-पोर्टल-पोर्टल खेलने के बाद गिरदावरी और वेरिफिकेशन कर रही है ढोंग
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चंडीगढ़। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं हरियाणा कांग्रेस की पूर्व प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा है कि जुलाई माह में आई बाढ़ के पीड़ित अभी तक भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार की ओर मदद की आस में टकटकी लगाए बैठे हैं। भारी-भरकम नुकसान के बावजूद सरकार उनके साथ पोर्टल-पोर्टल खेल रही है। पोर्टल पर तमाम नुकसान का दावा करने के बाद अब गिरदावरी और वेरिफिकेशन की आड़ में मामले को और अधिक लंबा खींचा जा रहा है। सरकार को चाहिए कि किसान, मजदूर, दुकानदार, पशुपालक आदि जिस किसी ने भी नुकसान का दावा किया है, उन्हें 10 सितंबर तक हर हाल में सहायता राशि जारी करे।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि गठबंधन सरकार ने जानबूझकर गिरदावरी कराने में देरी की है ताकि मुआवजा राशि देने से सरकार बची रहे, इसलिए पहले पोर्टल पर दावे करने की हिदायत दी गई। अगर उसी समय विशेष गिरदावरी का आदेश दिया होता तो 31 जुलाई तक मुआवजा राशि का वितरण किया जा सकता था। लेकिन, सरकार की नीयत सही नहीं होने के कारण पूरे मामले को लटकाया गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि गठबंधन सरकार की मंशा यही रही कि खेतों में भरा पानी उतर जाए तो फिर उसे कम नुकसान दिखाने में आसानी होगी। इसलिए ही पोर्टल के चक्कर में किसानों व प्रदेश के आम लोगों को उलझाया गया। अब लोगों ने जो दावे पोर्टल पर किए हैं, उनमें से आधे से अधिक को वेरिफिकेशन के नाम पर रिजेक्ट करने की साजिश रचने की जानकारी मिल रही है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि 8, 9, 10 जुलाई को आई बाढ़ से कई जिलों में लाखों लोग प्रभावित हुए। इनमें से ज्यादातर ऐसे थे, जिन्हें तुरंत सरकारी मदद की जरूरत थी। किसी के सिर से छत छिन चुकी, तो किसी के घर में रखा अनाज व अन्य सामान खराब हो चुका। समाज के लोगों की आपसी मदद से किसी तरह इनका जीवन चल रहा है। सरकार को ऐसे परिवारों को फौरी तौर पर मदद करनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बाढ़ ने किसानों पर दोहरी मार की है। जलभराव से उनकी फसल तो खराब हो ही गई है, साथ में अब इस जमीन को फिर से खेती के लिए तैयार करना भी किसी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि, पहाड़ों से आए पानी में पथरीली मिट्टी बहकर आई, जो खेतों में परत की तरह जमा हो गई है। इससे खेत को फिर से फसल के लिए संवारने में किसानों को पहले के मुकाबले कई गुणा मेहनत करनी पड़ेगी। इसलिए किसानों को कम से कम 50-50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा दिया जाए।
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