चंडीगढ़। हरियाणा सरकार ने हरियाणा ग्रामीण विकास योजना के नाम से एक नई
योजना लागू की है, जिसके अंतर्गत ग्राम पंचायतों की जरूरतों और आवश्यकता के
अनुसार विकास कार्य करवाए जाएंगे। चालू वित्त वर्ष 2018-19 के लिए इस
योजना के तहत 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य - शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
इस सम्बंध में जानकारी देते हुए विकास एवं पंचायत विभाग के एक
प्रवक्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री अनुसूचित जाति, निर्मल बस्ती योजना और
सडक़ों के फुटपाथ और चौपाल सब्सिडी की योजना को एक नई योजना में विलय कर
दिया गया है और इसे हरियाणा ग्रामीण विकास योजना का नाम दिया गया है।
प्रवक्ता ने बताया कि कि राज्य सरकार ने अध्यक्ष, जिला परिषद के
मासिक मानदेय को 7500 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये, उपाध्यक्ष को 6000
रुपये से बढ़ाकर 7500 रुपये सदस्यों को 2500 रुपये से बढ़ाकर 3000 रुपये कर
दिया है। इसी प्रकार, अध्यक्ष, पंचायत समिति का मासिक मानदेय 6000 रुपये
से बढ़ाकर 7500 रुपये, उपाध्यक्ष का 2500 रुपये से बढ़ाकर 3500 रुपये और
सदस्य का 1250 रुपये से बढ़ाकर 1600 रुपये किया गया है। उन्होंने बताया कि
इसके अलावा सरपंच का मासिक मानदेय भी बढ़ाया गया है और इसे 2000 रुपये से
बढ़ाकर 3000 रुपये किया गया है, जबकि पंच का मासिक मानदेय 600 रुपये से
बढ़ाकर 1000 रुपये किया गया है।
उन्होंने बताया कि ग्रामीण विकास कार्यों में गुणवत्ता और
पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक लेखापरीक्षा की अवधारणा को
अपनाया गया है। उन्होंने बताया कि ग्रामीण विकास में गुणात्मक परिवर्तन
लाने के उद्देश्य से विकास कार्यों के प्रकार पर निर्णय लेने के लिए दस
सदस्यों की एक समिति गठित की जाएगी। उन्होंने बताया कि वर्तमान राज्य सरकार
के कार्यकाल के दौरान 30 अप्रैल, 2018 तक विभिन्न विकास कार्यों के लिए
ग्राम पंचायतों को 4354.19 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है।
प्रवक्ता ने बताया कि गांवों के व्यवस्थित विकास के लिए 10,000 या
उससे अधिक की आबादी वाले गांवों हेतु स्वर्ण जयंती महाग्राम योजना शुरू की
गई है। इस योजना का उद्देश्य व्यापार, विपणन सुविधा, सामाजिक और आधारभूत
विकास संरचना, शैक्षिक संस्थाओं और मानव विकास के लिए गांवों को विकसित
करना है ताकि शहरी क्षेत्रों की ओर ग्रामीण लोगों के प्रवास को रोका जा
सके। उन्होंने बताया कि इन गांवों में सीवरेज सुविधाएं भी उपलब्ध कराई
जाएंगी। वित्तीय वर्ष 2017-18 में इस उद्देश्य के लिए 135 करोड़ रुपये की
मंजूरी दी गई थी, जिसमें से 84.06 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।
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