चंडीगढ़। हरियाणा विधानसभा के भंग होने की सिफारिश को लेकर संविधान और विधायी प्रक्रियाओं के जानकार हेमंत कुमार का कहना है कि सरकार के पास सत्र बुलाने का विकल्प था, भले ही चुनाव आयोग ने नई विधानसभा के चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी हो। दरअसल, हरियाणा की 14वीं विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 तक है, और इसे भंग करने का फैसला संवैधानिक अनिवार्यताओं के कारण लिया गया।
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संवैधानिक प्रावधानों का पालन अनिवार्य
एक्सपर्ट के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 174(1) का हवाला दिया, जिसके अनुसार पिछली बैठक और अगले सत्र के बीच 6 महीने से अधिक का अंतराल नहीं होना चाहिए। पिछला सत्र 13 मार्च 2024 को बुलाया गया था, जिसमें मुख्यमंत्री नायब सैनी ने अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ बहुमत साबित किया था। इसके बाद से कोई सत्र नहीं बुलाया गया, जिससे संवैधानिक अनिवार्यता के तहत 12 सितंबर 2024 से पहले एक सत्र बुलाना जरूरी था।
विकल्पों की कमी और विधानसभा भंग करने की सिफारिश
एक्सपर्ट का कहना है कि सरकार ने मानसून सत्र को लेकर कोई फैसला नहीं लिया था, जिससे अब विधानसभा भंग करने के लिए राज्यपाल से सिफारिश करना सरकार का एकमात्र विकल्प बचा था। संवैधानिक संकट से बचने और चुनाव प्रक्रिया के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए यह कदम जरूरी हो गया।
संवैधानिक संकट और राजनीतिक माहौल
इस स्थिति ने हरियाणा के राजनीतिक माहौल में एक नया मोड़ ला दिया है। सत्तारूढ़ भाजपा सरकार का यह फैसला, भले ही संवैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखकर लिया गया हो, लेकिन यह राजनीतिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम साबित हो सकता है।
चुनाव के बीच हरियाणा विधानसभा भंग करने की सिफारिश: कैबिनेट में मंजूरी, संवैधानिक संकट से बचने की कोशिश
हरियाणा में सियासी भूचाल के बीच BJP सरकार ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश की है। बुधवार शाम को हुई एक अर्जेंट कैबिनेट बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इस फैसले के बाद, मुख्यमंत्री नायब सैनी ने गवर्नर बंडारू दत्तात्रेय से मुलाकात का समय तय किया है। सीएम सैनी रात 9:30 बजे राजभवन जाएंगे, जहां विधानसभा भंग करने पर गवर्नर की अंतिम मुहर लगाई जाएगी।
यह फैसला तब लिया गया जब चुनाव के दौरान संवैधानिक संकट की आशंका उत्पन्न हो रही थी। सरकार का कहना है कि यह कदम संवैधानिक प्रावधानों को बनाए रखने और किसी भी अस्थिरता से बचने के लिए उठाया गया है।
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