चंडीगढ़। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा कि देश में पूंजीगत निवेश (कैपेक्स) की स्थिति 15 साल में सबसे निचले स्तर पर है। साल 2023 की तीसरी तिमाही में सितंबर से दिसंबर के बीच केवल 462 नए प्रोजेक्ट्स के लिए निवेश आया। 15 साल में कभी एक तिमाही में इतने कम प्रोजेक्ट नहीं आए। प्रोजेक्ट्स की संख्या 35 हजार से अधिक होने के बावजूद केवल 361 प्रोजेक्ट ही पूरे हो सके।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि असल हकीकत को सामने आने से रोकने के लिए भाजपा की केंद्र सरकार आंकड़ों की बाजीगिरी करती है, ताकि झूठी मार्केटिंग के बल पर वाहवाही लूट सके। लेकिन, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट इस सभी की पोल खोल रही है। इसके मुताबिक सरकारी और निजी दोनों प्रोजेक्ट में नए निवेश को लेकर किसी भी स्तर पर कोई उत्साह नजर नहीं आया। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकारी और निजी क्षेत्र के प्रमोटर्स ने जितने प्रोजेक्ट्स की घोषणा की थी, उस आधार पर दिसंबर 2023 में 10.2 लाख करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट पूरे होने चाहिए थे। लेकिन 1.26 करोड़ रुपए के ही प्रोजेक्ट पूरे हो सके। यानी, राशि के हिसाब से 88 प्रतिशत प्रोजेक्ट डेडलाइन को मिस कर गए। जबकि, पिछले 10 साल से हर तिमाही में पूरे हुए प्रोजेक्ट का औसत मूल्यांकन 1.3 लाख करोड़ रहा है। यानि, इस बार धीमी गति के चलते इस औसत से भी कम प्रोजेक्ट पूरे हुए।
कुमारी सैलजा ने कहा कि सीएमआईई की रिपोर्ट बताती है कि घोषित प्रोजेक्ट में से 85 प्रतिशत पर या तो काम चल रहा है या फिर ये क्लीयरेंस का इंतजार कर रहे हैं। बाकी 15 प्रतिशत वे प्रोजेक्ट हैं, जो अटक गए हैं। साल 2007 से अब तक 16 साल का ट्रेंड बताता है कि संख्या व राशि दोनों आधार पर ऐसे प्रोजेक्ट्स की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिनमें स्वीकृत होने के बाद भी काम नहीं हो रहा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 2023-24 की पहली दो तिमाही में यह 58-59 प्रतिशत थे, जो मनमोहन सिंह की कांग्रेस सरकार के दौरान 2007 में केवल 36 प्रतिशत ही थे। देश में अलग-अलग प्रोजेक्ट के लिए कुल 259.27 लाख करोड़ रुपये का निवेश मिला है, इनमें से 151.78 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट पर ही काम चल रहा है। अटके प्रोजेक्ट में 32.64 लाख करोड़ के वे प्रोजेक्ट हैं, जिनका स्टेट्स भी पता नहीं है। इसलिए भाजपा की केंद्र सरकार को जनता को झूठे आंकड़ों से गुमराह करने की बजाए श्वेत पत्र जारी असल हकीकत बतानी चाहिए।
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