चंडीगढ़। सांसद दीपेन्द्र हुड्डा ने पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे की नई किताब फॉर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी में अग्निपथ योजना के संबंध में हुए खुलासों पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि अब भी समय है, सरकार पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे की चेतावनी को गंभीरता से ले। हम वर्षों से जिस योजना को देश और फौज के लिये घातक बता रहे हैं, जनरल नरवणे ने उस पर मुहर लगा दी है।
दीपेन्द्र हुड्डा ने कहाकि मैने संसद में बार-बार अग्निपथ योजना की खामियों और अग्निवीरों की पीड़ा को उठाया, लेकिन सरकार ने इस पर चर्चा भी नहीं होने दी। अग्निपथ योजना में अग्निवीरों को दिए जाने वाली सुविधाओं और अर्हता में गंभीर विसंगतियाँ सामने आ रही हैं। इस योजना द्वारा शहीद के बलिदान में भी भेदभाव हो रहा है।
चिंता का विषय है कि एक अग्निवीर सैनिक व एक नियमित सैनिक की शहादत होने पर शहीद के परिवार को मिलने वाली अनुग्रह राशि में भारी अंतर है और अग्निवीर शहीद को सरकार शहीद का दर्जा भी नहीं दे रही है। शहादत होने पर उनके परिवार को पेंशन या सैन्य सेवा से जुड़ी कोई और सुविधा भी नहीं मिल रही है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
दीपेन्द्र हुड्डा ने सरकार से फिर अपील की कि अग्निपथ योजना को तुरंत वापस लिया जाए और फौज में रेगुलर भर्ती की जाए, इसी में सेना अैर देश का हित है। उन्होंने आगे कहा कि हम लगातार कहते आए हैं शहीद-शहीद के बलिदान तक में भेदभाव करने वाली अग्निपथ योजना देश के युवाओं के मनोबल व उनके भविष्य, देश की सेना और देश की सुरक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित कर रही है।
दीपेन्द्र हुड्डा ने कहा कि रेगुलर सैनिक का मनोबल उंचा रहता है इसका कारण ये है कि उसे इस बात का अहसास रहता है कि अगर वो देश के लिए शहीद हो गया तो उसकी पत्नी, बच्चे, माता-पिता को सरकार संभालेगी। लेकिन, यदि अग्निवीर सैनिक का बलिदान हो जाता है तो सरकार से उसको कोई सुविधा नहीं मिलती।
अग्निवीर सैनिक को ड्यूटी के दौरान ग्रेच्युटी व अन्य सैन्य सुविधाएं और पूर्व सैनिक का दर्जा व पूर्व सैनिक को मिलने वाली सुविधाएं मिलने का भी कोई प्रावधान नहीं है। यही कारण है कि भर्ती हुए अग्निवीरों में इतनी निराशा, हताशा और रोष है कि एक तिहाई अग्निवीर मायूस होकर ट्रेनिंग बीच में ही छोड़कर वापस घर लौट रहे हैं। यही नहीं देश भर के युवा अपने भविष्य को लेकर आशंकित हैं।
पूर्व सेना प्रमुख जनरल नरवणे ने अपनी किताब में लिखा है कि अग्निपथ योजना की घोषणा थल सेना के लिए तो हैरान करने वाली थी, लेकिन नौसेना और वायु सेना के लिए ये एक झटके की तरह आई। उन्होंने कहा कि आर्म्ड फोर्सेस का मानना था कि चार साल के कार्यकाल के बाद बड़ी संख्या में कर्मियों को सेवा में रखा जाना चाहिए और बेहतर वेतन दिया जाना चाहिए, लेकिन योजना में इसका उल्टा हुआ।
उन्होंने उस बात की भी पुष्टि कर दी कि इस विनाशकारी नीति से सीधे तौर पर प्रभावित होने वालों से विचार-विमर्श किए बिना ही अग्निपथ / अग्निवीर योजना को जबरन थोप दिया गया।
अपने संस्मरण में पूर्व सेना प्रमुख नरवणे ने ये भी बताया है कि शुरुआत में अग्निवीरों के लिए पहले साल की सैलरी 20 हजार रुपये प्रतिमाह तय की गई थी। इसमें उन्हें अलग से कोई और भुगतान देने का प्रावधान नहीं था। जनरल नरवणे ने इस बारे में लिखा है कि ये बिल्कुल स्वीकार करने लायक नहीं था। यहाँ हम एक प्रशिक्षित सैनिक की बात कर रहे थे जिससे उम्मीद की जाती है कि वो देश के लिए अपनी जान दे दे। सैनिकों की तुलना दिहाड़ी मजदूरों से नहीं की जा सकती है। सेना की मजबूत सिफारिशों के बाद ही सरकार ने अग्निवीर की सैलरी 30 हजार रुपये की।
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