हरमन सिद्धू एक समय हमेशा के लिए कनाड़ा जा बसने की तैयारी कर रहे थे कि सडक़ दुर्घटना में उनके दोनों पैर बेकार हो गए। उनके साथ यह दुर्घटना 24 अक्टूबर, 1996 को घटी, जब उनकी गाड़ी एक मोड़ पर हिमाचल प्रदेश में 50 मीटर गहरे गड्ढ़े में जा गिरी। रीढ़ की हड्डी में चोट की वजह से उनके पैर लकवाग्रस्त हो गए। दो साल बाद वे व्हीलचेयर पर बैठने की स्थिति में आ पाए। समय पास करने की गरज से कम्प्यूटर पर सर्च के दौरान सिद्धू ने जाना की सडक़ हादसों में जान गंवाने के मामलों में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है।
इलाज के लिए जगह-जगह घूमने के दौरान सिद्धू ने देखा कि पंजाब में जालंधर से ले कर हरियाणा में पानीपत तक 291 किलोमीटर लंबाई तक राष्ट्रीय राजमार्ग पर शराब के 185 ठेके हैं। करीब-करीब हर एक किलोमीटर के बाद शराब का एक ठेका था। केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों को आधार बना कर सिद्धू ने वर्ष 2012 में पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की।
सिद्धू ने पाया कि 30 से 50 फीसदी सडक़ दुर्घटनाओं में शराब एक बड़ी वजह है। सिद्धू खुद शराब पीते हैं पर शराब पी कर गाड़ी चलाने के खिलाफ हैं। वे चाहते थे कि शराब के ठेकों के मामलों में राज्य सरकारें केंद्र के दिशा-निर्देशों पर अमल करें। इसका मतलब यही था कि राजमार्गों पर शराब के ठेके नहीं होने चाहिए, लेकिन राजस्व जुटाने के मकसद से राज्य सरकारों ने हाईवे पर ठेकों के लाइसेंस देने बंद नहीं किए।
दो साल के बाद सिद्धू ने हाईकोर्ट में लड़ाई जीत ली। 18 मार्च, 2014 को हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। जिसमें कहा गया कि नेशनल व स्टेट हाईवे पर न तो शराब के ठेके दिखने चाहिए और न यहां से ठेकों तक पहुंचना आसान होना चाहिए। एक हफ्ते बाद ही पंजाब व हरियाणा सरकारें इस फैसले के खिलाफ स्टे के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गईं। सुप्रीम कोर्ट में शराब ठेकों की हिमायत में देशभर से कई याचिकाएं दाखिल की गई। दो साल से ज्यादा समय तक चली सुनवाई के बाद 15 दिसंबर, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा, नेशनल व स्टेट हाई-वे के 500 मीटर के दायरे में न शराब सर्व की जा सकेगी और न ही ठेके रहेंगे।
सिद्धू की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में 33 साल के रविकमल गुप्ता ने यह लड़ाई लड़ी, जबकि उनके सामने मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे दिग्गज वकीलों की फौज थी। सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सिद्धू ने चंडीगढ़ से दिल्ली के 30 से ज्यादा चक्कर लगाए। लड़ाई लंबी और आर्थिक तौर पर मजबूत लोगों के खिलाफ थी, लेकिन सिद्धू ने न कभी हौसला खोया और न कभी धमकियों के सामने झुके।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल के बाद होटल, रेस्टोरेंट, डिस्कोथेक और पब बार के मालिक और कर्मचारी सडक़ों पर उतर कर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं, लेकिन सिद्धू खुश हैं कि उनकी लड़ाई खुद के लिए नहीं, सडक़ हादसे से सबक ले कर दूसरे लोगों की जिंदगी बचाने के लिए थी और इस लड़ाई को जीतने में वे कामयाब रहे हैं।
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